Tuesday, July 5, 2022

सुधा सिन्हा अब तक मगर है बाकी 30.06.2022

अब तक मगर है बाकी ''सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा'' !!! इस 'हमारा' में 'हम' कौन है, इसका खुलासा कवि आगे करता है-- ''ऐ आवरूदे गंगा ! वह दिन है याद तुझको ? उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा !!!'' यह कारवाँ किसका था ? गंगा के पवित्र जल में स्नान करने आये किसी तीर्थयात्री का नहीं, बल्कि उन अपवित्र, वहशी, पाशविक म्लेच्छों का जिनकी छाया पड़ने से ही-- ''यूनान-मिश्र-रोमा सब मिट गये जहाँ से'' !!! कवि लम्बी साँस छोड़ कर कहता है-- ''अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा''!!! इस पंक्ति का ''हमारा'' भारतवर्ष के प्रति सर्वनाम की तरह प्रयुक्त हुआ है। यह 'अच्छा' हिन्दोस्तां म्लेच्छों के क्रूर आक्रमण से आहत हुआ, इसकी अकूत हानि हुई। परन्तु मिटा नहीं। म्लेच्छ समुदाय केलिए चुनौती बना रहा। * म्लेच्छों को यही चुनौती इजराइल से मिल रही है। यही चुनौती, तत्कालीन वनवासी श्रीराम से, राक्षसों के प्रतिनिधि हठधर्मी रावण को मिली थी--रहा न कुल कोउ रोवनहारा। इनका हाल भी यही होगा। परन्तु जारूरत है योजनाबद्ध रूप में इनके उन्मूलन की प्रक्रिया को जारी रखना। तथास्तु। 30.06.2022

Monday, May 30, 2022

सुधा सिन्हा

सुधा सिन्हा 29.05.2022 देश में रहना : देश का होना

देश में रहना : देश का होना बहुत अंतर है देश ''में'' रहने और देश ''का'' होने में। भारत के मुसलमानों की बदकारियों के कारण पाकिस्तान बना; यानी यह सिद्ध हो गया कि हिन्दुओं के साथ मुसलमान का सह-अस्तित्व सम्भव नहीं है। इसके बावजूद मुसलमानों की हठधर्मी देखिये कि लगभग आधे की तादाद में मुसलमान भारत में ही चिपके रह गये। जब मुसलमान को अलग जमीन दे दी गयी, तब भारत में उनके रहने का क्या प्रयोजन है ? क्या उन्हें पता नहीं था कि 'हिन्दुस्तान'' में वे पसंद नहीं किये जायेंगे ? क्या उन्हें मालूम नहीं है कि उनके पूर्वज मुगलों के भय या किसी लोभ से धर्मच्युत हो गये ? क्या उनको यह बा‍त समझ में नहीं आती कि भारत का बहुसंख्यक हिन्दू गौरवशाली सनातन परम्परा का उत्तराधिकारी है, जब कि वे इसे खो चुके हैं? क्या वे नहीं जानते कि भारत की रुचिर संस्कृति औेर अशौच मुसलमानी जीवन पद्धत्ति में आसमान जमीन का अंतर है ? अगर वे यह सब नहीं जानते, तो अब भी जान कर टेंढ़ी चाल चलना छोड़ दें। पाँच हजार नकारों की भीड़ जुटा कर एक नकारा मुल्ला काँव-काँव कर रहा था। उसे लगा होगा कि हिन्दू, हिन्दुस्तान, और इसके शीर्ष नेतृत्व के विरुद्ध बोल कर वाहवाही लूट लेगा या इनका अहित कर देगा। उसकी यह हरकत रंग लायी---भारत का बहुसंख्यक हिन्दू भारत में ''रह रहे'' मुसलमानों के विरुद्ध अधिक सतर्क हो गया। सवाल उठने लगे कि जब मुसलमान केलिए अलग भूभाग चिह्नित कर दिया गया तब यह भारत विद्वेषी समुदाय किस हैसियत से यहाँ रह कर सारी सुख-सुविधायें भोग रहा है? सारा संसार जानता है कि भारत का मुसलमान राष्ट्रघाती है। अपनी बेजा हरकतों के कारण यह पूरी तरह अविश्वसनीय बन चुका है। मस्जिद बनाने के नाम पर जमीन हड़पना, हिन्दू देवस्थलों को तोडना, हिन्दू लड़कियों का शिकार करना इसका प्रमुख धंधा है। अयोग्यता, निकम्मापन इसकी पहचान है। भारतीय संस्कृति से विचलित हो चुका मुसलमान भारत को अपना देश नहीं मानता; भविष्य में यहाँ बहुसंख्यक बन कर हिन्दुत्व को समाप्त कर देने की गर्हित मंशा के साथ चार-चार बीबियों से चालीस-पचास पिल्ले पैदा कर रहा है। अत: भारत की भूमि मुसलमान नामक मानवपशु को वर्जनीय मानती है। *परमात्मा ने भारत को अवतारों की भूमि बनाया है। अवतारों के पदचिह्न भारतभूमि में अंकित हैं। भारत के कोने-कोने में पवित्र शंखध्वनि गूँजती है। सूर्य-चन्द्र-तारागणों को भारत का अंतरिक्ष कृतार्थ करता है। संसार के किसी भाग में रहें, हिन्दू भारत के प्रति प्रणत हैं। भारत और हिन्दू के बीच अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। ''होने'' और ''रहने'' का अंतर हिन्दू जानता है। तथास्तु। 29.05.2022

सुधा सिन्हा 28.05.2022 बिकास पथ के कंटक

बिकास पथ के कंटक सामंजस्य तथा समीचीनता के अनुसार चलने वाले भारत में आकर ब्रितानी तिजारती राजकामियों की पतलूनें ढीली होने लगीं। बाह्य स्तर पर सीधा-सादा दिखाई देने वाला भारत ऐसा दुर्दमनीय होगा, यह बात उनकी कल्पना के परे थी। वेश-भूषा, रहन-सहन के प्रति लापरवाह भारतीय जनगण के आकलन में उनसे भारी भूल हो गयी। भारतीय मन में देश के प्रति जो सहज आस्था है, उसे देख कर वे भौंचक्के रह गये। जनगण की अभीप्सा जननायकों में सांद्र होकर ब्रितानियों के प्रति आक्रामक हो गयी थी। अपने को अजेय मानने वाले ब्रितानी भारत छोड़ने को मजबूर हुए। भारत में सदा केलिए राज करने की उनकी तमन्ना तो धूल में मिल ही गयी, संसार के अन्य भागों में भी उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उन्होंने भारत के कपूतों को टेक बना कर लगभग दो सौ वर्ष तक अपने को यहाँ टिकाया। और, यह दिखाने की कुचेष्टा की कि भारत दीन-हीन है। लेकिन मिथ्या का धंधा चल नहीं पाया। वर्तमान में भी कपूतों के कारण ही विकास पथ अवरुद्ध हो रहा है। ये सब उन्हीं के वंशज हैं जिन्होंने स्वदेश के विरुद्ध जाकर मुगल और ब्रितानी शत्रुओं का साथ दिया था; वे अपने कुल की परम्परा पर ही चल रहे हैं। जैसे उनके पूर्वज देश को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे, वैसे ही वे नहीं चाहते कि देश में सब का विकास हो। लेकिन उनकी बददुआओं को बहुसंख्यक जनगण का शुभ प्रयास निरस्त करता जाता है। तथास्तु। 28.05.2022

सुधा सिन्हा 28.05.2022 बिकास पथ के कंटक

बिकास पथ के कंटक सामंजस्य तथा समीचीनता के अनुसार चलने वाले भारत में आकर ब्रितानी तिजारती राजकामियों की पतलूनें ढीली होने लगीं। बाह्य स्तर पर सीधा-सादा दिखाई देने वाला भारत ऐसा दुर्दमनीय होगा, यह बात उनकी कल्पना के परे थी। वेश-भूषा, रहन-सहन के प्रति लापरवाह भारतीय जनगण के आकलन में उनसे भारी भूल हो गयी। भारतीय मन में देश के प्रति जो सहज आस्था है, उसे देख कर वे भौंचक्के रह गये। जनगण की अभीप्सा जननायकों में सांद्र होकर ब्रितानियों के प्रति आक्रामक हो गयी थी। अपने को अजेय मानने वाले ब्रितानी भारत छोड़ने को मजबूर हुए। भारत में सदा केलिए राज करने की उनकी तमन्ना तो धूल में मिल ही गयी, संसार के अन्य भागों में भी उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उन्होंने भारत के कपूतों को टेक बना कर लगभग दो सौ वर्ष तक अपने को यहाँ टिकाया। और, यह दिखाने की कुचेष्टा की कि भारत दीन-हीन है। लेकिन मिथ्या का धंधा चल नहीं पाया। वर्तमान में भी कपूतों के कारण ही विकास पथ अवरुद्ध हो रहा है। ये सब उन्हीं के वंशज हैं जिन्होंने स्वदेश के विरुद्ध जाकर मुगल और ब्रितानी शत्रुओं का साथ दिया था; वे अपने कुल की परम्परा पर ही चल रहे हैं। जैसे उनके पूर्वज देश को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे, वैसे ही वे नहीं चाहते कि देश में सब का विकास हो। लेकिन उनकी बददुआओं को बहुसंख्यक जनगण का शुभ प्रयास निरस्त करता जाता है। तथास्तु। 28.05.2022

Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 25.05.2022 थूकने का उसूल

थूकने का उसूल किसी दढि़यल मुल्ले को कहते सुना कि खाने की चीजों को थूक से पाक (?) बनाना उसके मजहब का उसूल है। हो सकता है़, कुछ दिन बाद सुनने को मिले कि संसार की सारी अखाद्य वस्तुयें खाना मुसलमानों के रेलिजन का अनिवार्य नियम है। उन्हें पूरी आजादी है, जैसे चाहें रहें। लेकिन उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि हमारे रहन-सहन को अपनी निचाइयों तक घसीटने की कुचेष्टा करें। हमारे स्तर तक वे नहीं पहुँच सकते, यह उनकी समस्या है। हम तो अपनी ऊँचाई पर बने रहेंगें और अत्यन्त दृढता से निषेधों का पालन करते हुए अपनी सकारात्मक, जीवन्त पवित्रता बनाये रखेंगे। इसके‍ लिए आवश्यक्तानुसार एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच ली जायेगी जिसे कोई रावण लाँघ नहीं पायेगा। प्रीति-भोज के भोजनालय में मुसलमान रसोइया या हेल्पर हो, तो वह खाद्य सामग्रियों पर थूक डाल देगा। मुसलमान अपनी दूकान में सामान पर थूक डाल कर उसे पोंछता-चमकाता है।हलाल सर्टिफिकेट देने के पहले समानों पर थूका जाता है।मुसलमान से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह हिन्दू अपेक्षाओं के अनुसार चल कर अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा। अत: अपने-आप को उनकी हीनताओं के संक्रमण से बचाने हेतु स्वयं ही सावधानियां बरतनी हैं। भारतीय संस्कृति हमसे-आपसे अपेक्षा करती है कि आचर- विचार के स्तर को कभी नीचे न गिरने दें। तथास्तु। 25.05.2022

सुधा सिन्हा 17.05.2022 जैसे को तैसी तान : ओवैसी

जैसे को तैसी तान : ओवैसी समय अनुकूल है। कदम-कदम पर सारे राष्ट्रघाती मुँह की खा रहे हैं। एक है खानदानी राष्ट्रद्रोही ओवैसी; वह मुसलमानों को जितना ही देश के विरुद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है, उतना ही उसका वोट प्रतिशत घटता जा रहा है। जितना ही वह मुसलमानों को हिन्दू विद्वेषी बनाने में लगा है, मुसलमान उतना ही बढ़-चढ़ कर भारतीय जनता पार्टी का सदस्य बनता जाता है। यह अचानक नहीं हुआ है; लम्बे समय से, धीरे-धीरे मंथर गति से मुसलमानी सोच में परिवर्तन लक्षित हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमान भारत से प्रेम करने लगा है; वह अभी भी भारत को काफिरों का देश ही मानता है। लेकिन वह भारत में मिल रही जान-माल की सुरक्षा और सुख-सुविधा खोना नहीं चाहता; शासन से वैर साध कर अपने लिए गढ़ा खोदना नहीं चाहता, इसलिए ओवैसी के लाख भड़काने पर उसकी मुट्ठी में नहीं आता है। भारत का अधिकांश मुसलमान, अंदर से कट्टर इस्लामी रहते हुए भी, बाहर से सेकुलर दीखने की कोशिश करता है। ओवैसी उन्हें खुलकर भारत-विरोधी बनने को उकसाता है, लेकिन उसे निराशा हाथ लगती है। भारत के मुसलमान समझ चुके हैं कि अब यह जबाहरमियां का कार्य काल नहीं है जिसमें मुसलमान केलिए भारत को मुफ्त का माल बना दिया गया था। यह वह काल भी नहीं है, जिसमें रिमोटयंत्र बने मनमोहन ने संविधान की अवमानना करते हुए कहा था कि भारत के संसाधनों का पहला हकदार मुसलमान है। भारतीय मुसलमानों के अवगुणों को, उपरोक्त अवधियों की दोषपूर्ण रीति-नीति ने, रोग की तरह बढ़ने का मौका दे दिया। वे पूरी तरह उत्तरदायित्वहीन हो गये। उजाले बाँट दो मुसलमान को अपने दिमाग का उपयोग नहीं करने की रेलिजस मनाही है; परन्तु भारत का मुसलमान इस मेधावी वातावरण में रहने के कारण और हिन्दुओं के समकक्ष बनने की होड़ में दिमाग का गवाक्ष खोलने लगा था। जबाहरमियां और मनमोहन जैसे तथाकथित नेताओं ने मुसलमानों को मूर्ख, अयोग्य और निकम्मा बने रहने की छूट देकर, उस समुदाय में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन की सम्भावना पर रोक लगा दी । भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। अत: उनके जीवाश्म में हिन्दू की गुणवत्ता निहित है। परन्तु मुसलमान बनने पर, आवश्यक लक्षण के रूप में उन्हें मूर्खता अपनानी ही पड़ी; यदि कोई मुसलमान हिन्दू की तरह बुद्धिसम्पन्न बन जाये, तब मुसलमानों के बीच नक्कू बन जायेगा। मूर्ख बने रहने पर अयोग्य होना लाजमी है। और, अयोग्यता का सहोदर निकम्मापन तो पीछे लग ही जाता है। *भारत के बहुसंख्यक जनगण ने राजनैतिक स्थितियां बदल दीं। उसने ऐेसे व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व की बागडोर थमा दी जो ''सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास'' आधारित शासन पद्धत्ति को सम्भव बना सका। ओवैसी का भड़काऊ तंत्र-मंत्र धरा-का-धरा रह गया, क्योकि भारत का मुसलमान उस ''सब'' में बना रहा जो सबके साथ मिल कर प्रयास करते-करते विकसित होता है। तथास्तु। ॐ