Tuesday, July 5, 2022

सुधा सिन्हा अब तक मगर है बाकी 30.06.2022

अब तक मगर है बाकी ''सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा'' !!! इस 'हमारा' में 'हम' कौन है, इसका खुलासा कवि आगे करता है-- ''ऐ आवरूदे गंगा ! वह दिन है याद तुझको ? उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा !!!'' यह कारवाँ किसका था ? गंगा के पवित्र जल में स्नान करने आये किसी तीर्थयात्री का नहीं, बल्कि उन अपवित्र, वहशी, पाशविक म्लेच्छों का जिनकी छाया पड़ने से ही-- ''यूनान-मिश्र-रोमा सब मिट गये जहाँ से'' !!! कवि लम्बी साँस छोड़ कर कहता है-- ''अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा''!!! इस पंक्ति का ''हमारा'' भारतवर्ष के प्रति सर्वनाम की तरह प्रयुक्त हुआ है। यह 'अच्छा' हिन्दोस्तां म्लेच्छों के क्रूर आक्रमण से आहत हुआ, इसकी अकूत हानि हुई। परन्तु मिटा नहीं। म्लेच्छ समुदाय केलिए चुनौती बना रहा। * म्लेच्छों को यही चुनौती इजराइल से मिल रही है। यही चुनौती, तत्कालीन वनवासी श्रीराम से, राक्षसों के प्रतिनिधि हठधर्मी रावण को मिली थी--रहा न कुल कोउ रोवनहारा। इनका हाल भी यही होगा। परन्तु जारूरत है योजनाबद्ध रूप में इनके उन्मूलन की प्रक्रिया को जारी रखना। तथास्तु। 30.06.2022

Monday, May 30, 2022

सुधा सिन्हा

सुधा सिन्हा 29.05.2022 देश में रहना : देश का होना

देश में रहना : देश का होना बहुत अंतर है देश ''में'' रहने और देश ''का'' होने में। भारत के मुसलमानों की बदकारियों के कारण पाकिस्तान बना; यानी यह सिद्ध हो गया कि हिन्दुओं के साथ मुसलमान का सह-अस्तित्व सम्भव नहीं है। इसके बावजूद मुसलमानों की हठधर्मी देखिये कि लगभग आधे की तादाद में मुसलमान भारत में ही चिपके रह गये। जब मुसलमान को अलग जमीन दे दी गयी, तब भारत में उनके रहने का क्या प्रयोजन है ? क्या उन्हें पता नहीं था कि 'हिन्दुस्तान'' में वे पसंद नहीं किये जायेंगे ? क्या उन्हें मालूम नहीं है कि उनके पूर्वज मुगलों के भय या किसी लोभ से धर्मच्युत हो गये ? क्या उनको यह बा‍त समझ में नहीं आती कि भारत का बहुसंख्यक हिन्दू गौरवशाली सनातन परम्परा का उत्तराधिकारी है, जब कि वे इसे खो चुके हैं? क्या वे नहीं जानते कि भारत की रुचिर संस्कृति औेर अशौच मुसलमानी जीवन पद्धत्ति में आसमान जमीन का अंतर है ? अगर वे यह सब नहीं जानते, तो अब भी जान कर टेंढ़ी चाल चलना छोड़ दें। पाँच हजार नकारों की भीड़ जुटा कर एक नकारा मुल्ला काँव-काँव कर रहा था। उसे लगा होगा कि हिन्दू, हिन्दुस्तान, और इसके शीर्ष नेतृत्व के विरुद्ध बोल कर वाहवाही लूट लेगा या इनका अहित कर देगा। उसकी यह हरकत रंग लायी---भारत का बहुसंख्यक हिन्दू भारत में ''रह रहे'' मुसलमानों के विरुद्ध अधिक सतर्क हो गया। सवाल उठने लगे कि जब मुसलमान केलिए अलग भूभाग चिह्नित कर दिया गया तब यह भारत विद्वेषी समुदाय किस हैसियत से यहाँ रह कर सारी सुख-सुविधायें भोग रहा है? सारा संसार जानता है कि भारत का मुसलमान राष्ट्रघाती है। अपनी बेजा हरकतों के कारण यह पूरी तरह अविश्वसनीय बन चुका है। मस्जिद बनाने के नाम पर जमीन हड़पना, हिन्दू देवस्थलों को तोडना, हिन्दू लड़कियों का शिकार करना इसका प्रमुख धंधा है। अयोग्यता, निकम्मापन इसकी पहचान है। भारतीय संस्कृति से विचलित हो चुका मुसलमान भारत को अपना देश नहीं मानता; भविष्य में यहाँ बहुसंख्यक बन कर हिन्दुत्व को समाप्त कर देने की गर्हित मंशा के साथ चार-चार बीबियों से चालीस-पचास पिल्ले पैदा कर रहा है। अत: भारत की भूमि मुसलमान नामक मानवपशु को वर्जनीय मानती है। *परमात्मा ने भारत को अवतारों की भूमि बनाया है। अवतारों के पदचिह्न भारतभूमि में अंकित हैं। भारत के कोने-कोने में पवित्र शंखध्वनि गूँजती है। सूर्य-चन्द्र-तारागणों को भारत का अंतरिक्ष कृतार्थ करता है। संसार के किसी भाग में रहें, हिन्दू भारत के प्रति प्रणत हैं। भारत और हिन्दू के बीच अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। ''होने'' और ''रहने'' का अंतर हिन्दू जानता है। तथास्तु। 29.05.2022

सुधा सिन्हा 28.05.2022 बिकास पथ के कंटक

बिकास पथ के कंटक सामंजस्य तथा समीचीनता के अनुसार चलने वाले भारत में आकर ब्रितानी तिजारती राजकामियों की पतलूनें ढीली होने लगीं। बाह्य स्तर पर सीधा-सादा दिखाई देने वाला भारत ऐसा दुर्दमनीय होगा, यह बात उनकी कल्पना के परे थी। वेश-भूषा, रहन-सहन के प्रति लापरवाह भारतीय जनगण के आकलन में उनसे भारी भूल हो गयी। भारतीय मन में देश के प्रति जो सहज आस्था है, उसे देख कर वे भौंचक्के रह गये। जनगण की अभीप्सा जननायकों में सांद्र होकर ब्रितानियों के प्रति आक्रामक हो गयी थी। अपने को अजेय मानने वाले ब्रितानी भारत छोड़ने को मजबूर हुए। भारत में सदा केलिए राज करने की उनकी तमन्ना तो धूल में मिल ही गयी, संसार के अन्य भागों में भी उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उन्होंने भारत के कपूतों को टेक बना कर लगभग दो सौ वर्ष तक अपने को यहाँ टिकाया। और, यह दिखाने की कुचेष्टा की कि भारत दीन-हीन है। लेकिन मिथ्या का धंधा चल नहीं पाया। वर्तमान में भी कपूतों के कारण ही विकास पथ अवरुद्ध हो रहा है। ये सब उन्हीं के वंशज हैं जिन्होंने स्वदेश के विरुद्ध जाकर मुगल और ब्रितानी शत्रुओं का साथ दिया था; वे अपने कुल की परम्परा पर ही चल रहे हैं। जैसे उनके पूर्वज देश को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे, वैसे ही वे नहीं चाहते कि देश में सब का विकास हो। लेकिन उनकी बददुआओं को बहुसंख्यक जनगण का शुभ प्रयास निरस्त करता जाता है। तथास्तु। 28.05.2022

सुधा सिन्हा 28.05.2022 बिकास पथ के कंटक

बिकास पथ के कंटक सामंजस्य तथा समीचीनता के अनुसार चलने वाले भारत में आकर ब्रितानी तिजारती राजकामियों की पतलूनें ढीली होने लगीं। बाह्य स्तर पर सीधा-सादा दिखाई देने वाला भारत ऐसा दुर्दमनीय होगा, यह बात उनकी कल्पना के परे थी। वेश-भूषा, रहन-सहन के प्रति लापरवाह भारतीय जनगण के आकलन में उनसे भारी भूल हो गयी। भारतीय मन में देश के प्रति जो सहज आस्था है, उसे देख कर वे भौंचक्के रह गये। जनगण की अभीप्सा जननायकों में सांद्र होकर ब्रितानियों के प्रति आक्रामक हो गयी थी। अपने को अजेय मानने वाले ब्रितानी भारत छोड़ने को मजबूर हुए। भारत में सदा केलिए राज करने की उनकी तमन्ना तो धूल में मिल ही गयी, संसार के अन्य भागों में भी उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उन्होंने भारत के कपूतों को टेक बना कर लगभग दो सौ वर्ष तक अपने को यहाँ टिकाया। और, यह दिखाने की कुचेष्टा की कि भारत दीन-हीन है। लेकिन मिथ्या का धंधा चल नहीं पाया। वर्तमान में भी कपूतों के कारण ही विकास पथ अवरुद्ध हो रहा है। ये सब उन्हीं के वंशज हैं जिन्होंने स्वदेश के विरुद्ध जाकर मुगल और ब्रितानी शत्रुओं का साथ दिया था; वे अपने कुल की परम्परा पर ही चल रहे हैं। जैसे उनके पूर्वज देश को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे, वैसे ही वे नहीं चाहते कि देश में सब का विकास हो। लेकिन उनकी बददुआओं को बहुसंख्यक जनगण का शुभ प्रयास निरस्त करता जाता है। तथास्तु। 28.05.2022

Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 25.05.2022 थूकने का उसूल

थूकने का उसूल किसी दढि़यल मुल्ले को कहते सुना कि खाने की चीजों को थूक से पाक (?) बनाना उसके मजहब का उसूल है। हो सकता है़, कुछ दिन बाद सुनने को मिले कि संसार की सारी अखाद्य वस्तुयें खाना मुसलमानों के रेलिजन का अनिवार्य नियम है। उन्हें पूरी आजादी है, जैसे चाहें रहें। लेकिन उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि हमारे रहन-सहन को अपनी निचाइयों तक घसीटने की कुचेष्टा करें। हमारे स्तर तक वे नहीं पहुँच सकते, यह उनकी समस्या है। हम तो अपनी ऊँचाई पर बने रहेंगें और अत्यन्त दृढता से निषेधों का पालन करते हुए अपनी सकारात्मक, जीवन्त पवित्रता बनाये रखेंगे। इसके‍ लिए आवश्यक्तानुसार एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच ली जायेगी जिसे कोई रावण लाँघ नहीं पायेगा। प्रीति-भोज के भोजनालय में मुसलमान रसोइया या हेल्पर हो, तो वह खाद्य सामग्रियों पर थूक डाल देगा। मुसलमान अपनी दूकान में सामान पर थूक डाल कर उसे पोंछता-चमकाता है।हलाल सर्टिफिकेट देने के पहले समानों पर थूका जाता है।मुसलमान से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह हिन्दू अपेक्षाओं के अनुसार चल कर अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा। अत: अपने-आप को उनकी हीनताओं के संक्रमण से बचाने हेतु स्वयं ही सावधानियां बरतनी हैं। भारतीय संस्कृति हमसे-आपसे अपेक्षा करती है कि आचर- विचार के स्तर को कभी नीचे न गिरने दें। तथास्तु। 25.05.2022

सुधा सिन्हा 17.05.2022 जैसे को तैसी तान : ओवैसी

जैसे को तैसी तान : ओवैसी समय अनुकूल है। कदम-कदम पर सारे राष्ट्रघाती मुँह की खा रहे हैं। एक है खानदानी राष्ट्रद्रोही ओवैसी; वह मुसलमानों को जितना ही देश के विरुद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है, उतना ही उसका वोट प्रतिशत घटता जा रहा है। जितना ही वह मुसलमानों को हिन्दू विद्वेषी बनाने में लगा है, मुसलमान उतना ही बढ़-चढ़ कर भारतीय जनता पार्टी का सदस्य बनता जाता है। यह अचानक नहीं हुआ है; लम्बे समय से, धीरे-धीरे मंथर गति से मुसलमानी सोच में परिवर्तन लक्षित हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमान भारत से प्रेम करने लगा है; वह अभी भी भारत को काफिरों का देश ही मानता है। लेकिन वह भारत में मिल रही जान-माल की सुरक्षा और सुख-सुविधा खोना नहीं चाहता; शासन से वैर साध कर अपने लिए गढ़ा खोदना नहीं चाहता, इसलिए ओवैसी के लाख भड़काने पर उसकी मुट्ठी में नहीं आता है। भारत का अधिकांश मुसलमान, अंदर से कट्टर इस्लामी रहते हुए भी, बाहर से सेकुलर दीखने की कोशिश करता है। ओवैसी उन्हें खुलकर भारत-विरोधी बनने को उकसाता है, लेकिन उसे निराशा हाथ लगती है। भारत के मुसलमान समझ चुके हैं कि अब यह जबाहरमियां का कार्य काल नहीं है जिसमें मुसलमान केलिए भारत को मुफ्त का माल बना दिया गया था। यह वह काल भी नहीं है, जिसमें रिमोटयंत्र बने मनमोहन ने संविधान की अवमानना करते हुए कहा था कि भारत के संसाधनों का पहला हकदार मुसलमान है। भारतीय मुसलमानों के अवगुणों को, उपरोक्त अवधियों की दोषपूर्ण रीति-नीति ने, रोग की तरह बढ़ने का मौका दे दिया। वे पूरी तरह उत्तरदायित्वहीन हो गये। उजाले बाँट दो मुसलमान को अपने दिमाग का उपयोग नहीं करने की रेलिजस मनाही है; परन्तु भारत का मुसलमान इस मेधावी वातावरण में रहने के कारण और हिन्दुओं के समकक्ष बनने की होड़ में दिमाग का गवाक्ष खोलने लगा था। जबाहरमियां और मनमोहन जैसे तथाकथित नेताओं ने मुसलमानों को मूर्ख, अयोग्य और निकम्मा बने रहने की छूट देकर, उस समुदाय में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन की सम्भावना पर रोक लगा दी । भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। अत: उनके जीवाश्म में हिन्दू की गुणवत्ता निहित है। परन्तु मुसलमान बनने पर, आवश्यक लक्षण के रूप में उन्हें मूर्खता अपनानी ही पड़ी; यदि कोई मुसलमान हिन्दू की तरह बुद्धिसम्पन्न बन जाये, तब मुसलमानों के बीच नक्कू बन जायेगा। मूर्ख बने रहने पर अयोग्य होना लाजमी है। और, अयोग्यता का सहोदर निकम्मापन तो पीछे लग ही जाता है। *भारत के बहुसंख्यक जनगण ने राजनैतिक स्थितियां बदल दीं। उसने ऐेसे व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व की बागडोर थमा दी जो ''सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास'' आधारित शासन पद्धत्ति को सम्भव बना सका। ओवैसी का भड़काऊ तंत्र-मंत्र धरा-का-धरा रह गया, क्योकि भारत का मुसलमान उस ''सब'' में बना रहा जो सबके साथ मिल कर प्रयास करते-करते विकसित होता है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 16.05.2022 सत्य का सबूत

सत्य का सबूत सत्य भले ही अपने-आप में अमूल्य है, परन्तु उसका होना ही पर्याप्त नहीं है; उसे मामूली साक्षों के सहारे अपने को प्रमाणित करना पड़ता है। हास्यास्पद दीखने वाली इस बात से पता चलता है कि क्रमविकास में मानव किस स्तर पर है। अधिकांश लोग, चूँकि स्थूल इन्द्रिय-ग्राह्य वस्तुओं पर ही विश्वास करते हैं, इसलिए सत्य को सिद्ध करने केलिए भौतिक साक्ष्य-प्रमाणों की आवश्यक्ता पड़ जाती है। सत्य में ऐसी सूक्ष्म शक्ति निहित है, जो स्थूल बातों तथा स्थितियों में प्रवेश कर उनके मूल्य की वृद्धि करती है। परन्तु जब प्रतिवादी, प्रदीप्त सत्य को भी कुतर्क से ढ़ँकना चाहता है, तब किसी सत्यवादी को उसकी लौ बनाये रखने हेतु अथक परिश्रम करना पड़ता है। * दरिंदे मुसलमानों ने भारत में हजारों दिव्य मंदिर भग्न कर अँखरे-रुखरे बेरौनक मस्जिद बनाये। लेकिन इसको लेकर सवाल उठाने पर, सबूत मांगे जाते हैं। इतना ही नहीं, हजारों वर्ष पहले बने विलक्षण मंदिरों के दर्शनीय अवशेषों को नकार कर, कुछ सौ साल की मस्जिद को अनन्तकालीन बताया जाता है। मंदिर तोड़ा जाना अनुचित था, इसे अनसुना कर, बेशर्मी के साथ किसी झूठे सौहार्द्य की बात उठा दी जाती है। सौहार्द्य? यानी हिन्दुओं से एकतरफा सहनशीलता की अपेक्षा ! ! भारत का बहुसंख्यक जनगण भारतीय संस्कृति तथा ''धर्म'' के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझता है। उसे विश्वास है कि यदि उसकी सक्रियता सत्य पर टिकी रही, तब परमप्रभु स्वयं साक्ष्य बन कर उपस्थित हो जायेंगे। तथास्तु । ॐ

सुधा सिन्हा 15.05.2022 अननुज्ञापित

अननुज्ञापित सुना आपने ! कोई नासमझ मुसलमान बोल रहा था कि जिस तरह भारत में ''अंग्रेजों भारत छोडो'' का नारा लगाया गया था, वैसा नारा मुसलमान के विरोध में कभी नहीं लगा। दरअसल, भारत में मुसलमानों की नाजायज उपस्थिति और घुसपैठ के विरुद्ध मचे सामाजिक तथा राजनैतिक हहरोर को लेकर यह बात कही गयी है। कहने वाले को सच्चाई का पता नहीं है। सत्य तो यह है कि प्रथम मुसलमान आक्रान्ता के विरुद्ध भारत में जो प्रतिरोध हुआ, उसकी श्रृंखला आजतक जारी है। सन् 1947 में ब्रितानियों को भगा कर मिली आजादी के बाद सत्ता पर काबिज जबाहरमियां ने मुसलमानों का दिमाग आसमान पर चढ़ा दिया। पाकिस्तान बना कर भारत का भूगोल बिगाड़ा ही जा चुका था, जबाहरमियां और कामनिस्टों की मिली भगत से इतिहास तथा शिक्षण- सामग्रियों में भी भारत के सच्चे स्वरूप के बदले उसकी भग्न दागदार छबि दिखाई गयी। भारत के प्राचीन गुण-गौरव को आँखों से ओझल करने की साजिश की गयी। लेकिन बहुसंख्यक जनगण ने इस षड़यंत्र का भंडा फोड़ कर जबाहरमियां के दल को पदच्युत कर दिया और कामनिस्टों की बोलती बन्द करा दी। भारत में मुसलमान को कभी पसंद नहीं किया गया। यहाँ तो यह पशु से भी बद्तर समझा जाता है। इसका कारण है मुसलमान का हिंसक, अपवित्र आचरण। मुसलमान की हीनता जताने केलिए उसे म्लेच्छ और छुतहर कहा गया। और, केवल भारत ही नहीं, पूरा संसार मुसलमान को नापसंद करता है। इतना ही नहीं, मुसलमान आपस में भी एक-दूसरे को पसंद नहीं करता; जहाँ कोई गैर मुसलमान न हो, वहाँ खुद एक-दूसरे से लड़ मरता है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 13.05.2022 विषबेल

विषबेल कश्यप ऋषि के कश्मीर में किसी अभागे हरामजादे सूअर की औलाद मुसलमान ने कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट नामक युवक की हत्या कर दी। क्यों ?एक तो हत्या करना मुसलमान के रेलिजन का पहला और अनिवार्य कर्मकाण्ड है। गैरमुसलमान यानी काफिर उसका पसंदीदा शिकार होता है। उस रेलिजन का आदेश है कि काफिर यदि समझाने-बुझाने से न माने तो मार- पीट कर, मृत्यु का भय दिखा कर उसे धर्मच्युत कराया जाये। इस पर भी यदि वह अपना धर्म छोड़ने को तैयार न हो, तो उसकी हत्या कर दो। मुसलमान को सिखाया जाता है कि ऐसा करने से जन्नत में उसके लिए सीट रिजर्व हो जाती है। भारत सरकार को चाहिए कि राहुल भट्ट की हत्या करने वाले मुसलमान को शीघ्रातिशीघ्र उसकी रिजर्व सीट पर पहुँचाने का प्रबन्ध करे। और, इस हत्यारे को बन्द कमरे में नहीं, व्यस्त चौराहे पर मार कर इसकी लाश किसी ऐसी जगह फेंक दी जाये जहाँ गीध-सिआर-कुत्ते उसकी हड्डी तक चबा कर धरती का भार हल्का कर दें। *आर्ष वचन है कि मानव क्रमविकास की गति मुसलमान के कारण अवरुद्ध हो गयी है। विषबेल की तरह फैले इस कौम, इस समुदाय के माध्यम से अपशक्तियाँ संसार के आध्यात्मिक उत्थान में बाधा पहुँचा रही हैं। सजग कृषक अपने खेत में विषबेल उगने नहीं देता। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 11.05.2022 उत्तरदायित्व का अधिकारी

उत्तरदायित्व का अधिकारी समझ-बूझ के परे बात की जाती है; भारत में हिन्दू मुसलमान एक साथ शान्ति से रह रहे हैं -- इस तरह के कथन का विश्लेषण करते समय सवाल उठता है कि इस तथाकथित शान्ति का प्रमाण क्या है ? दूसरा प्रश्न यह कि जब सात दसक पूर्व ही भारत के मुसलमानों केलिए पाकिस्तान नामक दो बाड़े बना दिये गये, तब इतनी बड़ी संख्या में, उनके भारत में रहने का औचित्य क्या है ? इस प्रश्न पर मुसलमान का अनर्गल उत्तर सुनाई देता है कि वह अपनी मर्जी से भारत में रह रहा है। धत्तेरी मर्जी की ! पाकिस्तान बनने के बावजूद, आधे से अधिक मुसलमान भारत में, एक गहरी साजिश के तहद रह गया। कदम-कदम पर भारत विरोधी मनहूस मुसलमानी मंशा का पोल खुलता ही रहता है। अपनी हीनता को बेहूदी बातों और कुकर्मों से ढ़कने की असफल कोशिश में मुसलमान खुद ही नंगा होता चला जाता है। उसकी बेशर्मी का तमाशा देख कर भी हिन्दू खामोश रहता है। क्योंकि मुसलमानों की तरह हिन्दू हिंसक, बेशर्म और असंवेदनशील नहीं बन सकता। अगर भारत में कोई शान्ति बनी हुई है, तो उसका श्रेय हिन्दू को जाता है। लेकिन अब एक अंतरस्थ लहर की तपिश, भारत में सतह पर अनुभव की जा रही है। उसके प्रभाव से भारत के बहुसंख्यक जनगण में यह उत्तरदायित्व बोध कौंध रहा है कि राष्ट्र को अपवित्र संक्रमण से बचाने का गहन कार्य उसे ही करना है। दरिंदे मुसलमान आक्रमणकारियों और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले भारतीय मुसलमानों, लालची ब्रितानियों और उनके प्रतिनिधि कांग्रेसियों, हरामखोर कामनिस्टों और राष्ट्रविरोधी अन्य छुटभैयों के कारण देश की जितनी क्षति हुई है, उसकी उजाले बाँट दो भरपाई करा कर देश को विकास पथ पर अग्रसर कराने का उत्तरदायित्व भारत के बहुसंख्यक हिन्दू जनगण का ही है। कर्मठ हिन्दू उत्तरदायित्व को सौभाग्य मानता है। उसे पता है कि उत्तरदायित्व का सम्मान करने वाले को उसे निभाने का वरदान प्राप्त हो जाता है; तदनुसार संसाधन भी उपलब्ध हो जाते हैं। और, यह जानी हुई बात है कि अवतारभूमि भारत, भारतीय संस्कृति तथा हिन्दुत्व को हानि पहुँचाने की कुचेष्टा करने वाला कहीं का नहीं रहा। हिन्दू प्रतीक्षा करता है कि नासमझों को भी यह बात समझ में आ जाये। परन्तु हर बात की एक समय- सीमा होती है। जिसने नासमझी को ही अपनी लीक बना ली हो, उससे किसी समझदारी की उम्मीद करना बेकार है। प्रत्येक क्षण कीमती है और उसका सदुपयोग भारत के हि‍त में हो, यह भी हिन्दुओं के उत्तरदायित्व में शामिल है। निकम्मों को छोड़कर और बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ते जाने की कला में हिन्दू निष्णात है। और, इस दिव्य सबल योग्यता में निहित है भारत का प्राचीन गुण-गौरव तथा उज्ज्वल भविष्य। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 08.05.2022 बड़ा दिखने का चक्कर

बड़ा दिखने का चक्कर बड़ा बनना अच्छी बात है, लेकिन बड़ा दिखने का चक्कर चलाना बहुत खतरनाक है। दिखने-दिखाने का पाखण्ड अधिकतर उसके द्वारा किया जाता है, जो सामर्थ्यहीन होने के बावजूद, किसी बड़े पद पर काबिज हो गया हो। जबाहरलाल को लेकर यही हुआ था। विडंबना है कि भारत की जनता ने जबाहरलाल को प्रधान मंत्री नहीं बनाया था !!! जबाहरलाल सांस्कृतिक दृष्टि से मुसलमान थे, यह उन्होंने स्वयं माना है। हिन्दुओं के प्रति उनके मन में हीन भावना थी जो समय-समय पर प्रकट होती रही। ''हिन्दुस्तान'' के प्रधान मंत्री से हिन्दुत्व के प्रति जो उत्तरदायित्वपूर्ण सम्मान अपेक्षित था, जबाहरलाल में उसका नितान्त अभाव था। इस अनकहे तथ्य को समझ कर भारत का बहुसंख्यक जनगण आहत हुआ। वह तो भारतीय शालीनता थी जिसने जबाहरलाल को लम्बा कार्यकाल पूरा करने दिया; अन्यथा इस हिन्दू विद्वेषी आदमी को, केवल अपने को बड़ा दिखाने का चक्कर चलाने की इतनी सुविधा न मिली होती। भारत जब स्वतंत्र हुआ तब, प्रधान मंत्री का चयन करने वाली समिति के मतानुसार, श्री बल्लभ भाई पटेल इस महत्वपूर्ण पद केलिए चुने गये थे। परन्तु जब मोहनदास करमचन्द गाँधी ने बल्लभ भाई को कहा कि तुम प्रधान मंत्री बनने से इन्कार कर दो, तो उन्होंने विनम्रता के साथ गाँधी की आज्ञा का पालन किया। और, समिति के मत के विपरीत जाकर मो.क.गाँधी ने जबाहरलाल को स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधान मंत्री बना दिया। मो.क.गाँधी का कुतर्क था कि वे जबाहरलाल के बाप को वचन दे चुके थे कि उसी के बेटे को प्रधान मंत्री बनायेंगे !!! यानी चयन समिति एक ढ़कोसला मात्र था।जिस भारत ने ब्रितानी उजाले बाँट दो शासकों को पदचच्युत कर दिया था और उन्हें वहिर्गमन को विवश किया, उस भारत का प्रधान मंत्री बनना बड़ी बात थी। जबाहरलाल को वही बड़प्पन हाथ लग गया। उसे ही भुनाने में उन्होंने लगभग सारा समय निकाल दिया। वह समय बहुत नाजुक था। देश के जनगण ने अत्यन्त कठिनाई से स्वतंत्रता हासिल की थी। मुसलमान आक्रान्ताओं और ब्रितानी राजकामियों ने भारत को लूट का माल समझ रखा था। उनके कारण राष्ट्र को भारी क्षति हुई थी। उन सारी हानियों से देश को उबारने केलिए कुशल नेतृत्व की आवश्यक्ता थी। लेकिन जिन्हें मो.क.गाँधी द्वारा प्रधान मंत्री बनाया गया था, वह तो खुद को बड़ा दिखाने का ही चक्कर चलाते रहे। किसी देश की सेवा केलिए प्रधान मंत्री होता है; परन्तु दुर्भाग्य से जबाहरलाल नामक व्यक्ति को बड़ा बनाने की दुर्भायपूर्ण मंशा से उसकी सेवा में ''भारत'' को ही परोस दिया गया। इतिहास आकलन करेगा कि भारत पर जबाहरलाल का थोपा जाना कितना अलोकतांत्रिक और हानिकारक था। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 05.05.2022 आदत

आदत भारतीय बहुसंख्यक जनगण की व्यक्तिगत तथा सामाजिक आदतें सराहनीय हैं। परन्तु बिना सोचे-समझे डलबाई गयी एक आदत, छोड़नी ही होगी, अन्यथा उसका परिणाम बहुत बुरा होगा। हमें सिखाया गया है कि हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई है। परन्तु हम देखते कुछ और हैं। हिन्दुओं की इस खामख्याली का नाजायज लाभ उठा कर मुसलमान अनर्थ कर रहा है। हमारे बच्चों को नहीं बताया जाता है कि अफगानिस्तान कभी हिन्दू देश था; अब वहाँ हिन्दू का नामोनिशान नहीं है। क्या भारत भी उसी दिशा में नहीं बढ़ रहा है? जब तक हम मुसलमान को अपना मानने की आदत नहीं छोड़ेंगे, तब तक उसे राष्ट्र की पीठ में छुरा भोंकने की सुविधा मिलती रहेगी। इस पर मत जाइये कि भारत का मुसलमान कभी हिन्दू था; यह अकाट्य बात है कि वहमुसलमान बनते ही भारतमाता का शत्रु बन गया। आर्ष वचन है कि मुसलमान के कारण मानव क्रमविकास की गति अवरुद्ध हो गयी है। पशु से मनुष्य बनना विकास के बीच की एक अवस्था है; मानव को अतिमानव बनना है। इसके स्वाभाविक लय को अवरुद्ध करने केलिए अपशक्तियाँ मानव शरीर में धरती पर टिड्डी दल की तरह फैल गयीं; उनके इसी षडयंत्र का नाम मुसलमान है। सबसे पहले हमें भारत को मुसलमानमुक्त कराने का मन बना लेना है। उसके बाद कारगर योजना तैयार कर उसे कार्यान्वित करना है। परम पिता परमेश्वर हमारे साथ हैं; उनकी कृपा से प्राप्त मानवीय सामर्थ हमें सफल बनायेगा और हम परमप्रभु की आज्ञा के पालन की आदत डालेंगे। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 04.05.2022 हिन्दू और भारत

हिन्दू और भारत (यहाँ 'हिन्दू' में जैन-बौद्ध-सिख भी शामिल हैं) किसी स्थान में रहने से अधिक महत्वपूर्ण है वहाँ का होना। हिन्दू कहीं का हो, उसकी जड़ें हिन्दुस्तान में ही होती हैं। हिन्दू केलिए भारत का जितना महत्व है, उससे अधिक महत्व भारत केलिए हिन्दू का है; क्योंकि हिन्दू ही भारत को भारत बनाये रख सकता है। हिन्दुस्तान में रहने वाला गैरहिन्दू अगर हिन्दू विद्वेषी है, तो वह हिन्दुस्तानी नहीं माना जा सकता। वह एक ऐसा बेईमान किरायेदार है जो किराया अदा नहीं करता, अपने भद्दे-गलत रहन-सहन से मकान को क्षति पहुँचा रहा है, जिसके कारण भवन की प्रतिष्ठा घूमिल हो रही है, वह इसके आदि वासिन्दों से ईर्ष्या करता है-- उनका अस्तित्व मिटाना चाहता है। किसी कारण से धर्मच्युत होकर जो अब गैरहिन्दू बन चुका है, उससे हिन्दुत्व के प्रति किसी सम्मान की अपेक्षा करना बेकार है। वह चोट खाये विषधर की तरह खतरनाक बन गया है। उसकी आक्रामकता निराधार होने पर भी भारत तथा हिन्दुत्व केलिए अत्यन्त हानिकारक है।'भाईचारा' का एकतरफा प्रस्ताव निरर्थक सिद्द हो रहा है। तुष्ट‍ि करण का प्रयास राजनैतिक प्रपंच बन कर रह जाता है। इन दोनो की कोई सामाजिक सार्थकता नहीं है। बहुसंख्यक भारतीय जनगण को बहुत सतर्कता से भारत एवं हिदुत्व की सुरक्षा इसके सम्मान के प्रतिरक्षण तथा विकास के प्रबन्धन पर ध्यान देना है। याद रहे, भारत का गैरहिन्दू ऐसा बेगैरत जीव है जिसे अपना नहीं बनाया जा सकता। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 01.05.2022 रट्टा

रट्टा कांग्रेस पार्टी के पास बात-विचार का ऐसा अकाल हो गया है कि उसके प्रवक्ता घिसे-पिटे सम्वादों का रट्टा मारते रहते हैं। उनका यह संकट तब और गहरा जाता है, जब उन्हें प्रधान मंत्री श्री मोदी जी के विरुद्ध बोलना होता है। छिद्रान्वेषी यंत्र से भी ढ़ूंढे़ कुछ नहीं मिलता, तब किसी चुक चुके अप्रासंगिक डाल पर बैताल की तरह कूद कर पहुँच जाते हैं। एक समय की बात है कि प्रधान मंत्री श्री मोदी जी किसी विदेश यात्रा से स्वदेश लौट रहे थे, रास्ते में पाकिस्तान आया और वहाँ के तत्कालीन प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने अनौपचारिक टेलीफोन बातचीत के बीच उन्हें आमंत्रित किया। यह निमंत्रण बिल्कुल व्यक्तिगत था; उस दिन नवाज शरीफ के परिवार की किसी कन्या का विवाह था। बस, कांग्रेस नामक बैताल ने इसे अपना टेक बना लिया है। इसमें उन कमबख्तों ने एक आइटम जोड़ दिया-- बिरयानी !! मौके-बे-मौके बकने लगे कि नरेन्द्र मोदी बिरयानी खाने पाकिस्तान गये थे । कांग्रेसियों को यह समझने की बुद्धि तो नहीं ही है कि उनके निरंतर गिरते ग्राफ को नीचे गिराने में इस बेहूदे-भद्दे रट्टे का कितना योगदान है। तथास्तु।

Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 26.4.2022 घुसपैठिये और घूस

घुसपैठिये और घूस विषम स्थिति है; रोहिंगिया और बांग्लादेशी जत्थों को भारत की अनेक सीमाओं से अंदर घुसाना और यहाँ रहने-सहने का ''इन्तजाम'' कराना एक काला धंधा बन गया है। इस राष्ट्रविरोघी कलुषित व्यवसाय का वित्त-यंत्र है ''घूस''। सीमावर्ती चुस्त पहरे में सेंध लगा कर उन्हें प्रवेश कराने से लेकर जन्म प्रमाणपत्र, नागरिकता, रोजगार, जर-जमीन, घर-दुआर और मुफ्त राशन तक का गैरकानूनी प्रबन्ध हो जाता है। उन नकली नागरिकों को भारत सरकार, राज्य सरकार तथा भारत के असली नागरिकों के विरुद्ध बोलन-चलने का पूरा अधिकार होता है। वे भाड़े पर उठने वाले भीड़तंत्र के मुखर तत्पर यंत्र होते हैं; कहीं भी अराजकता फैला सकते हैं। उनको लाचार, बेचारा, असहाय, साधनहीन, विवश, दुखी, प्रताडि़त बताया जाता है। उनकी पीड़ा को विश्व समाचार पटल पर रखने के उद्देश्य से, एक विदेशी संवाददाता उस नकली समुदाय के एक सदस्य से कुछ जानना चाहता था; उसे लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ी क्योंकि वह खाया-पिया, संतुष्ट-सा दिखने वाला तथाकथित पीडि़त आदमी अपने कीमती सेल फोन पर किसी गैरभारतीय भाषा में बात कर रहा था। उसकी फोन-वार्ता की दीर्घता संवाददाता केलिए जब असहनीय हो गयी और उसने उठ कर चल देने का संकेत दिया, तब उस रोहिंगियाश्री ने झटके से फोन काटा, अपने आवास के भीतर गया, अति आधुनिक अंतर्वस्त्र के ऊपर गंदी-फटी कमीज डाल कर संवाददाता महोदय के रू-ब-रू हुआ। वह अपनी गृहणी को कहता आया था; थोडी ही देर में सुगंधित चाय से भरे दो कप उजाले बाँट दो भी आ गये। चाय की चुस्की के साथ वह अपनी व्यथा-कथा सुनाने लगा। चतुर संवाददाता सुनने से अधिक गुनने लगा था। उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह व्यक्ति नितान्त कृतघ्न है; जिस परदेश में यह सारी सुख-सुविधायें पाकर जीवन यापन कर रहा है उसी के विरुद्ध विष उगल रहा है ! उससे रहा नहीं गया, उसने पूछ ही दिया-'आप तो आराम से रह रहे हैं न ?''खाक आराम है, हर घड़ी विदेशी होने का ताना देते रहते हैं।''आप तो यहाँ विदेशी ही हैं।''नहीं जी ! मेरे पास नागरिकता प्रमाणपत्र है।' *भारत में जिस तत्परता से कोरोना-निरोधक टीका तैयार किया गया, उसी उद्यता से रोहिंगिया-बांग्लादेशी जन-संक्रमण से देश को बचाने केलिए प्रतिरोधी नीति बनानी होगी। कोरोना की तरह ही रोहिंगिया-बांग्लादेशी घुसपैठी राष्ट्र केलिए संहारक रोग है। भारत की संस्कृति तथा इसके ऐश्वर्य, गुण-गौरव की रक्षा हेतु देश का बहुसंख्यक जनगण केन्द्रीय सत्तासीन दल के साथ है। अविलम्ब रोहिंगिया-बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत की सीमा से बाहर करने का कानून बना कर कार्यान्वित किया जाय। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 20.4.2022 अपेक्षायें

अपेक्षायें संसार भर में छाये भारत-विद्वेषी गैंग के एक बेचारे को लम्बी उसाँस भर कर कहते सुना-- लगता है कोरोना के उपचार की दवा भी भारत ही बना लेगा । इस आह भरे कथन में भारत को श्रेय मिल जाने की आशंका से होने वाली ईर्ष्या भरी थी; दवा बन जायेगी, इस सम्भावना की खुशी नहीं दीखी। ऐसे हीन मनोभावों के काले वादल को चीरते हुए भारत सदा ही वैश्विक अपेक्षाओं पर खरा उतरा है। चूँकि भारत मानव संसाधन की विलक्षण क्षमताओं से सम्पन्न है इसलिए यह सम्भव हो पाता है । और, भारत की यह सम्पन्नता नयी नहीं है; युगों से आर्ष भारतीय अन्वेषक-वैज्ञानिक विश्व स्तर पर अन्वेषण तथा अद्भुत प्रस्तुतियों में अग्रणी रहे हैं।विकास पथ पर कदम रखने वाला अधिकांश नया-नबेला देश या तो भारत की प्राचीन महानता को जानता ही नहीं या जान कर भी उसे नकारता है। उसे यह स्वीकारने में तकलीफ होती है कि अनेक समस्याओं से जूझता भारत वैश्विक क्लेष दूर करने में सबसे आगे निकल जायेगा। उसे यह पता नहीं है कि भारत समस्या को कठिनाई नहीं बल्कि विकसित होने का अवसर मानता रहा है। और, इसी स्वभाव ने भारत को इतना समर्थ बनाया है। भारत केलिए पिछला हजार बरस अभिषप्त और विपत्तिकारक था; उस कालखण्ड में इसके धन-मान की भीषण हानि हुई। बर्बर मुसलमान आक्रान्ताओं और छली ब्रितानियों ने इसकी सम्पदा लूटने में क्रूरता और कुटिलता की सारी हदें पार कर दीं। दोनो भारत को ''हथिआने'' आये थे। लेकिन खोखली नवाबी और राजशाही दिखाने से अधिक कुछ नहीं कर पाये। दरअसल, क्रमविकास की दृष्टि से मनुष्य और पशु के बीच जो अंतर है, वही फर्क था भारतीय जनगण तथा मुसलमान-ईसाई घुसपैठियों उजाले बाँट दो में; और, यही था उनके ''फेल'' कर जाने का मुख्य कारण। लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से उनकी कुटिल चालें अब भी जारी हैं। कांग्रेस, कामनिस्ट, सत्ताकामी छोटे-छोटे दल भारत से भारतीयता मिटाने की कोशिश में खुद घिस-पिट रहे हैं। दुनिया भर में ''भारत विद्वेषी-हिन्दू विद्वेषी'' छुटभैयों ने अपनी दूकाने खोल रखी हैं; बिसाती तरह-तरह के gift लेकर बैठा है, फिर भी ग्राहक नदारद !! इस परिदृश्य के विपरीत, बन्धुत्व अभ्यासी भारत के युवा, देवदूत की तरह सारे संसार में Internet सम्हाल रहे हैं। उनके माध्यम से वैश्विक अंतरिक्ष पर भारतीय क्षमता, योग्यता तथा कार्यकुशलता अपनी छाप छोड़ रही है। भारतीय वैज्ञानिक केवल एक विषय के ज्ञाता भर नहीं हैं-- वे हैं संसार की प्राचीनतम सुगठित संस्कृति के ऊर्जावान राजदूत। *विद्वेषियों की जन्मजात अपदार्थता जन्य व्यथा को बूझते हुए, क्षमाशील भारत उन्हे माफी दे देगा। लेकिन, उन्हें ऐसी सलाह कभी नहीं देगा कि वे अपने इस मानसिक कष्ट से उबरने केलिए भारतीय स्वभाव के गुण ग्रहण करने का प्रयास करें। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 17.04.2022 निर्भयता बनाम भय

निर्भयता बनाम भय सनातन भारतीय आध्यात्मिक मान्यता है कि मानव स्वभाव का नियंत्रण आत्मा के हाथ में है। बाह्य स्थितियां स्वभाव को प्रभावित करती हैं; परन्तु उनका असर सतह पर और सामयिक होता है। उसके स्वभाव में जो गुण निहित हैं, उनमें निर्भयता का स्थान उच्च दीर्घा में है। आज का बहुसंख्यक भारतीय जनगण उन श्रेष्ठों का वंशज है जिन्होने भारत को ''भारत'' (प्रकाशयुक्त) बनाया। गंगा को पृथ्वी पर उतारना या समुद्र पर पुल बाँधना या ऐसे असंख्य अपौरुषेय पराक्रमों की कथायें myth नहीं,सत्य हैं। उन सारी घटनाओं के पीछे कोई-न-कोई उदात्त उद्देश्य रहा है और रही है सबल निर्भयता। इस निर्भयता में आतंक जैसी नकारात्मकता का प्रवेश नहीं है। जिसे आजकल आतंकी और आतंकवादी कहा जा रहा है, उन्हीं के मानसिक पूर्वजों ने भारत के असंख्य देवमंदिर तोडे और अकूत ज्ञान-सम्पदा को विनष्ट कर दिया। परनतु उन अभागों को पता नहीं था कि भारत का ज्ञान-ऐश्वर्य केवल पोथियों तक सीमित नहीं था। उस समस्त ज्ञान सम्पदा को अपनी ''स्मृति'' में सुरक्षित रखने वाले भारत के गुरु समर्थ शिष्यों को ज्ञान का आगार बना कर इस परम्परा को बनाये रखने का उत्तरदायित्व सौंप देते थे। गुरु-शिष्य की पवित्र परम्परा से भारतीय समाज माँग रही है भारत माता 2 को अनेक लाभ हुए; यह अपने कर्म को उदात्त प्रयोजन से संयुक्त कर सदा केलिए भयमुक्त होकर जीना सीख गया। इस निर्भयता को कभी-कभी लापरवाही समझने की भूल की जाती है। इसी नासमझी के मारे मुसलमान और ईसाई दोनों समुदाय अपनी कालिख लगी कूची भारत पर फेरने में लगे रहे हैं। लेकिन बाह्य स्तर पर असावधान दीखते भारत की सतर्क आत्मा उन पतितों की कूची उन्हीं पर फिरा दिया करती है। तब भारत में रह रहे उपरोक्त दोनों समुदाय और उनके चमचे घिघिआ कर अपना भय जाहिर करने लगते हैं कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साजिश चल रही है !!! ले बलैया ! तो तुम इस देश को क्या समझ रहे हो? मक्का-मदीना या वैटिकन ? एक ओर भारत का बहुसंख्यक जनगण, संतुष्ट निर्भय जीवन जी रहा है तो दूसरी ओर यहाँ का अधिकांश मुसलमान और ईसाई हीन मानसिकता का शिकार हो कर सिर धुनता रहता है कि भारत में उनका ''राज'' क्यों नहीं है। कारण यह है कि इस्लाम और क्रिश्चनिटी राजपरक रेलिजन हैं; और हिन्दुत्व के अंतर्गत धर्म का राज नहीं, बल्कि राज का धर्म होता है। एक ही स्थिति में यहाँ, जब उचक्का दुराचारी बात-बेबात भयभीत होता रहता है, तब हीनता और दुराचरण को पास फटकने नहीं देने वाला बबहुसंख्यक जन निर्भय जीवन जीता है

सुधा सिन्हा 14.4.2022 कुलदेवता

कुलदेवता सामाजिक सौहार्द्य पर तर्क-वितर्क हो रहा था। देखते-देखते तीखी नोक-झोंक होने लगी। दरअसल, जब एक पक्ष की प्रतिभागी महिला ने हिन्दुओं की पूजा-पद्धति और उनके अनगिनत देवी-देवताओं पर भोड़ा कटाक्ष कर दिया, तभी स्थिति बिगड़ गयी। एंकर के साथ विश्लेषक ने स्थिति को सम्भालने की कोशिश की। *परन्तु लीपा-पोती से यह स्थिति सम्भलने वाली नहीं है।हिन्दू- विद्वेषी समूह, अपने मनोविकार को सजा-धजा कर दुनिया भर में पोस्ट कर रहा है; उसे इस बात की परवाह नहीं है कि उसकी बातें कितनी हास्यास्पद होती हैं। लेकिन ! उन बेतुकी बातों को हँसी में उड़ा कर छोड़ देना भी हिन्दुओं के हित में नहीं है। हिन्दू-विद्वेषियों को समय पर और सही उत्तर मिलना ही चाहिए। यह कह कर टाल देने से काम चलने वाला नहीं है कि वे लोग अज्ञानवश ऐसा करते हैं। हिन्दुत्व ''धर्म'' है। धर्म शब्द का अनुवाद करने केलिए अंग्रेजी में कोई उपयुक्त शब्द नहीं है। इसे रेलिजन नहीं कहा जा सकता। अंग्रेजी शब्द रेलिजन का भावार्थ है 'बाँधना', जबकि ''धर्म'' का प्रयोजन ''मुक्ति'' है। संसार के प्रचलित रेलिजनों से सर्वथा भिन्न यह ''धर्म'' राजाश्रय में नहीं पलता; बल्कि स्वयं ही हिन्दू हृदयों पर राज करता है। इस ''धर्म'' में जो देवत्व है, वह माता के समान प्रेम से सुख-सुविधा देकर पालन-पोषण करता है, पिता की तरह सुरक्षा देता है और गुरु बन कर अज्ञान दूर कर देता है। यह ''धर्म'' गाढ़े समय में काम आने वाला मित्र और अपनत्व देने वाला प्रेमी है। इस ''धर्म'' के अनुग्रह से हर हिन्दू को अपना इष्ट चुनने की छूट है; व्यक्ति अपनी आत्मा के आदेश पर, ''धर्म'' की देवत्व उजाले बाँट दो गुंफित व्यापक सत्ता में, अपने मनोनुकूल आश्रय ढ़ूँढ़ लेता है। और, वही श्रद्धास्पद आश्रय व्यक्ति का, समूह का, गाँव का अथवा कुल का देवता होता है। यह है हिन्दुत्व का चमत्कार; एक ही अग्नि अपने विविध रूपों में प्रदीप्त होकर व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक को आलोकित करती है। और, यही आलोक हिन्दू को सामर्थ्यवान बनाता है, उसके परिवेश को महिमा मंडित करता है। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 11.04.2022 अनायास

अनायास? किन पुण्यों के सुफल से हमें भारत में हिन्दू होकर जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, यह तो ज्ञात नहीं है, परन्तु ऐसा विश्वास है कि सकारात्मक जन्म-जन्मान्तर ने इस स्तर पर पहुँचने का हमारा मार्ग प्रशस्त किया है; यह आकस्मिक नहीं है, इसमें कोई संदेह नहीं है। एक जीवन को, जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त, परीक्षाओं की श्रृंखला बाँधे रखती है। पिछले परिणामों से बेहतर करने का मौका हमें मिलता है। कभी हम उसका लाभ उठाते हैं, कभी अपनी कमियों या परिस्थितियों के शिकार होकर चूक जाते हैं। अपने-आप से लेकर स्थिति तथा परिवेश तक को नियंत्रित करने का कौशल भी कुछ हद तक हममें निहित रहता है; इस जन्म में हम जो नया सीखते हैं, उसका सूक्ष्मांश जीवात्मा के भंडार में जमा होता रहता है। हिन्दू सहिष्णु है, गुरुजनों के प्रति श्रद्धाशील है, अहिंसक है -- यह सब उसके अनेक जन्मों की कमाई है। अपने इस ऐश्वर्य को वह जितनी कुशलता से काम में लायेगा, उसी अनुपात में उसकी समृद्धि होती जायेगी। कोई हिन्दू-विद्वेषी यदि इन सकारात्मकताओं को नकारात्मक नकाब से ढ़ँकने की कोशिश करे तो हम हिन्दुओं को विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे ही दुर्व्यवहारों केलिए हिन्दी का यह मुहाबरा है-- ''हाथी चले बजार, कुत्ता भुके हजार।'' लेकिन हिन्दू को आत्मश्लाघा भी नहीं पालनी है। सदा याद रहे कि हिन्दुत्व का अवदान अनायास नहीं है। ऋषि-मुनियों के तप और सामान्य जन के धैर्य तथा श्रम का सौम्य प्रतिफल है यह। इस उपहार के साथ हमें उत्तरदायित्व भी मिला है। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 30.03.2022 बिसात

बिसात किसी की हैसियत जाननी हो, तो उसे बोलने दें; उसकी भाषा, उसके हाव-भाव से आप उसके औकात तक पहुँच जायेंगे। यही हुआ दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के साथ; वह जब ''कश्मीर फाइल्स'' नामक फिल्म की निन्दा के बहाने प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी के विरुद्ध विषवमन करने लगा, बीजेपी संगठन के लोगों केलिए ऊल-जलूल बकने लगा, तब उसके उस लम्बे बकवास द्वारा प्रगट हुआ उसका अपना छोटापन। उसके मुँह से निकली हुई बातों की कालिमा उसके चेहरे पर कालिख पोत गयी। यह व्यक्ति चूड़ान्त पाखण्ड, वैमनस्य और हीनभावना से भरा है; इसने अपने-आप में कहीं भी किसी सकारात्मकता केलिए जगह रहने ही नहीं दी है। इतना ही नहीं, जिस किसी चीज अथवा व्यक्ति में उदात्तता हो, उसको यह अपना विपक्षी मानता है। अपने इस रोग के कारण यह राष्ट्रघाती बन चुका है। देश तथा हिन्दुत्व के शत्रुओं से साँठ-गाँठ कर यह राजनेता बनने का नाटक करता है। जिन्नावादी मुसलमानों और खालिस्तानियों के साथ इसकी घनी छनती है। राष्ट्र के शत्रुओं को तो ऐसे ही मिथ्याचारियों की तलाश रहती है। देश की राजधानी के मुख्यमंत्री पद पर बैठ कर राष्ट्र तथा संस्कृति को हानि पहुँचाने में लगे इस नकारात्मक अपतत्त्व पर शासन-प्रशासन की पैनी तथा सतर्क नजर बनी रहनी चाहिए। देश का बहुसंख्यक जनगण इसे अच्छी तरह पहचान गया है; अब यह public को धोखा देकर नहीं निकल सकता। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 24.03.2022 मेहरबान

मेहरबानी कई बार मुसलमानों को कहते सुना है कि भारत में वे हिन्दुओं की मेहरबानी पर नहीं रह रहे हैं। उनके कहने का तात्पर्य है कि वे अपनी कौमी हैवानियत के बल पर बने हुए हैं। हजार बरस से यहाँ हिन्दू-हनन में लगे रहने पर भी यह दरिंदा सम्प्रदाय हिन्दुओं की जीवन्त सहिष्णुता का रहस्य समझ नहीं पाया है। और, भविष्य में समझेगा इसकी कोई सम्भावना नहीं है। अपनी पाशविक हीनता और दिमागी दरिद्रता से नहीं निकल पाने के कारण यह कौम और भी बनैला होता जा रहा है। बहुविवाह, अनियंत्रित यौन, अनगिनत बच्चे पैदा करने को इस कौम ने अपनी युद्धनीति बना ली है। इसके अपवित्र दुराचरण की लम्बी फेहरिश्त है। अगर आप इसके किेसी कुचाल पर उँगली उठायें तो यह हंगामा खड़ा कर देता है; बात-बात पर इसका रेलिजन ही खतरे में पड़ जाता है। यह भारत सरकार तथाबहुसंख्यक हिन्दुओं को अपना शत्रु मानता है। राष्ट्र, हिन्दुत्व और सर्वोपरि मानवता की खातिर इस अर्धपशु सम्प्रदाय को इसकी औकात बता देनी है। भारत में इसे राजनैतिक चुनावों में मत देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। एक से अधिक विवाह करने पर नागरिकता छीन ली जाए और दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर सपरिवार देश निकाला हो। सरकार को कानूनी तौर पर और बहुसंख्यक हिन्दुओं को सामाजिक रीति से इसे बता देना है कि यह राष्ट्रघाती, हिन्दूविद्वेषी सम्प्रदाय किसी मेहरबानी का पात्र नहीं है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 22.03.2022 ज्ञान से कर्म तक

ज्ञान से कर्म तक बहुत-सी बातें जानने के बावजूद, उन्हें कर्म तक ले आने में हम लापरवाही बरतते हैं। कभी-कभी जानकारी एक निष्क्रिय संतोष दे देती है। अज्ञान से निकल कर हम सुरक्षित अनुभव करने लगते हैं। ज्ञान हमें कवच की तरह प्रतीत होता है। हमारे सामने जब कोई विपरीत परिस्थिति हो, तब इस कवच को हम अपनी बैठक की दीवाल पर प्रदर्शन केलिए छोड़ देंगे या शरीर पर धारण कर विद्वेषी-विपक्षी का सामना करेंगे ? *भारत युगों से ज्ञान और कर्म के बीच संतुलन बैठा कर अपनी संस्कृति को समृद्ध करता आया है। इसने सारे संसार को अपना कुटुम्ब माना। लेकिन इस उदात्त हिन्दू अभिवृत्ति तक दरिंदे मुसलमान या छली ईसाई की पहुँच नहीं थी; उन लुटेरों और ठगों ने इसे अपना शिकार बनाया; इसका भौतिक ऐश्वर्य लूटा, इसकी ज्ञान-सम्पदा को आग के हवाले कर दिया, जनगण की हत्या की और अनेक क्रूर दुष्कमों से मर्मान्तक कष्ट पहुँचाया।*कलियुग बीत चुका है। एकाग्रचित्त अर्जुन के इस देश को 'गीता' के अमिट संदेशों का स्मरण है। यह भ्रमित होने वाला नहीं है। इसके प्रबुद्ध जनगण का ही प्रताप है कि मुसलमानों की नवाबी धरी रह गयी। इसी सशक्त जनगण ने ब्रितानियों को लात मार कर बाहर कर दिया। अब, उन अभागों का बुरा हाल होने वाला है जो इस देवभूमि को मुसलमानी मंडी बनाने की मंशा पाले बैठे थे। वस्तुत: यह है ज्ञान से कर्म के योग का शुभमुहूर्त। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 21.03.2022 सफलता

सफलता कश्मीर में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार पर बनी एक फिल्म को लेकर बड़ा कोलाहल मचा है। दुखद बात है कि इस चर्चा से उन परिवारों के जख्म हरे हो गये हैं जिन पर दुख का वह पडाड़ टूट पड़ा था। जिस जनसमूह से इस कुकांड की भयानकता छिपायी गयी थी, उनकी संख्या बहुत बड़ी है। उन सब को इस सशक्त चलचित्र ने विचलित तथा संकल्पित कर दिया है। परन्तु ऐसे लोग भी हैं जो इसे हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्य बिगाड़ने वाली फिल्म बता रहे हैं ! हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्य ! ! ! अरे, काहे का सौहार्द्य ? कब बना सौहार्द्य ? किसने देखा ? किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो ? हिन्दू-मुस्लिम के बीच सौहार्द्य न कभी था, न अभी है, न आगे होगा। राजनैतिक या सामाजिक देहरी पर बड़ा बनने की कोशिश में लगे लोग ही इस नकली सौहार्द्य की पंखाडपूर्ण बात करते हैं; अन्य लोगों केलिए यह निरर्थक बकवास है। *हिन्दुओं को एक जुट कराने का जो काम बड़े-बड़े उपदेशकों से सम्भव नही हो पाया, वह इस फिल्म ने कर दिया; यह इसकी सबसे बड़ी सफलता है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 15.03.2022 अनिवार्य

अनिवार्य सारे तथ्यों की छान-बीन करने के बाद माननीय न्यायाधीश इस निर्णय पर पहुँचे कि मुसलमान औरतों केलिए हिजाव की कोई धार्मिक बाध्यता नहीं है। इस पर तमाम तरह की प्रतिक्रियायें आ रही हैं। मुसलमान अपनी औरतों केलिए हिजाव की अनिवार्यता पर अड़े हैं। मेरा सुझाव है कि पूरे मुसलमानी कौम केलिए हिजाव जरूरी कर देना चाहिए। उटुँग पाजामा, कद से लम्बा कुरता और खोपड़ी-टोपी मुसलमान मर्द की पहचान है; इस पर हिजाव थोपने का हमारा मकसद दूसरा है। दरअसल, मुसलमान मर्द हो या औरत, उसका चेहरा ही अशुभ होता है; ऐसा कि देखने से बना काम बिगड़ जाये। हिजाव से अपशकुन का खतरा कुछ कम जायेगा।ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है। बस, मुसलमानी कौम का एक नाम ''हिजावी'' भी हो जाये। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 23.02.2022 आपत्ति की विपत्ति

आपत्ति की विपत्ति कौन नहीं जानता कि भारत, मूलत: तथा निर्विवाद रूप से, हिन्दुओं की जन्मभूमि है ! हिन्दू विश्व के किसी भाग में रहता हो, उसे भारत के प्रति कमोवेश माता की ओर एक शिशु के खिंचाव जैसी ही अनुभूति होती है। हिन्दू केलिए भारतभूमि 'स्वर्गादपि गरियसी' है।भारत केलिए हिन्दू उसका आत्मज है। युगों से भारत को शोभनीय, ऐश्वर्यशाली तथा पवित्र बनाने का नैसर्गिक माध्यम हिन्दू ही है। हिन्दुत्व ने ही भारत को श्रेष्ठता प्रदान की है और इसे सभ्यसुसंस्कृत, हीनतामुक्त समुदाय का प्रतिष्ठित गेह बनाया है। हिन्दू होने का भाव और गुण कोई जड़ अवधारणा नहीं है; यह है हिन्दुत्व के रूप में प्रस्फुटित जीवन्त जीवनपद्धत्ति। भारतीय संस्कृति भारत की मूल भाषा संस्कृत के पालने में ही पली-बढ़ी है। इसकी सभी सशक्त, सारगर्भित, सरस बोलियां संस्कृतज ही हैं; स्थानीय स्वराघात के कारण उनमें जो भिन्नता आ गयी है, उससे न तो उनका मूल स्वभाव बदला है, और न माधुर्य में कमी आयी है। हिन्दुओं की श्रेयस्कर जीवनधारा सर्वसमावेशी है। वैचारिक विभेद भी इसे आहत नहीं करता, बल्कि सीखने तथा सिखाने को प्रेरित करता रहता है। इसकी श्रेष्ठ गुरुता तथा उत्तम शिष्यत्व जगतप्रसिद्ध है। अतिथि को देवतुल्य और शरणागत को उत्तरदायित्त्व मानते हुए 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' का मनोभाव रखने वाले भारत को मूढ़ मुसलमान आक्रमणकारियों और विद्वेषी ईसाई तिजारतियों के कारण अकूत हानि उठानी पड़ी। मुसलमानों और ईसाइयों का कदाचार मंदिर तथा मूर्ति भग्न करने तक ही सीमित नहीं रहा; भूखी लोमड़ी की तरह दोनों ने भारतीय संस्कृति को चबा डालना चाहा। लेकिन जब हिन्दुत्व की भैरव उजाले बाँट दो 2 भीमता भड़क उठी, तब उन दोनों अपकारकों को अपनी कुटिल मंशा सहित दाँतों से भी हाथ धोने पड़े। मुसलमानों और ईसाइयों ने हिन्दुत्व को टुटपुँजिआ रेलिजन समझने की भूल की थी। वे 'धर्म' का मर्म ही नहीं जानते थे। दरअसल, उनकी भाषा में न तो इस सारगर्भित शब्द का अनुवाद कर पाने की क्षमता है और न उनकी मेधा को अध्यात्म का स्पर्श ही मिला है। वे सौम्यता को दुर्बलता समझते रहे। मानव में निहित दिव्यता को समझ पायें, ऐसी बुद्धिमत्ता उनमें थी ही नहीं। उन्होंने अपने त्रुटिपूर्ण मापकडंडे से अमापनीय हिन्दुत्व का परिमाण मापने की कुटिल कुचेष्टा की। हिन्दुत्व को तो वे कमतर नहीं दिखा सके, पर स्वयं बौने हो गये। अपना कद बढ़ाने में असमर्थ बौने, अपनी संख्या बढ़ाने लगे। उन्होंने छल-बल-कल से हिन्दुओं को धर्मच्युत कराने का काला धंधा शुरु किया। मौलवी-पादरी का यही मुख्य पेशा बन गया। उनकी इन बेहूदी हरकतों के कारण, एक हजार साल तक देश दागदार होता रहा। जब जनगण के अथक प्रयास से भारत स्वतंत्र हुआ, तब मुसलमान-प्रेमी मोहनदास करमचन्द गाँधी ने गयासुद्दीन के पोते जबाहरमियाँ को सर्वेसर्वा बना कर देश का लगभग सात दसक और बरबाद करा दिया। मुसलमान हितैषी मोहनदास करमचन्द गाँधी को जब यह लगने लगा कि भारत का जनगण मुसलमान की भारतविद्वेषी चाल को समझ चुका है, तब उन्होंने जबाहरमियाँ के खानदान को 'गाँधी' उपनाम सौंप कर नकली हिन्दू बनाने की चाल चली। वे ऐसा कुटिल विबंध कर देना चाहते थे जिससे भारत सदा केलिए मुसलमानी शासन के अधीन रहे। परन्तु भारतमाता की चाह कुछ और ही थी। मुसलमान की अविश्वसनीयता हर क्षेत्र, संस्थान अथवा पद पर सिद्ध होती उजाले बाँट दो 3 चली गयी। इसलिए देश को मूर्ख बना कर चूना लगाने की इस गाँधीवादी चाल को जनगण ने सिरे से खारिज कर दिया। भारत के अंतरिक्ष से 'गाँधी' को इसलिए विलोपित होना पड़ा क्योंकि यह जानते हुए भी कि मुसलमान भारत का विनाश चाहता है, वे भारत पर मुसलमानी वर्चस्व की वकालत करते रहे। वे इतने मूर्ख तो नहीं ही रहे होंगे कि मुसलमानी कुटिलता को नहीं बूझते हों। तब क्या वे भारत को मुसलमानी देश बनाने के पक्षधर थे ? उन्होने हिन्दुओं को सम्बोधित कर कहा था कि अगर मुसलमान तुम्हारी हत्या करना चाहता है तो खुशी-खुशी जान दे दो !!! यह कैसी बात हुई ? भारत केलिए गाँधीवाद दमघोटू मुसलमानी दुर्गंध फैलाने वाला प्रदूषण बन कर रह गया। ऐसा कोई भी अपतत्त्व जो भारत के अस्तित्त्व तथा इसकी प्रतिष्ठा पर आघा‍त करने वाला हो, कभी भी सहन नहीं किया जा सकता। उसी अकुलाहट भरे काल खण्ड में भारतीय जनगण राष्ट्रवाद का सुभग, सबल, सटीक पट बुनता रहा। राष्ट्र के प्रति निष्ठा भारत केलिए कोई नयी बात नहीं थी। आसेतुहिमालय भिन्न- मिन्न रूप-रंग तथा वेशभूषा में संचरित विपुल जनसमुदाय का राष्ट्रप्रेम सदा से अक्षुण्ण रहा है। परन्तु उस विपरीत परिस्थिति में राष्ट्रवाद का ऐसा दीर्घ ध्वज भारतीय अंतरिक्ष पर लहरा उठा कि सभी देशद्रोहियों के झंडे-बन्डे की चूड़ें हिल गयीं।भार‍त हिन्दू राष्ट्र है, इस चिरकालिक सत्य पर जिन मूढ़ों को आपत्ति है उनके हाथ में उखड़े फटे झंडे का टूटा डंडा है और मुँह पर कालिख पुती है। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 14.02.2022 रिश्ता

रिश्ता क्यों और किसके कहने से, यह 'हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई' की अनर्गल आवाज लगायी जाती थी ? मुसलमान ने हिन्दू को, भाई समझने की बात तो दूर, सदा अपना शत्रु समझा। जब मुसलमान दरिंदें हिन्दू को कमजोर समझने के भ्रम में थे, तब इसे नाचीज मान कर इससे नफरत करते रहे; जब हिन्दू की दाहक शक्ति से मौलानाओं की दाढ़ी झुलसने लगी, तब वे घबड़ा कर इसे और अपने को भी कोसने लगे। प्रारंभ में मुसलमान केलिए हिन्दू की सौम्यता अजनवी चीज थी, बाद में तटस्थ हिन्दू तेज ने मतिहीन मुसलमान को कहीं का नहीं रहने दिया। उसके लिए एक ओर खाई तो दूसरी तरफ खंदक का खतरा था। अगर वह हिन्दू से भिड़ने की भूल करे, तो मिट्टी में मिल जाये और हथियार डाल दे तब जगहँसाई होनी ही है। संसार के और भागों में जैसा किया था, उसी तरह भारत में भी आकर मुसलमान दरिंदों ने विनाश की बेहूदी हरकतें कीं। मंदिर तोड़े, हत्यायें कीं और हाशिये के कुछ लोगों को मुसलमान भी बना लिया। परन्तु भारत के बहुसंख्यक हिन्दू केलिए मुसलमान हीन, म्लेच्छ और अस्पृस्य ही बना रहा। ऐसे में यह 'भाई' का रिश्ता पूरी तरह नकली और जाली है। निस्सन्देह,यह जालसाजी मुसलमान को फायदा पहुँचाने केलिए की गयी,लेकिन आज का हिन्दू इन सारे चक्रचाल में नहीं फँसने वाला है। उसकी श्रेयस्कर प्रगति की निरंतरता अक्षुण्ण है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 11.02.2022 असलियत

असलियत बुर्केवालियों को सिगरेट फूंकते मैने देखा। सम्भव है, आप ने भी देखा होगा। उन्हीं के बीच की एक, मुर्गी की तरह गले में लोच दे-दे कर, हिजड़ा नाच दिखा रही थी। उस नौटंकी में बुर्का-सह-हिजाब के पक्ष की पटकथा थी। नाम नहीं बताने का वादा लेकर, एक बुर्केवाली ने ही बुर्के के फायदे गिनाये। सबसे चलता-फिरता लाभ होता है, दुकानों से मनपसंद चीज चुरा कर बुर्के के अन्दरखाने पाकेट के हवाले कर देना। कई दूकानों को मैं जानती हूँ (नाम नहीं बता पाने के अनेक कारण है), जहाँ बुर्केवाली के आते ही 'हाइ एलर्ट' घोषित हो जाता है। जो दूकानदार बुर्केवाली को सामान्य मनुष्य समझने की भूल कर बैठते हैं, उन्हें भारी खामियाजा उठाना पड़ता है। इन दिनों बुर्के डिजाइनर होते हैं। उनके नीचे फटी-चिटी लुगड़ी भी चल जाती है। मुसलमान होने की पहचान बनाये रखने केलिए नहाने-धोने से परहेज किया जाता है; देह और उसमें पहने गये गंदे कपड़ों से उठती सड़ायँध को बुर्के पर डाला गया सस्ता सेंट यथासम्भव अन्दर-ही-अन्दर घुमड़ाये रखता है।बुर्का केवल गंदगी और दुर्गंध ही नहीं, अनेक प्रकार के पापों की परदादारी करने का साधन है। अत: किसी स्कूल या कॅालेज का ड्रेस कोड मान कर मुसलमान औरत अपने सारे पोल खोल देने का खतरा मोल नहीं ले सकती। भीतरी-बाहरी सारी मुसलमानी गंदगियों को छिपाने के साधन बुर्का को केवल मुसलमान औरत ही नहीं, मर्द भी बनाये रखने में जीजान से लगे रहते हैं। इस उद्गार को देखें -- ''कल जो नजर आयीं बेपर्दह चंद बीबियां, पूछा जो उनसे आपका पर्दा वो क्या हुआ? कहने लगीं कि अक्ल पे मर्दों मे पड़ गया।''

सुधा सिन्हा 09.02.2022 प्रकारान्तर

प्रकारान्तर सब समझ रहे हैं कि देश में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, आ चुका है और इसकी प्रक्रिया जारी रहने की सम्भावना है। इसका श्रेय देने के सवाल पर तर्क-वितर्क करने की आवश्यकता नहीं है; सारा श्रेय जनगण को जाता है। तब प्रतिप्रश्न उठता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जब मोहनदास करमचंद गाँधी के लाडले जबाहरमियां के कारण राष्ट्र रसातल में जा रहा था, तब जनगण कहाँ सोया पड़ा था। वस्तुत: जनगण कभी सोता नहीं है, अलसाता भी नहीं है। वह हतप्रभ जरूर होता है। उलझन में पड़ा हुआ जनगण जब अपने-आप में आया, तब तक आधी शताब्दी से अधिक का समय बीत गया। देश को छलने वाले नकली पंडित और मौके का फायदा उठाने वाले गाँधी element ने देश को मुसलमानों और अंग्रेजों से भी अधिक नुकसान पहुँचाने केलिए राष्टीय संस्कृति तथा हिन्दुत्व की हत्या केलिए औजार तैयार होते रहे। हत्यारा नम्बर वन था कांग्रेस और अनेक छुटभैये भी दल बाँधने लगे। कांग्रेस या कामनिस्ट अथवा लाल-हरी टोपीधारी कोई गिद्ध-पार्टी, सब की रीति-नीति एक ही रही है; सारे देश में हिन्दुत्व की शुभफसल में आग लगा कर, मुसलमानी बबूल की खेती करने की कुटिल मंशा के साथ सब राज करना चाहते थे। लेकिन भारत के जनगण ने इन सब के विद्वेषी इरादे पर पानी फेर दिया। सत्तारूढ़ कांग्रेस को धकेल कर धूल चटा दिया और अन्य बनैलों को चेतावनी देदी कि सिंह की खाल ओढ़ कर हुआँ-हुआँ करने वाले गीदड़ों का इससे भी बुरा हाल होगा।जनगण ने मन-मान-मर्यादा के अनुसार राजा चुन लिया। विरोधी खेमे की हरकतें कालीन की तरह बिछ गयीं। तथास्तु।

सुधा सिन्हा 04.02.2022 योगक्षेम

योगक्षेम योग कोई संयोग नहीं है। यह मानव की परम उपलब्धि है। हमें जो होना चाहिए, योग उस तक पहुँचाने का साधन है। यह साधना का राजपथ है। सबसे पहले यह शरीर को साधता है। प्राणवायु को अपने नियंत्रण में लेकर अणु-अणु तक संदेश भेजता है। सोये को जगाता है। जगे को सतर्क करता है। आंतरिक यंत्र को सक्रिय बनाता है। अवरोधित पुर्जों में तेल डालता है। ढीले पुर्जों को कसता है। यंत्र के समस्त अवयवों के बीच संतुलन लाता है। योग में एक सुस्थिर अखंड प्रशान्ति है। यह मानव तन-मन-प्राण की सारी हलचल को समेट कर उसे सुसंगत लय में बाँधती है। यह सुरक्षा आच्छाद बन कर बाह्य विसंगतिवों से भी बचाती है।क्षेम द्वारा योग की उपलब्धि सुरक्षित रहती है। इसकी क्रिया स्वचालित है। भगवत कृपा इसका संचालन करती है। मानव मन इस कृपा के प्रति जितना उन्मुख होता है़, उतना लाभ उसके पक्ष में जाता है। जो पूर्णत: अपौरुषेय है, योगक्षेम उसे मानव सुलभ बना देता है। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 03.02.2022 महोत्सव

महोत्सव सारे संसार को अपने-अपने समूह की पताका फहराते देख मच्छरों ने अपना कीर्ति स्तम्भ स्थापित करने केलिए सभा बुलाई। मंच पर आसीन थे मलेरिया महाराज, डेंगू सरताज तथा अन्य मानव रक्तशोषक अभियंता। प्रथम वक्ता ने सबका स्वागत तथा अग्रिम धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मुख्य विषय पर बोलना प्रारंभ किया।भाइयो और बहनों, आप सबको ज्ञात है कि दुष्ट मानव हमारे पीछे पड़ा हुआ है; तरह-तरह के कीटनाशक का छिड़काव कर हमें मारने और भगाने में लगा है। इतना ही नहीं, वह अपने शरीर, परिवेश, यहाँ तक कि नालियों-मोरियों तक को इतना साफ रखने लगा है कि हमारे भोजन केलिए कुछ बचता ही नहीं। हमारी रक्षा का एकमात्र केन्द्र है - अर्ध मानव मुसलमान ! यह अर्ध विकसित जीव अपनी देह तथा अपने गेह को इतना गंदा और दुर्गंधित रखता है कि हमारे लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त इस समुदाय की खूबी है कि यह दिन-दूनी रात-चौगुनी अपनी संख्या बढाता जाता है; इसलिए यह हमें भोजन संकट से उबार लेगा। हमें इस समुदाय का कृतज्ञ होकर इसी के आस पास इसके गुण गुनाते रहना चाहिए। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 26.12.2021 अजमेर का भूत

अजमेर का भूत जिसने भी अजमेरी भूत की भनभनाहट सुनी, उसे समझने में देर नहीं लगेगी कि यह है हिन्दू जनजागरण के त्रास से मरे-मुसलमान को कब्र तोड़ कर निकालने की कुचेष्टा। स्वतंत्र भारत में जबाहरमियां और उसके खानदान के सत्तासीन होने पर मुसलमान को इतमीनान हो गया था कि वह चार बीबियों से चालीस पिल्ले पैदा कर जल्दी ही भारत को गर्त में पहुँचा देगा। लेकिन यह कौन- सी बयार चली जिसने मुसलमान को बदहवास कर दिया !!!भूत कहना चाहता है कि हिन्दू अपने को बनाये रखने की ''साजिश'' कर रहा है, इससे उसे मिटा देने के मुसलमानी एजेंडे में बाधा पड़ रही है। अब तक हिन्दुओं की कमाई पर बैठे-बैठे गुलछर्रे उड़ाने वाले मुसलमानों को भूत उपदेश दे रहा है कि हाथ-पैर हिलाओ। केवल जामिया मीलिया और अलीगढ़ में राष्ट्रहंता गढ़ने से काम चलने वाला नहीं है; पूरे भारत को भूतखाना बना दो।*मुसलमानो को सम्बोधित यह संदेश हिन्दुओं केलिए है। उन्हें सजग कर कहा जा रहा है कि केवल जागरण काफी नहीं है, प्रेतबाधा दूर करने केलिए महायज्ञ करना है।

सुधा सिन्हा 12.12.2021 वास्तविकता

वास्तविकता किसी ने मुसलमानों की हीनता को लक्ष कर कहा कि यह कौम तो 'कुत्ते की जात' है। मै इससे असहमत हूँ; कुत्ता बहुत वफादार होता है। उसे गृही और घुसपैठिये की सही पहचान होती है और वह यथोचित व्यवहार करता है। वह कभी भी मनुष्य को कुत्ता बनाने का प्रयास नहीं करता। कुत्ता जहाँ रहता है, उस घर अथवा परिवेश को अपना मानता है। लेकिन वह इस कुचेष्टा में नहीं लगा रहता कि मालिक या वहाँ के मूल निवासियों को मार कर सबकुछ हथिआ ले। कुत्ता सिखाने से सीखता है। वह अकर्मण्य नहीं होता। वह बात-की-बात में उपयोगी बन जाता है। उसमें जन्मजात सौहार्द्य होता है। एक पालतू कुत्ता अपने बुजुर्ग स्वामी के निधन पर रो रहा था। लोगों ने बताया कि वह खाने को भी मुँह नहीं लगा रहा है। परिवार के अन्य सदस्यों के पैरों से लिपट कर वह अपनी व्यथा तथा समवेदना प्रकट कर रहा था। उसकी कोमल और छलहीन निष्ठा ने लोगों को अभिभूत कर दिया।किसी भी संदर्भ में, मुसलमान को कुत्ता कहने से कुत्ते जैसे विश्वसनीय और संवेदनशील जीव का अपमान होता है। *आपने समाचार देखा ही होगा; J. K. Bank ने एक मुसलमान महिला कर्मचारी को उसके निन्दनीय, नियमविरुद्ध आचरण केलिए निकाल बाहर कर दिया। जब परम नायक स्वनामधन्य विपिन रावत जी के असमय निधन ने, एक छोर से दूसरे छोर तक सम्पूर्ण भारत को शोकाकुल बना दिया था, तब वह बेगैरत मुसलमान औरत उनके प्रति जहर उगलने में असंवैधानिक रूप से सोसल मीडिया का भी दुरुपयोग करने में लगी थी।बैंक द्वारा, उस मुसलमानी विकृतिग्रस्त औरत के विरुद्ध, संवैधानिक प्रवधानों के अनुसार कार्यवाई की गयी। बैंक ने इस बात का भी खयाल रखा कि बेहूदे मुसलमानी दुराचरण के कारण, उसके स्वस्थ मानसिकता सम्पन्न बहुसंख्यक ग्राहकों की भावनायें आहत न हों। सम्भव है, बैंक को इस बात की चिन्ता हो गयी होगी कि लोग उन्हें बैंक के बदले पागलखाना न समझ लें। ॐ

सुधा सिन्हा 10.12.2021 दुष्टिकरण

दुष्टिकरण सार्वजनिक भूमि को हथिआने में लगे मियंटाओं का नमाजजिहाद बढ़ता ही जा रहा है। इसे साधारण रोग से नासूर बनाने में सरकारी तंत्र का भी योगदान है। यह गैर कानूनी धंधा जिस तरह देश की सांस्कृतिक विरासत को लूट रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। क्या यह बात मानी जा सकती है कि शासन-प्रशासन इससे अवगत नहीं है,? इतना ही नहीं, पुलिस के सिपाही तो नमाजजिहादी गुंडों को भगाने की कोशिश करने वाले राष्ट्रवादियों को ही पकड़ कर ले गये। इसका नतीजा भयावह है !!!!!!1.भारत में जिहादी मियंटाओं का मनोबल बढ़ रहा है। 2.‍ जनता सरकार को नाकाम मानने लगी है। 3. राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल उठने लगा है।4. राष्ट्रवाद को सरकार-विरोधी माना जाता है।5. राजनैतिक वेश्यावृत्ति ही secularism बन गया है। 6. 'धर्म' की ग्लानि होने से 'महाभारत' हो रहा है। धृतराष्ट्र की भूमिका अपनाने वाली सरकार द्वारा मियंटा और उसके वोटार्थियों का दुष्टिकरण जोर पकड़ चुका है।

सुधा सिन्हा 23.11.2021 राष्ट्रघाती

राष्ट्रघाती कांग्रेसी मणिशंकर अय्यर का पाकिस्तान जाकर न्योता देना, सम्भवत: आपको भी याद हो; वह घरेलू निमंत्रण नहीं था। वह थी, शत्रु देश के साथ मिल कर, भारत की तत्कालीन सत्तासीन सरकार को उखाड़ फेंकने की असफल कोशिश। उसने पाकिस्तान से गुहार की थी-उनको हटाइये, हमें लाइये !!! भारत की हानि के जाल बुनने केलिए ही जिस कांग्रेस का गठन किया गया हो, उससे हम किसी शुभ-लाभ की तो अपेक्षा नहीं ही कर सकते। परन्तु इस गये-बीते दल में भी मणिशंकर अय्यर की जगह कूडेदान में ही बनती है। मलिनता का प्रहरि बने रहने की अपनी उपयोगिता सिद्ध करने केलिए यह सदा ही देश को हानि पहुँचाने की बातें करता है। इन दिनों, भारत का उत्कर्ष देख-सुन कर इसका मुँह अधिकाधिक स्याह पड़ता जा रहा है। भारतीय सैन्यबल की जगत प्रसिद्धि से तो यह अधमरा ही हो गया है; हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगा है--सेना को इतना सशक्त मत बनाओ-- इसकी कीर्ति सही नहीं जाती। दरअसल, भारतीय सेना की धमक ने इसे शत्रुओं के खेमे में जाकर मुँह दिखाने लायक नहीं रहने दिया। राष्र्रघाती की यही करम-गति होती है। अपने ही विष की आग में जलने वाले साँप की तरह सर पटक-पटक कर मरना इसकी नियति है।

सुधा सिन्हा 16.11.2021 विकास की पटकथ

विकास की पटकथा क्रमविकास में मानव विभिन्न स्तरों तथा स्थितियों से गुजरता रहा है। एक 'देहप्रधान' स्तर था। उसमें चेतना मुख्यत: बाह्य पदार्थो के साथ ही संलिप्त रहा करती थी। अपनी प्रारंभिक अवस्था में मस्तिष्क भी तटस्थ था; उसमें भले-बुरे के बीच विभेद करने की क्षमता धीरे-धीरे विकसित हुई। मन-मस्तिष्क अनुमन्ता बन पाया इसके पहले, इन्द्रियों की उत्तेजना के संदेश पर ही शारीरिक क्रियायें होती थीं।सारे संसार में मानव अपने-अपने ढंग से विकसित हुआ। इस सूक्ष्म विकास की गति और गुणवत्ता में भारत अग्रगण्य रहा। भारतीय ऋषि-मुनियों को सृष्टि में दिव्यता का अनुभव हुआ था। उन्होंने तपस्या के द्वारा नश्वरता में निहित अमरता का सूत्र उपलब्ध किया, उसे मानवोपयोगी बनाया। उनका उद्देश्य मानव जीवन को ''आत्माप्रधान'' बनाना था। यह एक स्वचालित क्रिया थी; इसे त्वरित करने हेतु 'योग' पथ का अनुसंधान अनुकूल सिद्ध हुआ। सनातन काल से ही भारतीय आध्यात्मिकता मानव को उच्च स्तरों तक पहुँचने केलिए सक्षम बनाने लगी।‍ निर्देश देने तथा उदाहरण प्रस्तुत करने हेतु मानव शरीरधारी दिव्यता का अवतरण होने लगा। क्रूर पशुता, तामसिक जडता, जटिल मूढ्ता, यौन उच्छृंखलता को मानव तिलांजलि देने लगा। मानव चेतना से निष्कासित हीनतायें संसार के उन भागों में जड़ जमाने लगीं जहाँ विकासहीन जड़ता और खौफनाक मूढ़ता का बोलबाला था। यहाँ तक कि वहाँ अवतार को ही सूली पर चढा दिया गया। इतना ही नहीं, उस जघन्य कुकृत्य को opportunity उजाले बाँट दो 2 की तरह भुनाया और दिव्यता के विरुद्ध सूली को औजार बना लिया। इसके देखा-देखी, एक दूसरा दस्यु दल भी संसार की विकासशील संस्कृतियों को मिटाने का अपना बूचड़खाना खोल कर बैठ गया। भारत में भी पतित मंशा लेकर दोनों दरिंदे बार-बारी से घुस आये। विकास पथ पर अग्रसर भारत, उन दोनों की क्रूर कुटिल हरकतों से हतवाक हो गया। अपने को सँभालने में देश को समय लगा, परन्तु मुक्त होने का जो प्रयास प्रारंभ हुआ, उसका सिलसिला आज भी बन्द नहीं हुआ है। क्योंकि छल और पाशविकता के बल पर कुछ काल केलिए भारत की सत्ता हथिआने वाले उन परदेशी दरिंदों की नाजायज औलादें भारत में मौजूद हैं; इस देवभूमि का ''बने रहना'' इन जारजों को नहीं देखा जाता। भारत केलिए मुसलमानी आक्रान्ता और ब्रितानी तिजारती जितना अबांछनीय था, उन दोनों केलिए भारत उ‍तना ही कठिन शिकार बना रहा। संसार भर में फैलने वाला अभिशप्त ब्रितानी ''राजकामी'' भारत से निष्कासित किया गया। दरिंदा मुसलमान जो भरी-पूरी उन्नत संस्कृतियों को साल-दो-साल में ही चाट कर विलोपित कर देता था, हजार साल से भारत में विनाश का नंगा नाच करते हुए भी सिर धुन रहा है। वह अपने पूर्वज आक्रान्ता के कुनामिक मस्जिद के मलवे पर बैठ कर टेसुये बहाने के बहाने तलाश रहा है। आस्था के केन्द्रों को धरती खोद कर निकालना हो या भटकों की घरवापसी हो, भारत में चलने वाले सारे पवित्रीकरण अभियान मानव क्रमविकास के ही आयाम है। ॐ16.11.2021 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा 28.08.2021 राम झरोखे बैठ कर

राम झरोखे बैठ कर (जग का मुजरा ले) श्रीराम मंदिर निर्माण, एक महोत्सव के रूप में, शुद्ध-प्रबुद्ध सरल प्राण हिन्दू को जितना आह्लाद प्रदान कर रहा है, उससे कहीं अधिक धनहीन मुसलमान के कुंठित-मन और अपवित्र-तन में काँटे चुभो रहा है। प्रसंग चाहे कोई भी हो, अभागे मुसलमानों को लोग पूछते नहीं हैं, इसलिए यह सम्प्रदाय अपने मुँह मियां मिट्ठू बन कर, अप्रासंगिकता के गर्त से निकलने और उपस्थिति दर्ज कराने हेतु काँव-काँव करता रहता है।आपने भी सुना ही होगा, चाँद मियां (नकली नाम--सांई बाबा) का ट्रस्ट टर्राया है कि मुसलमानी संस्था होने के कारण वह, अयोध्या में बन रहे हिन्दू मंदिर केलिए चन्दा नहीं देगा। घर में नहीं दाने, अम्मा चलीं भुनाने !!! चाँद मियां को सांई बाबा के नाम और अकूत धन-दौलत से प्रतिष्ठित करने के पीछे हिन्दुओं की उदार दृष्टि तो थी ही, उन्हें मुसलमानों को मूर्तिपूजक भी बनाना था। उसमें हिन्दुओं को सफलता मिल गयी। (इसे कहते हैं, बिना लड़े शत्रु को पटखनी देना) ॐ 28.08.2021 सुधा, 9047021019

सुधा सिन्हा 14.07.2019 राम अनुरागी

राम अनुरागी श्रीराम के दंडकारण्य आगमन का मुख्य उद्देश्य था दानवों का विनाश। आर्यावर्त के वनप्रान्तर में तथा उसके आसपास दानवों ने डेरा डाल रखा था। उनके मुख्य शिकार तो थे संत-मुनि परन्तु वनवासी जनगण के जीवन को भी उन्होंने दूभर बना दिया था। अशान्ति, आतंक और आक्रमण द्वारा दानवराज का विस्तार उनका अनकहा उद्देश्य था। दानवों के अधीन रहने वाले, न चाहते हुए भी, आनवी गतिविधियों में शामिल होने को विवश थे।राम का अभियान प्रारंभ होते ही खलबली मच गयी। दानव और उसके समर्थक बिलबिला उठे। दानवविरोधी दम साध कर बदलाव की प्रतीक्षा करने लगे। राम के वनवास से साधुओं में पुनर्वास का विश्वास उत्पन्न हुआ। सामान्य जन में आस जगी कि अब जबरन दानव बनाये जाने की त्रासदी पर रोक लगेगी। मानव केलिए जो आश्वासन था, वही दानवराज केलिए भय का कारण बन गया। शास्त्रोक्ति है कि एक ही भग्वद्कृपा तथा क्रिया से भक्तों के भय और दानवों की देह का नाश होता है।मानव क्रमविकास के उदीयमान सूर्य पर ग्रहण लगाने वाले रावण ने श्रीलंका को अपनी राजधानी बना कर उसे अपने अतिचार का केन्द्र बना लिया था। उसने मातासीता का अपहरण कर राम के अभियान को व्यर्थ करने की कुचेष्टा की। परन्तु हुआ इसके विपरीत; इस दुर्घटना से राम की युद्धनीति-रीति लक्ष्यकेन्द्रित तथा तीक्ष्ण हो गयी। उन्हें कम-से-कम समय में अपना अभियान पूरा कर लौटना भी था। रावण अपनी सीमा के बाहर तो आतंक फैला ही रहा था, अपने राज्य के साधुस्वभाव लोगों को भी चुन-चुन कर कुचल रहा था। उसके द्वारा सताये गये धर्मप्रवण वीरों की संख्या बढती जा रही थी। रावण क्रूरता को वीरता का पर्यायवाची मानता था। बल के अलावा छल करने में भी उसे हिचक नहीं होती थी। श्रीलंका का वीरयोद्धा समूह अन्याय और बदचलनी का सहअपराधी नहीं बनना चाहता था। शासक-प्रशासक के दुष्कृत्यों से बेहाल शक्तियां अपने को समेट कर रावण के विरुद्ध खडी होने लगी थीं। ''दानव'' का ठप्पा बलात डाल देने के बावजूद जो चूडान्त दानव नहीं बने थे, वे भी उस अपवित्र शिकंजे से निकल कर मानव कुल में आने के प्रयास करनें लगे। जब रावण की अनुचित आज्ञाओं का उल्लंघन करने के कारण उनके प्राणों पर बन आयी, तब वे लंका से पलायन करने लगे। जलधि पार करना कठिन था। फिर भी वे जान बचाने केलिए समुद्र तैर कर या अनगढ नौकाओं के सहारे निकल भागे और आसपास के द्वीपों में शरण लेने लगे। पलायन का यह सिलसिला सामूहिक बन गया, तब निर्जन द्वीप समूह ऐश्वर्यशाली द्वीपमाला में परिणत हो गये। मातासीता के संधान में लगे प्रभु राम श्रीलंका पर चढाई करने जा रहे हैं यह बात आग की तरह फैल चुकी थी। द्वीपमाला में शरण लेने वाले इन पलायित धीर-वीरों ने मन-ही-मन अपनी जन्मभूमि से क्षमा याचना करते हुए राम का साथ देने का निर्णय कर लिया। वस्तुत: दानवराज से मुक्ति पाने केलिए वे जिस नायक की तलाश में थे, वह उन्हें मिल गया। जो रावण उन्हें दुर्बल-हीन-भगोडा बता कर अट्टहास किया करता था, वे उसी के मरण को सुनिश्चित करने वाले यूथ में सम्मिलित हो गये। * दानव-दलन का अभियान प्रत्येक युग में चलता है; आज भी जारी है। और, राम अनुरागी की शुभनियति उसे अपने नायक तक अवश्य पहुँचा देती है। ॐ14.07.2019 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा जय श्रीराम

जय श्रीराम किसी अहमक ने कहा है कि 'No one can force me to say JAY SHREE RAM'; वह मूर्ख पहले अपने अन्दर झाँक कर देखे कि क्या उसमें 'JAY SHREE RAM' उच्चारने की योग्यता है भी या नहीं। जिसकी जिह्वा यह पवित्र नाम लेने में समर्थ है, वह किसी के रोके नहीं रुक सकता। और, किसी घिनौने मुँह की औकात नहीं है कि इसका उच्चारण कर पाये। फिर, इसमें force की जगह कहाँ रह जाती है? हो सकता है, बेहूदा बकवादी अपनी नाकामी पर परदा डालने केलिए, force के आगे नहीं झुकने का मिथ्या ढ़कोसला गढ़ रहा हो !!! 'श्रीराम' में, शब्द के परे, एक ऐसी कालातीत विशेषता है जो व्यक्ति को, वातावरण को अपनी पहुँच से बहुत आगे ले जाती है। लेकिन इसमें कोई प्रतियोगिता नहीं है। या किसी छल-कपट की भी गुंजाइश नहीं है। बल्कि खुली छूट है; 'राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट' !!!लूट कर ले तो आये, लेकिन इस दुर्लभ पदार्थ को सँभाल कर रखें, ऐसी जगह कौन सी है? जगह तो है, लेकिन उसमें कबाड़ भरा है; पहले उसे साफ तो कर ले ! और, यह भी जान लें कि यह ध्वनि अपना आकार बढ़ाती ही जाती है---- राम के नाम हृदय में धरो, न मिटे न गले नहीं होत पुराना। बढ़े दिन-दिन, घटे न कभी, नहीं आगि लगे, नहीं चोर चुराना। तथास्तु। ॐ

सुधा सिन्हा 19.07.2020 स्लोथ और मैस्टोडेन

स्लोथ और मैस्टोडेन स्लोथ और मैस्टोडेन सृष्टि के आदिकालीन पशु थे; बृहदाकार होने के साथ-साथ इनका स्वभाव अति-भक्षी और निष्क्रिय था। बिना उद्यम के खाने और प्रजनन करने वाले इन जानवरों की संरचना में ''दिमाग'' की नगण्यता थी। अत: प्रकृति ने इन आत्मकेन्द्रित पशुओं को पृथ्वी के अन्य जीव-जन्तुओं केलिए खतरा जान कर विलोपित कर दिया। *मुसलमानी ''खानगीकानून'' के नाम पर कैसी हरकते होती हैं, यह सब की समझ मे आ चुका है। मुसलमानों के गुरुघंटाल मौलवी-मुल्ला ने औरत को थप्पड-लात-जूते मार कर ''हलाला'' का आइटम बना रखा है। दाढी, स्कलकैप, लम्बा कुरता और उटुंग पाजामे के भीतर एक ऐसा हैवान है जो अनियंत्रित यौन के सिवा और कुछ नहीं जानता। दूसरों के परिश्रम पर नाहक डाका डालने वाला यह टिह्डी दल पूरे संसार में फसलें चाट रहा है। आज विश्व में मात्र दो दल हैं; एक-गैरमुसलमान, दूसरा मुसलमान। यह मुसलमान वही है जो कभी स्लोथ और मैस्टोडेन था। एक समय प्रकृति ने सृष्टि की रक्षा के लिए जिस तरह उन अकर्मण्य, सर्वभक्षी पशुओं का विलोपन किया, उसी तरह आज मुसलमान का विलोपन अवश्यमभावी है। सृष्टि के मूल में है सामंजस्य; इसे समझ कर अपनाने वाली सनातन संस्कृति ने, क्रमविकास में बाधा डालने वाली मुसलमानी मक्कारी को आईना दिखाकर, संदेश पहुँचा दिया है कि मुसलमान नामक दहशतगर्द समूह अपने को बदले अन्यथा उसकी जगह अजायवघर की आलमारी में ही होगी। 19.07.2020 ॐ सुधा, 9047021019

Thursday, May 19, 2022

सुधा सिन्हा धर्मादेश

धर्मादेश स्वर्ग के सभाकक्ष में आपात बैठक बुलायी गयी थी। सभी आमंत्रित सदस्य आ चुके थे; अल्ला की प्रतीक्षा की जा रही थी। सभापति ने संयोजक को दुबारे टोका--पता कीजिए, क्यों देर हो रही है। बात हो गयी है सर ! वे रास्ते में थे; अब पहुँचने ही वाले हैं। ''रास्ते में थे....मैंने तो उनके लिए हैलिकॅाप्टर भेजने को कहा था ! उन्होंने मना कर दिया। कहा कि रमजान के पाक महीने में हैलिकॅाप्टर पर नहीं चढते; ऊँट से आ रहे हैं। देर से ही सही, अल्ला आ गये और कार्रबाई शुरू हो गयी। पहला आइटम भारत से सम्बन्धित था। शिकायत थी कि मुल्ला-मौलबी मुसलमानों को स्वतंत्र मतदान करने से रोकते हैं। फतवा जारी किया गया है कि हर नमाज में अल्ला से गुजारिश की जाये कि हिन्दुओं का नुमाइन्दा नहीं जीते। अल्ला से विनम्रतापूर्वक पूछा गया कि उन्होंने इस पर क्या किया। ''मैंने कुछ नहीं किया। मैंने अपने को पॅालिटिक्स से अलग रखा है।'' ''लेकिन आपके नाम पर तो खूब पॅलिटिक्स होती है; ऐसे नारे लगाये जाते है-- भारत तेरे टुकडे होंगे इंशाअल्ला-इंशाअल्ला ! यह पॅलिटिक्स नहीं तो और क्या है?'' ''वे लोग बकवास करते हैं। इन हल्लों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।'' ''मुल्ला-मौलबी गैरमुसलमानों को यह कह कर डराते हैं कि आपने काफिरों को आग में भूनने केलिए भट्ठी बना रखी है।'' ''बिल्कुल झूठी बातें हैं। इन्क्वायरी करा ली जाय; मेरे गरीबखाने पर कोई भटठी-वट्ठी नहीं है।'' ''आपका कहना ही काफी है; इन्क्वायरी की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन सारी दुनिया में आपके नाम पर मार-काट करने वालों पर कैसे नियंत्रण हो पायेगा ? वे आपका राज कायम करना चाहते हैं और आप कहते हैं कि हमारा पॅलिटिक्स से कोई वास्ता ही नहीं !'' ''किसी को अपने नाम का गलत इस्तेमाल करने से तो नहीं रोक सकता, लेकिन यकीन दिलाता हूँ कि उन लोगों की कोई दुआ कुबूल नहीं होगी।'' ''धन्यवाद, मिस्टर अल्ला !'' * स्वर्ग में बैठक चलती रही। परन्तु धरती पर सनाका मार गया। किस मुल्ला-मौलबी में हिम्मत थी कि अल्ला के खिलाफ फतवा जारी करे ! धर्मादेश स्वर्ग के सभाकक्ष में आपात बैठक बुलायी गयी थी। सभी आमंत्रित सदस्य आ चुके थे; अल्ला की प्रतीक्षा की जा रही थी। सभापति ने संयोजक को दुबारे टोका--''पता कीजिए, क्यों देर हो रही है।'' ''बात हो गयी है सर ! वे रास्ते में थे; अब पहुँचने ही वाले हैं।'' ''रास्ते में थे....? मैंने तो उनके लिए हैलिकॅाप्टर भेजने को कहा था !'' ''उन्होंने मना कर दिया। कहा कि रमजान के पाक महीने में हैलिकॅाप्टर पर नहीं चढते; ऊँट से आ रहे हैं।'' देर से ही सही, अल्ला आ गये और कार्रबाई शुरू हो गयी। पहला आइटम भारत से सम्बन्धित था। शिकायत थी कि मुल्ला-मौलबी मुसलमानों को स्वतंत्र मतदान करने से रोकते हैं। फतवा जारी किया गया है कि हर नमाज में अल्ला से गुजारिश की जाये कि हिन्दुओं का नुमाइन्दा नहीं जीते। अल्ला से विनम्रतापूर्वक पूछा गया कि उन्होंने इस पर क्या किया। ''मैंने कुछ नहीं किया। मैंने अपने को पॅालिटिक्स से अलग रखा है।'' ''लेकिन आपके नाम पर तो खूब पॅलिटिक्स होती है; ऐसे नारे लगाये जाते है-- भारत तेरे टुकडे होंगे इंशाअल्ला-इंशाअल्ला ! यह पॅलिटिक्स नहीं तो और क्या है? वे लोग बकवास करते हैं। इन हल्लों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मुल्ला-मौलबी गैरमुसलमानों को यह कह कर डराते हैं कि आपने काफिरों को आग में भूनने केलिए भट्ठी बना रखी है। बिल्कुल झूठी बातें हैं। इन्क्वायरी करा ली जाय; मेरे गरीबखाने पर कोई भटठी-वट्ठी नहीं है आपका कहना ही काफी है; इन्क्वायरी की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन सारी दुनिया में आपके नाम पर मार-काट करने वालों पर कैसे नियंत्रण होगा ? वे आपका राज कायम करना चाहते हैं और आप कहते हैं कि हमारा पॅलिटिक्स से कोई वास्ता ही नहीं ! किसी को अपने नाम का गलत इस्तेमाल करने से तो नहीं रोक सकता, लेकिन यकीन दिलाता हूँ कि उन लोगों की कोई दुआ कुबूल नहीं होगी। धन्यवाद, मिस्टर अल्ला ! * स्वर्ग में बैठक चलती रही। परन्तु धरती पर सनाका मार गया। किस मुल्ला-मौलबी में हिम्मत थी कि अल्ला के खिलाफ फतवा जारी करे !

सुधा सिन्हा 02.07.2021 पारदर्शी बक्से की अपारदर्शिता

पारदर्शी बक्से की अपारदर्शिता सुनते आये हैं कि चमड़ा उद्योग के कारण कानपुर के आसपास के जलाशय प्रदूषित हो गये हैं और जल के साथ वायु भी अपनी शुद्धता खोती जा रही है। लेकिन अभी चर्चा में है कानपुर के बाजार की अनेक छोटी- बड़ी दूकानों के बाहर बैठाये गये पारदर्शी बक्से। आधुनिक छटा के ये बक्से दानपेटी ही हैं और उसी अर्थ में अपना काम कर रहे हैं। इन बक्सों में किस सत्कार्य केलिए पैसे जमा किये जाते हैं, इसका उत्तर हमें नहीं मिला। लगता है, दान देने वाले अधिकांश लोग भी मेरी ही तरह अनभिज्ञ हैं। * परन्तु गहन छानबीन करने वालों ने इतना तो पता लगा ही लिया कि दृष्टिगोचर पारदर्शिता के भीतर धुप्प अंधेरा है। इन पारदर्शी बक्सों के पीछे छिपी हरकतें उस जलवायु का परिचय दे रही हैं जो नितान्त राष्ट्रघाती हैं। इन बक्सों से सम्बन्धित सारी गतिविधियों के तार आतंकियों के आकाओं से जुड़े हैं।...तात्पर्य यह कि हम अपने ऊपर हमला कराने केलिए उदारतापूर्वक दान दे रहे हैं !!! इस दान-जिहाद केलिए दानयाजक और दानकर्ता बराबर के उत्तरदायी है। सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा 18.05.2021 सिंहों के नहीं लेहँड़े

सिंहों के नहीं लेहँड़े ( सिंहों के नहीं लेहँड़े, हंसों की नहीं पाँत, लालन की नहीं बोडि़यां, साधु न चलहिं जमात ।।) सिंह के झुंड नहीं होते, हंस की कतार नहीं दीखती, बोडि़यों में भर-भर कर कीमती सिक्के नहीं मिलते, साधु जत्थों में नहीं चलते। ॐ संख्या से बडी चीज है गुणवत्ता; इसे इजराइल ने सिद्ध कर दिया है। संख्या बल से यदि वर्चस्व कायम होता, तो इस संसार में दीमकों का ही राज रहता। दीमक केवल दो ही काम जानता है-- खाना और अपनी संख्या बढ़ाना। *बर्बर 'रेशियल' विद्वेष जनित विपत्ति झेल कर यहूदियों ने अपना वंश-कुल बचाया है। अपनी बुद्धिमत्ता, योग्यता तथा विलक्षण जिजीविशा के बल पर उन्होंने अपने को कायम रखा और, आज भी उनके स्वभाव तथा चरित्र का यह ऐश्वर्य काम कर रहा है। मुसलमान आतंकियों के साथ उनकी जो लड़ाई चल रही है, उसका हेतु बित्ते भर की एक जमीन नहीं है; असली कारण है सम्मान पर आघात। *दर-दरीचे में घुसपैठ करने वाला दीमक एक ओर उसे चाट कर नष्ट करता है और दूसरी ओर अपनी तादाद भी बढ़ाता जाता है। लेकिन यह तभी तक चलता है, जब तक हम उस पर कीट-नाशक रसायन का छिड़काव नहीं कर देते। तथास्तु। सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा 30.04.2021 राष्ट्रद्रोही

राष्ट्रद्रोही कांग्रेसी पी.चिदम्बरम में वे सारे अवगुण हैं जो चकलों के उल्लू दलालों में पाये जाते हैं। भडुओं का व्यापार है राह चलते सामान्य जन को उकसाना; उसका धन-तन-मन सहित मान हरने केलिए उसे लफंगा बनाने की कुचेष्टा करना। यही चकला-चक्र भारत के जनगण पर चिदम्बरम चलाना चाह रहा है। एक समय, चिदम्बरम की हीनताओं पर मुग्ध होकर कांग्रेसी कसबासाजों ने इसे देश का वित्त मंत्री और गृहमंत्री तक बना दिया था; कांग्रेसी पापकर्म को जारी रखने में इस अर्धपशु ने अपनी ओर से कुछ उठा नहीं रखा। दरअसल, ब्रितानियों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से डर कर कांग्रेस की स्थापना की थी। इसका प्रयोजन था भारत को दुर्बल, गरीब, अयोग्य और बदचलन बनाये रखना; तब से अब तक लगातार कांग्रेस इसी दुर्नीति पर रपटता आ रहा है। प्रारंभिक दौर में भारत के अनेक महान नेता, इस ब्रितानी षड़यंत्र को समझ कर सावधान हो गये थे। और, कालान्तर में तो भारत के बहुसंख्यक जनगण की सम्मिलित सूक्ष्म बोधयुक्त प्रक्षालण क्षमता ने कांग्रेस को कूडापेटी में डाल ही दिया। सच्चरित्र नर-नारी को देख चकले का दलाल निराश होता है, वैसे ही प्रगतिशील भारत पी.चिदम्बरम को हताश कर रहा है। उसे फिर जेल बुलाने लगा है; अराजकता फैलाने के उसके असफल कुचाल के पीछे यह अदृश्यतथ्य भी काम कर रहा है। तथास्तु। सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा 21.04.2021 अवश्यम्भावी

अवश्यम्भावी सबसे आवश्यक है तुष्टिकरण एवं प्रलोभन के प्रदूषण से मुक्त अनुकूल वातावरण। ''घर-वापसी'' हेतु उत्कंठित व्यक्ति या समूह, अनेक प्रकार की विपरीततायें झेल चुका होता है। यदि इस दैव नियोजित अवसर पर भी उनका निरादर किया जाये तो ''घर-वापसी'' के साधु अभियान की गति भंग हो सकती है। आशाओं से भरे, घर-वापस आये व्यक्ति या समूह को अगर ''घर'' के द्वार बन्द मिलें तब सब से अधिक हतोत्साहित होंगे वे लोग जो, सब की नजर बचा कर ''वापस'' आने केलिए अपने सामान समेट, कतार में लग चुके हैं। इसे सहज व्यवहार की आधारभूमि पर सम्भूत होना है। शुद्धिकरण का औपचारिक यज्ञ पूरा होने के पश्चात ''वापस'' आये व्यक्ति या समूह के प्रति सारी शंकायें निर्मूल हो जानी चाहिए। परन्तु इस मनोभाव केलिए दोनों पक्षों की चित्तवृत्ति में समानता अपेक्षित है। घर-वापस आने वाले को पूर्व प्रकरण के कारण हीन न समझा जाये, इसी तरह यह भी जरूरी है कि ''वापस'' आने वाला विशेषाधिकार या लल्लो-चप्पो का दावा न करे। इतना ही नहीं, उसे अपनी पुरानी आदतें भी बदलनी होंगीं; यथा, हिन्दुत्व के मान्य पवित्र आचार-विचार के अनुसार अपने को ढालना होगा। इसके लिए उसे संवेदनशीलता के साथ सुझाव और समय दिया जायेगा।सनातनता से वियुक्त हुए लोगों की निष्कंटक ''घर-वापसी'' एक ऐतिहासिक सामाजिक सत्य बनने वाला है। तथास्तु। सुधा

सुधा सिन्हा 20.04.2021 पार्श्वपरिवर्तन

पार्श्वपरिवर्तन बदलाव अचानक नहीं हो रहा है। पिछले बारह-तेरह सौ साल से लगातार ऊहापोह में पड़ कर देश को अपनी ऊर्जा गँवानी पड़ रही थी। उस विपरीतता के विरुद्ध प्रतिक्रिया होनी ही थी। आत्मचिन्तन का दौर बीत चुका है। निर्णय लेना अनिवार्य है। हत्यारे की नकली यारी मान्य नहीं है। ढुलमुल होने से काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि राष्ट्र ने त्योरी चढ़ा ली है। छल-क्षुद्रम के बल पर सत्ता सथिआने वाले भी इस राष्ट्रीय कोप से सहम गये हैं। तभी कोई कोट पर जनेऊ डाल कर अपने को वर्णाश्रम का सदस्य बताना चाह रहा है, तो कोई गोत्र बता कर अपना हिन्दुत्व सिद्ध करने में लगा है।हिन्दुत्व !!! जो इसके वैभव से सम्पन्न हैं, उनके पाँव के नीचे ठोस सनातन भूमि है, मस्तक के ऊपर अनन्त आकाश है और चहुँ ओर व्याप्त विकास है। जो इसे खो चुके हैं, उनमें घर-वापसी की आकुल इच्छा है।सदावत्सला भारत माता ने अपनी उन संततियों के स्वागत हेतु अपना पवित्र आँचल फैला रखा है। *आइये ! हम-आप मिलकर सुविचारित रीति से इसे सम्भव बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करें। तथास्तु। सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा ज्ञान बनाम अज्ञान 15.04.2021

ज्ञान बनाम अज्ञान सारे संसार में, किसी-न-किसी रूप में, ज्ञान-अज्ञान के वर्चस्व को लेकर संघर्ष चलता ही रहता है। लम्बी तथा अनवरत यात्रा ने ज्ञान को एक विशेष मुकाम पर पहुँचा कर विकास की सम्भावनाओं से भर दिया है। ज्ञान का यह सात्विक आग्रह स्वाभाविक है कि उसे निचले पौदान पर अज्ञान के साथ बैठने को विवश न किया जाये। सूक्ष्म जगत के रहस्यों से अनभिज्ञ अज्ञान, अपने खोखलेपन को ही नकली सूक्ष्मता का नाम देकर, इस बात की हिंसक जिद ठाने है कि संसार को अज्ञानी ही बने रहना पडेगा---खबरदार जो समझदारी की बात की तो !!! वह संसार में अज्ञान का जंगलराज बनाये रखने हेतु ज्ञान को मिटा देना अपना पाशविक कर्तव्य मानता है। सारी दुनिया में अलग-अलग ढंग की प्रतिक्रियाओं द्वारा यह द्वन्द्व रूढ़ हो गया है। ज्ञान को ढिढोरा पीटने की आदत नहीं है; उसकी शालीनता ही लोगों को आकर्षित करती है। अज्ञान में सत्य का सामना करने का साहस नहीं है; वह मिथ्या नामक अपनी cheer dealer द्वारा सामूहिक भ्रम फैला कर यथार्थ को झुठलाने में लगा रहता है। *फ्रांस ने अज्ञान के विरुद्ध जो अभियान छेड़ा है, उसमें कोई नयी बात नहीं है; यह प्रतिरोध लगभग बारह सौ साल पहले ही भारत शुरु कर चुका है। मिथ्या ने भले ही ज्ञान की कार्रवाइयों को ओझल कर दिया हो, परन्तु जनमानस पर उनका अमिट सक्रिय अंकन बना हुआ है। तथास्तु। 15.04.2021 सुधा

सुधा सिन्हा ज्ञान वापी 10.04.2021

ज्ञान वापी विश्वनाथ महादेव की काशी संसार के प्राचीनतम नगर के रूप में प्रतिष्ठा पाती है। ज्ञान महिमा की दृष्टि से इसका स्थान सर्वोच्च है। निश्चेतना के अंधकार को भेद कर सृष्टि में दिव्य चेतना की रश्मियां विकीर्ण करने में काशी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विकसित होते ज्ञान की उष्ण सक्रियता नहीं झेल पाने वाली निश्चेतना, जान बचाने केलिए छिपती रही। उसने नकारात्मक अपतत्त्वों में आश्रय ढ़ूंढ़ लिया और मौके की ताक में दुबकी थी। दोहजार इक्कीस वर्ष पहले, ईसा नामक दिव्य मसीहे को मार कर हत्यारों द्वारा ही रेलिजन का whole sale बाजार खोल लिया गया। उस दिवंगत युवा देवदूत की सूली पर लटकी हुई मूर्तियां थोक भाव से बेचने का धंधा चल निकला। अच्छी कमाई होने लगी। वह थी दिव्य चेतना के हनन की भयानक दुर्घटना। उस अमानुषिक, ह्रिंस, जघन्य कुकृत्य ने निश्चेतना में प्राण फूंक दिये। उसने हडबडी में लम्बा कुरता और छोटा पाजामा पहन लिया, सर पर सहस्र छेदों वाली टोपी डाट कर रेलिजन की दूसरी मंडी चालू कर दी। पन्द्रह सौ बरस से निश्चेतना ही विश्व स्तर पर पसर कर मानव क्रमविकास को धता बताने की कुचेष्टा में लगी है। किन्तु..... आकाश से पाताल तक व्याप्त सूक्ष्म चेतना ने अदृश्य रह कर भी जब निश्चेतना को निष्प्रयोजन बना कर रख दिया, तब वह आँखें मल-मल कर बिसूरने लगी। उसे शिव से पंगा लेने का परिणाम नजर आने लगा है। तथास्तु। उजाले बाँट दो 10.04.2021 सुधा

सुधा सिन्हा बद 08.04.2021

बद बदनस्ल बदरुद्दीन नामक बदमाश की बदचलनी (आसाम से आये वीडियो में) आपने भी देखी होगी; वह बदकार अपने पंथियों को श्लेष्म-- थूक की सौगात दे रहा था। उसका वह कुकर्म हिन्दुओं को बेहद घिनौना लगा परन्तु अखाद्यभक्षी मुसलमानों की भेंड़-भीड़ उस मल को ‍नेमत मान कर चाट रही थी। शौच या किसी भी कर्म के बाद हाथ नहीं धोने वाले मुसलमान को थूक चाटने से रोका नहीं जा सकता। अगर आप उस बदकौम पर शुचिता का कोई मापदंड लागू करना चाहेंगे तो भारी हंगामा मच जायेगा; उस बदजात जमात को हरदम लगता रहता है कि उसका रेलिजन खतरे में पड़ गया है। *लेकिन संसार के गैरमुसलमानों का न तो कोई इरादा और न दायित्व ही है कि कच्चे धागे से लटके-भटके उस बदवक्त पंगुल भंगुर परपीड़क रेलिजन को बचाये रखें; वह तो दुनिया भर में फैली एक महामारी है जिसका प्रतिरोधी टीका vaccine परमात्मा तैयार कर चुके हैं। सम्प्रति इस कोरोना काल में, थूक चाट कर रोग फैलाने में लगे मुसलमानों पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है। और, थूक बाँटने वाले बदरुद्दीन को तो अविलम्ब सलाखों के पीछे धकेल देना चाहिए । अंतत: यही होना है। कितने दिनों तक वास्तविकता की ओर से आँखें मूँदने का नाटक चलता रहेगा? घी निकालने केलिए तो ऊँगली टेंढ़ी करनी ही पड़ेगी। तथास्तु। 08.04.2021 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा हिन्दुत्व की सम्पूर्णता 13.03.2021

हिन्दुत्व की सम्पूर्णता सम्पूर्णता कोई काल्पनिक या अस्थायी स्थिति नहीं है। इसके साथ आं‍शिकता का मेल-मिलाप नहीं है। यह पहन या ओढ़ कर दिखाने और उतार कर फेंकने वाला आवरण या उपकरण नहीं है। इसमें कोई कृत्रिम औपचारिकता नहीं होती; स्वाभाविकता की आधार भूमि पर इसका अस्तित्व टिका होता है। सम्पूर्णता में एक सात्विक सबलता है जो इसे बाह्य आधातों से बचाती है। यही सामर्थ्य इसे सुरक्षित भी रखता है। संवेदनशीलता के साथ आश्रयदाता बनने की प्रवृत्ति भी इसी क्षक्ति पर आधारित है। सम्पूर्णता की स्थिति में ही, लौकिकता को पारलौकिकता की ओर उन्मुख करने और बाह्य को अंतर के साथ जोड़ने की क्षमता का उद्भूत होना सम्भव है।हिन्दुत्व सम्पूर्णता के ऐश्वर्य से प्रतिष्ठित है। इसमें स्थायित्व है, स्वाभविकता इसकी स्थिति है, सात्विक सबलता एवं संवेदनशीलता इसके स्वभाव के अंग हैं, यह सतह से लेकर गुह्यतम क्षेत्र तथा लोक-परलोक तक सूक्ष्म संक्रभण में समर्थ है। हिन्दुत्व की प्रामाणिक पवित्र सनातनता को विशुद्ध आस्था तथा अडिग निष्ठा ने जिस रीति से बनाये रखा है वही इसके भविष्य की निरन्तरता सिद्ध करती है। तथास्तु। 13.03.2021 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा दुहिता

दुहिता उनका फोन आया।किनका?मैं नाम नहीं बता सकती; वचनबद्ध हूँ। सर्वनाम से ही काम चलाना होगा; संज्ञा मेरे मुँह से नहीं निकलेगी।उन्होंने कहा कि मुझसे मिलना चाहते हैं। क्यों? व्यक्तिगत काम है, इसलिए जब भी मैं समय दे दूँगी, वे आ जायेंगे। मैंने समय दे दिया, लेकिन मुझे चिन्ता हो गयी अपने लिए।वे एक प्रखर राजनेता है। उनके प्रभाव की तीव्रता बिना उनसे मिले भी महसूस की जा सकती है। उनके बहुतेरे अनुयायी हैं। वे तीसरी बार भारी बहुमत से चुनाव जीत चुके हैं। उनकी राजनीति का मुख्य मुद्दा है तमिळ बनाम हिन्दी। उनका कहना है कि आजादी के पहले जिस तरह ब्रितानियों ने अपनी भाषा लाद कर तमिळ को दोयम दर्जा दिया था, उसी तरह केन्द्र सरकार सभी प्रान्तों में हिन्दी लादना चाहती है।उन्होंने युवा पीढी को तमिळ होने पर गर्व महसूस करने की सीख दी है और कहा है कि तमिळ की पुन:प्रतिष्ठा तभी सम्भव है जब अन्य भाषाओं, विशेषकर हिन्दी का बहिष्कार किया जाये। उन्होंने अपने क्षेत्र के स्कूल-कालेजों में हिन्दी पढाये जाने का घोर विरोध किया है। हिन्दी सिनेमा तक देखने की मनाही कर दी। स्वाभाविक है कि उनके अपने बाल-बच्चे हिन्दी नहीं पढ पाये हैं। उनके घर में टी वी पर ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं देखा जाता जिसमें हिन्दी का दखल हो। उनका कहना है कि तमिळ से सारे संस्कृत शब्द निकाल दिये जायें क्योंकि उनके कारण हिन्दी की बू आती है। इसीलिए मैं तनिक सशंकित हूँ।हालाँकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे मुझे उनके अभियान का विरोधी माना जाये। पर हिन्दी की लेखिका तो हूँ ही; साथ ही हिन्दी तमिळ के बीच सौमनस्य बढाने वाला मेरा विचार तो उन तक पहुँच ही गया होगा। मैंने किसी को यह तो नहीं बताया है कि सुब्रह्मनियम् भारती की कवितायें पढकर मैं विभोर हो जाती हूँ या यह भी किसी को कहने की जरूरत मैंने महसूस नहीं की है कि तिरुकुरल की अमूल्य पंक्तियां मुझे विचार की किस ऊँचाई तक पहुँचा देती हैं। इसलिए उनके आने के पहले मैं सावधान हो गयी हूँ। उन्हें प्रभावित करने केलिए मैंने मेज पर ''सिलपदिकारम'' की मूल तमिळ प्रति रख छोडी है। आने पर उन्होंने नमस्कार किया; मैंने जब उत्तर में कहा--''वनक्कम'', तो मुस्कराने लगे। मेरा तनाव तनिक कमा। हम दोनों के बीच की वार्त्ता अग्रेजी में ही हुई। क्योंकि न वे हिन्दी बोल सकते थे और न मैं तमिल। जल्दी ही मैंने समझ लिया कि उनकी अंग्रेजी भी मुझसे कोई अधिक अच्छी नहीं है।''यह कौन पढता है?'' उनका मतलब ''सिलपदिकारम' से था।''जी, मैं ही पढने की कोशिश कर रही हूँ।'' मेरी योजना सफल होती दीखी।''आप इसे पढ लेती है?''''किसी की मदद लेनी पडती है।''मैंने विनम्रता दिखाई।''फिर भी तारीफ है।...आपको एक तकलीफ देना चाहता हूँ।'' उन्होंने असली बात पर आने में राजनैतिक क्षिप्रता दिखायी।''कहा जाये।''''मेरी एक बेटी है। उसका विवाह तय हो गया है। उसी को....उसी को हिन्दी सीखनी है; मेरा मतलब है वह हिन्दी बोलने लगे यह जरूरी हो गया है।'' बच्चों और युवा लोगों केलिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है; सीख लेगी।लेकिन उसके पास समय कम है; चार-पाँच महीने में ही उसे बोलने आ जाना चाहिए। हो पायेगा?यह उसके सीखने पर है। भाषा सीखने में अभ्यास और समय दोनों चाहिए।वह समय देगी। जी जान लगाकर अभ्यास करेगी। मेहनती है।इतनी जल्दीबाजी क्यों?दरअसल, यह अगर हाथ से निकल गया, तो अपने समाज में उसके लिए ऐसा दूसरा लडका मुझे नहीं मिल सकेगा मैने समझा नहीं।लडके की शर्त है कि वह हिन्दी बोलना जाने।वह हिन्दी भाषी है क्या?नहीं, है तो तमिळ ही। उसके पिता फौज के अफसर रहे हैं, अभी हाल में रिटायर हुए है। उनके बच्चों की पढाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई है। इनलोगों ने दिल्ली में ही अपना एक घर भी बना लिया है।क्या करता है आपका होने वाला जामाता?भारतीय प्रशासनिक सेवा में आ गया है।अभी प्रशिक्षण में है। विवाह असकी पोस्टिंग होने पर ही सम्पन्न होगाअच्छा।तो उसे आपके पास भेज दूँ?भेजिएकब?कल चार बजे शाम में भेज दें। लेकिन एक बात है:.. मैं रोज तो समय दे नहीं पाऊँगी। इसलिए वह अपने साथ एक कैसेट लेती आये...मैं रेकार्ड कर दूंगी; वह उसका अभ्यास करे और सप्ताह में दो दिन मेरे पास आ जाया करे।आपको लगता है इससे हो जायेगा?हो जाना चाहिएठीक है, कल भेजता हूँ उसे। इसके बाद आप जैसा जरूरी समझें, करें।जी।एक निवेदन और है....! जी?कृपाकर आप किसी को नहीं बतायेंगी..जी, नहीं बताउँगी उन्होंने दुहरा कर कहा था, अंग्रेजी में..प्लीज फारगेट माइ नेम... कृपया मेरा नाम भूल जाइये।मैंने उन्हें आश्वस्त किया; इसीलिए आपको उनका नाम नहीं बताउँगी। किसी से धोखा करना मेरे स्वभाव में नहीं है।दूसरे दिन उनकी पुत्री लजाती हुई मेरे पास हिन्दी सीखने आयी। दाक्षिणात्य लावण्य से भरी, कुशाग्र बुद्धि, सुशिक्षिता, वह हँसमुख युवती बात-की-बात में हिन्दी के सरल और कुछ संयुक्त वाक्य भी बोलने लगी।दो सप्ताह बाद उनका फोन फिर आया। मेरे प्रति कृतज्ञता जता रहे थेमेरे घर में तो आपकी ही आवाज गूंजती रहती है उनका मतलब कैसेट से था।आपकी बेटी बहुत योग्य और तीव्रबुद्धि सम्पन्न है। बडों का आशीर्वाद है.।आपने उसे बडी अच्छी शिक्षा दी है। मैं सचमुच प्रभावित थी।;लेकिन उसकी शिक्षा में जो कमी रह गयी थी, वह आपसे पूरी होनी थी।मैं तो एक माध्यम भर हूँ।लेकिन..लेकिन मुझे लग रहा है...आप एक सशक्त माध्यम है।...केवल मेरी बेटी केलिए ही नहीं...वे रुक गये... मुझे लगा ...शायद लाइन कट गया। लेकिन उन्होंने अपना गला साफ करते हुए कहा--मुझे मालूम है, आप इंटिग्रेशन की बात करती हैं...भाषाओं को लेकर...यह एक बहुत बडी बात है..वे फिर चुप हो गये। लम्बी सांस लेकर बोले--लेकिन राजनीति में बडी बातों के लिए जगह कम है। अक्का1, राजनीति में छोटी बातों को लेकर चलना होता है! मेरे पास उनको कहने लायक कोई बात नहीं थी, न बडी न छोटी।1 तमिळ में बडी बहन केलिए सम्बोधन। सुधा, 09047021019

सुधा सिन्हा चक्रचाल में फँसा पांडिचेरी 15.09.2020

सुधा सिंहा (लेखिका) Speed Post‍ जन्म तिथि 21.11.1933 माँ ! मै वही लिखूं जो तू मुझसे लिखवाना चाहती हो'' दिनांक 15.09.2020 --खुली चिट्ठी-- 20,अम्बलत्ताडुअय्यर मडम स्ट्रीट-605001 दूरभाष 0413 2339948 चलन्त 09047021019. अणुडाक sudha pondy33@gmail.com सेवा मेंश्रीमान नरेन्द्र भाई मोदी, प्रधानमंत्री- भारत, 7 लोककल्याण मार्ग,नयी दिल्ली--110101 संदर्भ : चक्रचाल में फँसा पांडिचेरी ( पुदु--नया; चेरी--लघु जनक्षेत्र) माननीय प्रधानमंत्री जी,विनम्रता के साथ पांडिचेरी की वर्तमान स्थिति से अवगत कराने की अनुमति चाह‍ती हूँ। उदधि तीर पर बसा यह नगर प्राचीन काल से ही सुरुचिसम्पन्न गौरवपूर्ण आध्यात्मिक परम्परा का धनी रहा है। स्वच्छ, हरा-भरा, सद्भावी होने के साथ यह नगर crime free था। परन्तु पिछले कुछ समय से इसकी प्रतिष्ठा घूमिल हो रही है। रख-रखाव, पर्यावरण तथा सामाजिक सद्भाव के प्रति उदासीनता के साथ असुरक्षा ने भी इसे नाहक घेर लिया है। यहाँ का जनगण इनसे मुक्त होकर पुन: अपना वास्तविक स्वरूप उपलब्ध करने को अकुला रहा है। *वर्तमान मुख्यमंत्री तथा उपराज्यपाल का वैमनस्य एक रूटीन है। ऐसे में शासन-प्रशासन को बेहाल होना ही है। पांडिचेरी की सुकुमार सौम्यता दोनों के कारण आहत हुई है। मुख्यमंत्री टिपिकल कांग्रेसी हैं। उनके कार्यालय की दीवार पर जो जबाहरी फोटो प्रदर्शनी है, पांडिचेरी को उसी का मटमैला फलक बनाने तक उनकी निष्ठा सीमित है। अप्रासंगिक होते कांग्रेस के साथ पांडिचेरी भी अप्रासंगिक बन जाये तो बन जाये-- 'परवा इल्ले'। और, उपराज्यपाल ने पांडिचेरी को खोटी करेंसी मान कर अपना सिक्का जमाने की कोशिश की। पद भार सँभालते ही सौन्दर्यीकरण के नाम पर तोड़-फोड़-लूट-पाट का उत्पात मचा दिया जिसके विरूद्ध कोर्ट में गुहार लगानी पडी। आज मुंबई में सरकारी सह पर जैसे BMC पागल हो रहा है, वैसे ही उपराज्यपाल के अविचारित 'भडकीले' आदेश पर पांडिचेरी नगरपालिका ने अपने कर्तव्य कर्म को इस तरह ताक पर रख दिया है कि 'सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का' ? पांडिचेरी को इन दोनों के प्रकोप से बचा कर सुरक्षित निकालना आवश्यक है। कृपया। 15.09.2020 विश्वसनीया, सुधा सिंहा

सुधा सिन्हा जड़ पिंड 25.12.2020

जड़ पिंड श्रीराम अपनी भार्या सीता तथा अनुज लक्ष्मण सहित सानन्द वनवास में थे कि एक स्वर्णमृग ने आकर शान्ति भंग कर दी। माता सीता ने स्वर्णमृगचर्म पाने की इच्छा व्यक्त की तो श्रीराम के अचूक वाण से वह पशु मारा गया। वह मायामृग मारीच नामक दानव था। परम प्रभु द्वारा मारे जाने के कारण उसकी आत्मा मुक्त हुई परन्तु दिव्य वाण के तीव्र वेग से उसका स्थूल तन सुदूर दक्षिण समुद्र में जा गिरा और एक द्वीप के रूप में परिणत हो गया। मारीच अपनी सम्पूर्ण मुक्ति चाहता था। इसके लिए जब उसकी देहविहीन आत्मा ने प्रभु से प्रार्थना की तब उसे ब्रह्मा के पास जाने का निदेश प्राप्त हुआ क्योंकि वही प्रारब्ध के नियामक हैं। ब्रह्माजी ने मारीच की जड़देह की मुक्ति को असम्भव बताया;मारीच ने कारण जानना चाहा। तुम्हारी देह शापित है। किसके शाप से ?सीता माता के अभिशाप से। उनका आशीर्वाद और शाप दोनों ही अमोघ हैं। जिस दैहिक छल से तुमने उनके पवित्र परिवेश को प्रदूषित किया, तुम्हारा तन उसी छल का महापिंड बन गया। कलियुग में वह छल-छद्म-क्षुद्रता- अर्थदूषण-ईर्ष्या-पिशुनता का केन्द्र बन जायेगा। वह अपना छिछलापन छिपा कर लोगों को लुभाता और ठगता रहेगा। द्वापर के प्रवेश के किंचित काल बाद उसके पाप का घड़ा फूटेगा और उसकी स्थिति कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी। पूर्णमुक्ति का दिवास्वप्न मत देखो, देहासक्त मारीच ! तुम्हारी नियति है विलोपन। तथास्तु। 25.12.2020 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा विकास की ओर 10.12.2020

विकास की ओर बहुत बड़े अंतराल के बाद भारत विकास की ओर अग्रसर हुआ है। इसमें समाहित है समष्टिगत विशिष्टता। सबको साथ लेकर विकसित होने की आकांक्षा ने इसे लोकप्रिय बनाया है। हजार वर्षों की अवधि में भारत ने अनेक विपदायें झेलीं। मुसलमानों के शैतानी आक्रमण से शुरू होकर ब्रितानी छल-छंद और उसी के उच्छिष्ट कांग्रेसीराज एवं कामनिस्टों की कमीनगी के कारण भारत की अकूत हानि हुई। घोर विपरीत स्थितियाँ भारतीय संस्कृति को चारों ओर से घेर कर कुचल डालने में लगी थीं। इसके अटल आध्यात्मिक पीठाधारतथा जनगण की सहज सम्पन्न सुचिता ने इसे उन खतरों से बाहर निकाला। संसार की सबसे प्रचीन इस संस्कृति ने स्वयं को जीवित रखने के साथ यह संकेत भी दिया कि अपशक्तियों के आक्रमण तथा दुष्प्रभाव से बचने केलिए कौन से तत्त्व अनिवार्य हैं। सबसे पहली चीज है आत्मगौरव की व्यापक अनुभूति। भारत में राष्ट्रीय गरिमा के प्रति श्रद्धाभाव की जागृति अचानक नहीं हुई है। यह किसी राजनैतिक ताल-मेल की उपज भी नहीं है। यह है राष्ट्र के अंतर में गहनता से छिप कर लहलहाती वह्नि का यज्ञाग्नि के रूप में प्रकट होना। राष्ट्रप्रेम एक स्वत:स्फूर्त सद्भाव है जो व्यक्ति के मन में जब संचारित होता है तब वह मातृभूमि को ''स्वर्गादपि गरीयसी'' मानता है। सदावत्सला मातृभूमि से प्रेम करने वाला जनगण उसे सुरक्षित देखना चाहता है; वह ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे राष्ट्र की सुरक्षा को आँच आये। राष्ट्रप्रेमी अपनी योग्यता तथा सम्पन्नता को अपने देश से जोड़ कर देखता है। व्यक्तिगत रूप से उजाले बाँट दो 2 सौष्ठवयुक्त बनाने वाला उसका उद्यम उसके देश को भी ऐश्वर्ययुक्त बनाये, यह मूक मनोभाव सभी देशप्रेमियो में बना रहता है। राष्ट्रभक्त अपने राष्ट्र का अपमान सहन नहीं कर सकता। वह अपराधी को समुचित उत्तर अथवा दंड़ देता है। इसके लिए कोई उस पर असानशीलता का लांछल लगाये, तो लगाये वह परवाह नहीं करता। भारत का बहुसंख्यक जनगण राष्ट्रवादी है। और, भारतीय राष्ट्रवाद कोई राजनैतिक सोच नहीं है; यह है राष्ट्रसंरक्षण का महायज्ञ जिसका प्रतिभागी होने में हर भारतीय गौरव का अनुभव करता है। भारत के कोने-कतरों में छिपे साँप और कूड़े-करकट में कुलबुलाते कीड़ेइस यज्ञ के ताप से बिलबिला उठे हैं। ये अपनी पहचान नहीं बना पाये हैं। इन सब में एक common factor है--विद्वेष। इनके विद्वेष का विष केवल सत्ता के‍ विरुद्ध नहीं है; यह राष्ट्र की अस्मिता को विषाक्त कर रहा है। इन विषैले जन्तुओं का कारगर इलाज है इन्हें चुन-चुन marginalize करते-करते विलोपन की इनकी नियति तक पहुँचा देना। विकास की दिशा में अग्रसर राष्ट्र का पथ निष्कंटक करने हेतु यह अनिवार्य है। तथास्तु। ॐ 10.12.2020 सुधा 9047021019

ॐ सुधा सिन्हा -- शल्यचिकित्सा 20.10.2020

शल्यचिकित्सा संसार समझ गया है कि एक रोग, जिसका नाम है मुसलमान, सारी धरती को संक्रमित कर रहा है। छोटे-मोटे उपचार से यह बीमारी मिटने वाली नहीं है। इसे दूर करने केलिए गहन-सघन शल्यचिकित्सा अनिवार्य है। इस रोग ने अपने को बनाये रखने केलिए मुख्यत: संख्यावृद्धि को ही साधन बनाया है। मुसलमान का पहला फर्ज है(आदमी नहीं)मुसलमान पैदा करना। इसके लिए मादा मुसलमान प्रजनन की मशीन का काम करती है। यह मशीन रजस्वला होने से लेकर रजोनिवृत्ति तक बिना रुके लगातार चलती रहती है। एक मुसलमान बेहिचक चार और खींचते-तानते अनगिनत मशीनें इस्तेमाल करता है; ओसामा बिनलादेन लगभग चार दर्जन भाई-बहनों में सत्रहवें नम्बर पर था। इस पाशविक गृहउद्योग के अधिकांश खोटे माल फिदाइन आतंकवादी बनते हैं। मुसलमान का दूसरा फर्ज है अन्य धर्मावलम्बी को दहशत के बल पर मुसलमान बना देना; जो आनाकानी करे उसे मार डालना। यही दहशतगर्दी मुसलमानी जीवनशैली है, समाज व्यवस्था है, राजनीति है, रणनीति है। इस बर्बर समुदाय से भाराक्रान्त धरती मुसलमान नाम के रोग से मुक्त होने को व्याकुल है। कठोर-से-कठोर शल्यचिकित्सा द्वारा इसे मिटाना चाहती है। धरती का यह दुख दूर करने केलिए अदृश्य शक्तियां लामबन्द हो रही हैं। ॐ 20.10.2020 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा फटा फारूख 13.10.2020

फटा फारूख बाप की खोज में निकले अनाथ फारूख अबदुल्ला को चीन में आश्रय नजर आने लगा है। दरअसल, उसकी हालत रंडी के बेटे जैसी है जिसे हर गुंडे में अपना बाप दीखने लगता है। बहुत दिनों तक वह पाकिस्तान को अब्बा कहता रहा, लेकिन जब उसे पता चला कि वह नपुंसक तो कटरे का दलाल भर है, तब से वह किसी दूसरे फर्जी बाप की तलाश में लग गया था। इस टाँगपसारू चमगादरखोर हीन चीन के साथ हरामी फारूख की अपनी अविश्वसनीयता इतनी match कर गयी कि वह हाय अब्बा -- हाय रब्बा कह कर लपक पड़ा है। *खानदानी गद्दार फारूख भले ही बुलबुल्ला भर बचा है, लेकिन यह भार‍तविद्वेषी परिवार भारत की प्रतिष्टा तथा यहाँ के संसाधनों पर ही फूलता-फलता रहा है; अब यह सिलसिला बन्द होना चाहिए; टुकड़े-टुकड़े मे नहीं, एक झटके में। इसे वही सजा दी जाये जो किसी राष्ट्रघाती केलिए निर्धारित है। टोपी-अचकनधारी अभागे फारूख का पाजामा सेंधमारी की भेंट चढ़ चुका है; यह देश के सामने नंगा खड़ा है। ॐ 13.10.2020 सुधा, 9047021019

सुधा सिन्हा निषिद्ध जहरवादी 08.09.2020

निषिद्ध जहरवादी साँप को भूख से मरता देख अगर कोई दयावान उसके मुँह में दाना-पानी डालने जाये, तो उस हाल में भी वह डँसने से बाज नहीं आयेगा। साँप उपकारी के प्रति भी कृतज्ञ नहीं हो‍ता। उसकी जहरवादी प्रकृति नहीं बदली जा सकती। साँप नामक बीमारी का एक ही इलाज है-- उसके फण को कुचल देना।*पूरी दुनिया इस सत्य को मान चुकी है। मुसलमानी सँपोलों की बढ़ती और इनसे उत्पन्न विषाक्त वातावरण की मारकता ने आत्मरक्षा के उपायों को अनिवार्य बना दिया है। मानव विलोपन को रोकना है तो इस हिंस्र जन्तु के विषाक्त फण को कुचलना ही होगा। सभी देश स्थानीय स्थिति के अनुसार उपाय कर रहे हैं। यह अनुभव common है कि मुसलमान जहरीली कौम है; हिन्दी में 'रोग' और अंग्रेजी कें माने जाने वाले इस सम्प्रदाय से मुक्त होने की अफरा-तफरी मची हुई है। भारत स्वभाव से शान्त है; ऐसा कि लोगों को निष्क्रिय-सा दिखता है। लेकिन भारतीय बहुसंख्यक जनगण ने एक अकाट्य निर्णय ले लिया है; यह बाहरी तर्क पर नहीं, आंतरिक बोध पर आधारित है। भारतीय psyche में यह बात पैठ चुकी है कि मुसलमान नामक सम्प्रदाय सनातन संस्कृति केलिए असंगत और अविहित है; तदनुकूल स्थितियां बन रही है, बनती जायेंगी। अब यहाँ जो मुसलमान की तरफदारी करेगा, वह भी कालान्तर में इसके साथ ही irrelevent हो जायेगा। ॐ08.09.2020 सुधा 9047021019

सुधा सिन्हा बजनियां 21.08.2020

बजनियां बाजा-गाजा हमारे गाँव में आयोजित पूजा-पाठ का एक अनिवार्य अंग-सा बन गया था। पूजा से विरक्त वादकों का एक दल अपने मोबाइल वाद्ययंत्र के साथ समय पर हाजिर हो जाता था। तरह-तरह के तराने वातावरण में तैरने लगते थे। पूजा का प्रसाद सब को दिया जाता था। बजनियां को केवल पैसे मिलते थे। मैने बाबा (पितामह) से इसका कारण जानना चाहा। उन्होंने बताया कि वे लोग पूजा का प्रसाद नहीं खाते। क्यों? क्योंकि मुसलमान हैं।--बाबा समझ गये कि मेरी शंका दूर नहीं हुई। उन्होंने आगे कहा कि हम उन्हें प्रसाद देंगें भी नहीं; क्योकि वे जिसे अपना पूर्वज मानते हैं उसने हमारे मंदिर तोडे। मंदिर तोडे ??--पचास के पेठे में पितामह और छह-सा‍त वर्षीया पौत्री के बीच एक स्फुल्लिंग कौंध गया; वह था उस आक्रोष का संक्रमण जो अपनी संस्कृति बचाये रखने का संकल्प बन कर हिन्दू मनस में पीढी-दर-पीढी दृढ़तर हुआ है।मैने पूछा- मंदिर फेर कहिआ बनतई? (मंदिर फिर कब बनेगा ?) बाबा ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर, बाल मन को सहारा दिया, कहा- जहिआ तु सयान हो जयब (जब तुम सयानी हो जाओगी।) सारे पितामह उसी सयाने की प्रतीक्षा करते रहे हैं जो इस पुनर्प्रतिष्ठा को सम्भव बना दे। यह सयाना जो उम्र के वर्षों का मोहताज नहीं है, जिसके मन-प्राण कीतंत्री पर निरंतर शास्त्रीय देश-राग बजता रहता है, संस्कृतिसंरक्षण-यज्ञ का पुरोहित भी है और परम-प्रसाद ग्रहण करने वाला आनन्दमग्न बजनियां भी। ॐ21.08.2020 सुधा 9047021019

Sunday, May 8, 2022

ॐ सुधा सिन्हा -- समझ वनाम सनक

समझ वनाम सनक बर्बर बकरीद पर बकरा-गाय हनन के सम्भावित अस्थायी रोक (कोरोना के कारण) की आशंका से भारत का तमाम मुसलमान तेल-विहीन ''बतिहर'' की तरह फड़फड़ाने लगा। निम्न मुसलमानी कथोपकथन में आपको लोमड़ी का छलछद्म और हुँराड़ की रार दिखाई देगी।'हाय हाय ! मोदी तो ऐसे न थे, उन्हें तो बकरा पालने वाले उन गरीबों की फिकर थी जो साल भर अपना पेट काट कर बकरे को दाना-पानी देते हैं, उसे मोटा- तगड़ा बनाते हैं कि अच्छी कीमत मिलेगी-- उनकी उम्मीदों पर पानी फेरने वालों को गरीबों की हाय लगेगी।''अब्बा ! आप फिकर मत करो। मैं सबसे मोटा बकरा टेब आया हूँ; फटेहाल अभागा हिन्दू है। खुलेआम बेच नहीं सकता इसलिए औने-पौने दाम में उसे बेचना ही पड़ेगा; और अगर नाकुर-नुकुर किया तो मेरा यह छुरा किस दिन काम आयेगा ? बकरे के पहले उसी की गरदन के पार हो जायेगा।''नहीं बेटे, नहीं। मैं जानता हूँ-- तुम चाहो तो उस नापाक हिन्दू का बकरा तो क्या, उसकी बेटी तक उठा कर ला सकते हो। लेकिन मैं किसी हंगामें में फँसना नहीं चाहता।' 'कोई हंगामा नहीं होगा; पुलिस वाले मेरे यार हैं, कॅम्युनिस्ट का फिल्ड हमारे हाथ में है, कांग्रेसी हमारे वोट के वेंटिलेटर पर सांस ले रहे हैं, पिछड़े-दलितों के मसीहा हमारे टुकड़ों पर पलते हैं, कभी हिन्दूहृदय सम्राट कहे जाने वाले का 'सपूत' कुर्सी के लोभ में धरम-करम भूल चुका है। गेरुआधारियों को दिन-दहाड़े पीट-पीट कर मार डाला; हमारा बाल भी बाँका नहीं हुआ।' उजाले बाँट दो 2 'लेकिन बेटे ! हिन्दुओं का कोई भरोसा नहीं। यह शातिर कौम बड़ी समझदार है। अपने पत्ते नहीं खोलती और ठीक समय पर मात देने वाला कार्ड निकाल कर सामने वाले को चौंका देती है। फिर हाथ मलने के सिवा कुछ बचता नहीं है।' 'अब्बा, आप हिन्दुओं की समझदारी से मत डरो। रहने दो सारी समझदारी हिन्दुओं के ही पास; समझ मुसलमान केलिए हराम है। उससे कहीं पावरफुल चीज है मुसलमान के पास; वह है सनक। मुसलमान को सनकाना कितना आसान है यह आप जानते ही हो।'मदरसे का पढ़ा बाप अंग्रेजीदोँ बेटे की मुसलमानी सनक का कायल हो गया। *सारी दुनिया इस बात पर सहमत है कि मुसलमान को शिक्षित करना उसकी सनक की आग में घी डालना है। कुल चौदह सौ साल में संसार मुसलमानी जन्तुशाला animal park बन गया है। लोगों का कहना है कि ये हिंस्र पशु आपस में लड़ मरेंगे। तथास्तु ! धरती माता की रक्षा केलिए अवश्य ही ऐसे उपाय होंगे। इस दैवनियोजित नियति में काम करेगी विकास की सूक्ष्म समझदारी, विस्तार की भोंड़ी सनक नहीं। ॐ24.07.2020 सुधा 9047021019

ॐ सुधा सिन्हा -- करतूत

करतूत सब को सारी बातों का पता नहीं होता, इसलिए वे आश्चर्य भरा प्रश्न करते हैं-- सोनिया सुत राहुल अचानक बूढा कैसे हो गया? अच्छा खासा बालक था, कांग्रेसी गुरुघंटालों के रटाये नर्सरी राइम जब तुतला-तुतला कर सुनाया करता था तब ‍भाारत विद्वेषियों की छाती बैलून की तरह फूल उठती थी। माता बलैया लेती थी। दरबारी फूल बरसाते थे। शुक्राचार्य सिब्बल स्वस्ति पाठ करते थे। लोग तरह-तरह के अनुमान लगाने लगे। जैसा कि मौके-बेमौके होता ही रहता है-- ''संघ परिवार'' पर आरोप लगाया जाने लगा कि वहीं से कोई तंत्र-मंत्र उछाल कर एक दुधमूँहें बच्चे को खबीस बूढा बना दिया गया। लेकिन जिसे पता है, वह चुप है। * चीन जब किसी को ''धन'' देता है तब उसका ''तन-मन'' अपने कब्जे में ले लेता है। कब्जाया पदार्थ चाइनिज माल बन जाता है जिसका चरित्र होता है throw before use। इस विघटन का सौदा बालक की माता ने कराया था। उसे शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह पिता की तरह मारा नहीं गया-- केवल अकालवृद्ध बना दिया गया !!! ॐ 23.07.2020 सुधा 9047021019

ॐ सुधा सिन्हा -- उपघातक उपनिवेशी

उपघातक उपनिवेशी सुनते हैं, चर्चिल ( church + ill =चर्च के रोगी) को उसी तरह भारत पसंद नहीं आया था जैसे सूअर को स्वर्ग अच्छा नहीं लगा था। भारत को भी उस चर्च के रोगी के पिल्ले पसंद नहीं आये थे औेर भारतीय जनगण ने उन हरामखोरों को हुले-हुले करते हुए उसी तरह भगाया था जैसे देव देहरी से कुत्ते को भगाया जाता है। हालाँकि चर्च के रोग का विषाक्त संक्रमण अभी तक समाप्त नहीं हुआ है; church + ill अपने ही विष से मरणासन्न तो है लेकिन मरने के पहले ज्यादा से ज्यादा लोगों को बीमार बना देना चाहता है। हाल ही में एक पुन:प्रेषित मेसेज में जस्टिस भानुमति को कहते सुना कि उन्होंने ईसू की कृपा से ही न्याय करना सीखा। अच्छी बात है। जस्टिस भानुमति से मेरा अनुरोध है कि वे अपनी इस सीख का लाभ बेचारे ईसू को दें। गलत जगह में अवतरित उस दिव्यात्मा को मार कर जो लोग दो हजार बरस से उनकी मृत देह का काला धंधा कर रहे हैं उनके विरुद्द कदम उठायें। क्या जस्टिस भानुमति मरियम के बेटे को न्याय दिला पायेंगी ? यदि नहीं, तो उन्होंने क्या सीखा ? भारत दुर्जनों का भार हटाना जानता है। और, अच्छी बात यह है कि दुर्जन अपने-आप segregated पृथ्कृत हो जाते हैं। ॐ 22.07.2020

ॐ सुधा सिन्हा -- सबै भूमि गोपाल की

सबै भूमि गोपाल की विकासक्रम में भारतीय जनगण किस उच्च स्तर तक पहुँच चुका है, इसका एक प्रमाण है मानवेतर प्राणियों तथा उद्भिजों के प्रति उसका श्रद्धायुक्त दायित्व भाव। सृष्टि के कण-कण के वैज्ञानिक महत्व के प्रति भारतीय बोध उन्मुख है, इसके अतिरिक्त उसमें है सब के साथ हार्दिक एकात्मता। यह सब बाहर से लादा गया कोई पाठ या अभ्यास नहीं है, बल्कि अंतर में विकसित स्वाभाविक मनोभाव है। पर्यावरणविद चाहें तो इसका उपयोग उदाहरण की तरह कर सकते हैं। गौ माता के अंग-प्रत्यंग में दिव्य शक्तियों का निवास है; यहाँ तक कि इसके मूत्र में प्राणरक्षक औषधि है और इसका गोबर अद्भुत sanitizerहै। गौ-सेवक बनना भारत में सौभाग्य की बात मानी जाती है। यहाँ गौ माता को अनेक अर्थगर्भित नामों के सम्बोधित करते हैं-- सौरभि, सुरभि, सुरूपा, बहुला, कामधेनु, नन्दिनी, कल्याणी, गैया आदि। इस माता केलिए भारतीय मन में स्नेहविह्वल शिशु का भाव है। जीवन भर इसकी कृतज्ञतापूर्ण सेवा करने वाले लोग जाते-जाते ''गोदान'' के माध्यम से इसे किसी सुपात्र के हाथों में सौंप जा‍ते हैं, ताकि यह उनकी कमी अनुभव न करे और सुरक्षित रहे। भारतीय जनमानस पर लगे उस आघा‍त की कल्पना कीजिए जब भारत की धरती पर बलात घुस कर दरिन्दे मुसलमानों ने गौ माता को हलाल करना शुरू किया होगा; हिन्दू हृदय में वह घाव अभी भी बना हुआ है। 'काल' उस पीडा का साक्षी है। और, वही इसके प्रतिकार में भी लगा है। माँग रही है भारत माता 2 मुसलमान-ईसाई-accidentalहिन्दू-कांग्रेसी-कॅाम्युनिस्टगैंग एक माफीआ समूह है। यह ऐसे सभी तत्त्वों का संहारक है जिनका सम्बन्ध भारतीय आस्था, गौरव तथा कीर्ति से हो। गोवंश भी उन्हीं दिव्य तत्त्वों मे एक है। इसके संरक्षण के प्रति हिन्दुओं की बढती सतर्कता से इस गैंग को असुविधा होने लगी है। यह गोभक्षी असुर समूह तरह-तरह की कुचेष्टाओं से स्थिति को अपने पक्ष में करना चाहता है। इसी कुचाल का नमूना है PETA का एक अद्यतम निरर्थक विज्ञापन। इस विज्ञापन से पता चलता है कि PETA को भारत विद्वेषी गैंग ने तो ग्रस ही लिया है, इस संस्था को nincompoop ही चला रहे हैं। भाई-बहन के स्नेह पर आधारित 'रक्षाबंधन' को अवमानित करने केलिए उस पर गोहत्या प्रसंग चिपकाना केवल बेतुका ही सिद्ध नहीं हुआ, यह तो भारतविद्वेषी गैंग के सिर पर ठीकरा बन कर फूटा। कोलाहल मच गया। रक्षाबंधन शुभेक्षापर्व है जो आध्यात्मिक रक्षाकवच सृजित करता है। इस श्रीसम्पन्न पवित्र त्योहार को demean करने की मंशा से गर्हित मुसलमानी गोभक्षी प्रकरण घुसाने की साजिश केलिए काला धन मुहैय्या करने वाला कौन है। यह माँग हो रही है कि PETA इस आशय का इश्तहार कत्लखानों के सामने लटकावे। इस विज्ञापनी दुर्भावना की पोल खुलने के बाद भारतविद्वेषी गैंग के दलाल इस तरह तडपने लगे जैसे गरम तवे पर खडे हों। कपार फूटने के भय से वे सम्पूर्ण हिन्दू समाज से भिडना नहीं चाहते; निहाई ढूंढते हैं जिस पर चोट कर अपनी खीस मिटा सकें। उनका पहला निशाना होता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ । भारतविद्वेषी गैंग का कमवख्त प्रवक्तता प्रकरान्तर से कहता है कि हिन्दू एक गैरसमझदार जीव होता है जो एक गाल पर चपत खाकर दूसरा गाल आगे कर देता है। इस गैंग का मानना है कि माँग रही है भारत माता 3 हिन्दुओं के तथाकथित मनमोहनी दब्बूपन को यह RSS बरबाद कर रहा है; अन्यथा वे लोग तो उसे मूर्ख बना ही लेते। इस गैंग की इन बेहूदी बातों का उत्तर देने की कोई आवश्यकता नहीं है; उसके आपराधिक कुकृत्यों के परिणाम ही उसे उत्तर देंगे। उसे यह भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या विश्व हिन्दू परिषद या ऐसी अन्य संस्थायें हिन्दुत्व के उसी ओजस्वी स्वभाव से प्रकट हुई हैं जिस पर भारतीय संस्कृति की सुरक्षा का दायित्व है। हिन्दुत्व के प्राचीर से ही टकरा कर भारतविद्वेषी गैंग बाप-बाप कर रहा है। कौन है इनका बाप ? बलात्कार-समलैंगिकता जैसी जघन्यताओं का जनक ''खच्चर'' (mixed breed animal) ? या मस्जिदों से हिन्दू नरों के कत्लेआम और नारियों को अपने खोभाड की लौंडी बनाने का एलान करने वाला पशु ? क्या PETA इन पशुओं का care taker है ? भारत को ऐसी संदिग्ध संस्थायें नहीं चाहिए। इस गोपालक पुण्यभूमि में ''गोबर्धन'' बनने पर पहाड भी पूजनीय बन जाता हैं। सर-सरिताओं का नीर पूजा घरों में स्थान पाता है। पत्थर में शालिग्राम का दर्शन करने वाला हिन्दू असली-नकली के बीच का फर्क जानता है। जिस भारत की मिट्टी में त्रिकाल के नीति-नियम समाहित हैं, वहाँ 'काल' चक्र की निर्भूल गति मार्गकंटकों को रौंदती चल रही है। भारतविद्वेषी गैंग को अपना संरक्षक मानने वाले PETA और उसके दलाल अपने-आपको उस चक्के के नीचे डाल रहे हैं; यह उनकी नियति है।गोपाल की इस भूमि में छल-छुद्रम अधिक देर नहीं टिक पाता। ॐ 20.07.2020

ॐ सुधा सिन्हा -- आखिरी सुख

आखिरी सुख संसार का हर आम-खास आदमी मरता ही है; जबाहरलाल नेहरू भी मर गये। जब उन्हें यमदूतों के साथ ऊबड-खाबड रास्तों से गुजडना पडा, तब गद्देदार कालीनों पर चलने की आदत वाले उनके पैर लडखडाने लगे। वे झुँझला उठे। युवा यमदूत कठिन मार्गों के आदी थे। वे अपनी चाल कम करने को भी तैयार नहीं थे। जबाहरलाल को बहुत जल्द गुस्सा आ जाता था; उन्होंने तडप कर कहा--'तुमलोग जानते नहीं, मैं कौन हूँ !' 'तुम 'हो' नहीं, 'थे'। और, कोई क्या था यह जानना हमारे लिए जरूरी नहीं है। चुपचाप चलो।' लेकिन जबाहरलाल चुप नहीं हुए; अपना परिचय देना जारी रखा और यमदूत को ऐसे सम्बोधित करते रहे जैसे वह विपक्षी पार्टी का कार्यकर्ता हो।वे दोनों यमलोक की कूट भाषा में बात करने लगे-- 'यह तो बडा बेढंगा है। कहो तो एक झाँपड देकर इसे चुप करा दूं !' 'नहीं, बेकार का हंगामा खडा होगा। इसकी बातों पर ध्यान मत दो; खुद ही बक-झक कर चुप हो जायेगा। और, अब तो हमलोग पहुँचने ही वाले हैं।'नरक के परिसर में घुसते ही जबाहरलाल चीख उठे-- कहानियां सच्ची-मुच्ची 2 'तुमलोग मुझे गलत जगह पर क्यों ले आये ?' यमदूत ने उँगली के इशारे से उन्हें चुप रहने का संकेत देते हुए उनका ध्यान सूचना पट्ट की ओर दिलाया जिस पर दुनिया की सभी भाषाओं में लिखा था SILENCE। जबाहरलाल सकपका तो गये लेकिन उनकी बेचैनी कम नहीं हुई। तमाम लोगों का आना जाना लगा था। वे चाह रहे थे कि कोई उन्हें पहचाने, लेकिन किसी ने उनकी ओर देखा तक नहीं। उन्हे यहाँ तक लाने वाले यमदूतों में एक उनकी रखवाली में खडा था, दूसरा सूचना देने अंदर गया था। जब वह लौटा तब गेट खुलने पर उन्हें जो दिखाई पडा उससे उनकी बाँछे खिल गयीं; अरसे बाद वे मुस्कराये। उनकी आँखें धोखा नहीं खा सकतीं-- उन्होने पसीने से तर मिसेज माउंटबैटन को देखा जो जूठे बरतनों की सफाई मे लगी थीं। 30.06.2020

ॐ सुधा सिन्हा -- पिछडापन व 'जातिप्रथा'' -२

'कोई भी परम्परा या प्रथा निष्क्रिय या विकारग्रस्त हो जा सकती है; और, जातिप्रथा का तो प्रारंभ ही विकृति के माध्यम से हुआ है।' 'वर्ण व्यवस्था से निकली हुई जातिप्रथा विकृति क्यों मानी जाये? क्या यह एक सामाजिक माँग की तरह नहीं आयी होगी? क्या इसे वर्ण व्यवस्था का पूरक नहीं माना जा सकता?' 'वर्ण व्यवस्था की विशेषता है ऊर्ध्वगामिता; जब तक यह गति बनी रही तब तक व्यक्ति तथा समाज पर सकारात्मक प्रभाव पडता रहा। परन्तु जब वर्ण को स्वार्थसिद्धि का यंत्र बनाया गया, तब तो मूल प्रयोजन ही गौण हो गया। वह था मानव प्रकृति की दुर्बलता का दुष्परिणाम। आंतरिक प्रगति की निरन्तरता से बाह्य भंगुर सफलता को अधिक महत्त्व मिल गया।' 'वर्ण व्यवस्था को व्यक्तिपरक माना जा सकता है, जबकि जातिप्रथा समाजपरक है। वर्ण व्यक्ति की क्षमता, प्रवृत्ति और सम्भावना को लक्षित करता है, परन्तु 'जाति' व्यक्ति 'प्रथा' के अनुसार चलाती है।' 'हाँ, जाति के कारण ऊँच-नीच का भेद भी रूढ हो कर समाज में निराधार विद्वेष भर गया।' 'भारत के विद्वेषी मुसलमान आक्रमणकारी और ईसाई उपनिवेशवादी ने इस बनावटी सामाजिक विषमता को हवा देकर धर्मांतरण के अपने षडयंत्र का साधन बनाया। जाति की तथाकथित निम्न दीर्घा के हिन्दू को बडप्पन का मिथ्या प्रलोभन दिया। अधिकांशत: भारतीय मुसलमान और ईसाई उसी कोटि के धर्मच्युत हिन्दू हैं।' 'भारत के धर्मच्युत हिन्दू ही पादरी और मौलवी बन कर छल-बल से हिन्दुओं का धर्मांतरण कराते हैं और अपनी संख्या बढा कर भारतीय संस्कृति को चुनौती देते हैं। ऐसे भग्न लोगों में भारत के प्रति विद्वेष आम बात है; वे उन मौकों की तलाश में रहते हैं जब हिन्दुत्व तथा भारत की निन्दा कर सकें।' 'क्या यह कोई मनोवैज्ञानिक विकार है?' 'हो सकता है।' 'मुसलमान या ईसाई बनाये गये वंचित-पीडित हिन्दुओं को अपने नये समूह में भी सम्मान मिला नहीं; मिला होता तो आज वे आरक्षण-हल्लाबाजों के गैंग में शामिल नहीं होते। 'ललकिसुना' से लतीफ या 'रजवा' से रॅाबर्ट कहे जाने पर भी क्षुद्रता ने उनका पीछा नहीं छोडा।' 'ऐसा प्रगाढ रसायन है जातीयता का !' 'ऐसा इसलिए कि इस धर्मांतरण में कोई ऊर्ध्वगामी लक्ष्य नहीं है। यह अपने सदस्यों को उसी तरह परिधि में रखना चाहता है जैसे गाय-भैंस को गिन कर बाडे में रखा जाता है।' 'तब तो इसे उनके साथ हुआ हादसा ही मानना चाहिए। एक तो धर्म परिवर्तन के कारण आंतरिक विकास की सम्भावना बाधित हुई, उधर भी दोयम दर्जा ही मिला और आरक्षण का दावा भी गया।' 'नहीं, उनके लिए विशेष छात्रवृत्तियां आरक्षित हैं।' 'क्यों ?' 'क्योंकि धर्मच्युत होने के बाद भी वे जाति की ऊँची दीर्घा के अधिकारी नहीं हुए।' 'मानना ही पडेगा कि जातिप्रथा का महाभ्रष्ट पडाव है आरक्षण।' 'हाँ, भारत तथा हिन्दू समाज को जातिप्रथा से जितनी क्षति हुई है, उससे कहीं अधिक हानि उठानी पड रही है संवैधानिक 'आरक्षण' से। 'हाँ, हानि तो होती ही जा रही है।' 'देश में योग्यता का निरादर इस आरक्षण का सबसे बडा अभिशाप बन गया है। होना यह चाहिए था कि पिछली पंक्ति के लोगों को मानक तक पहुँचाने की योग्यता पाने केलिए उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित किया जाता। इसकी सकारात्मक योजना बनांयी जाती। परन्तु उसके विपरीत जाकर, 'योग्य' को ही पीछे धकेल दिया गया। 'अयोग्य' को चुनने केलिए 'योग्य' की छटनी कर दी गयी।' 'इसकी कल्पना नहीं की गयी होगी।' 'यह कल्पना नहीं समझदारी की बात (जारी...) 'यह कल्पना नहीं समझदारी की बात थी। इस गलती का बहुत बडा खामियाजा 'ब्रेन-ड्रेन' के रूप में देश को भुगतना पडा।' 'हालाँकि प्रकारान्तर से इसका एक लाभ भी हुआ; सारे संसार में कर्म-समर्पित सुयोग्य भारतियों की उपस्थिति दर्ज हो गयी। इस प्रच्छन्न उत्कर्ष को क्षतिपूर्ति माना जा सकता है। आरक्षण की मार से पीडित ‍जिन प्रतिभा-सम्पन्न युवाओं को अपने देश में पनपने का मौका नहीं मिला, वे अन्यत्र जाकर अपनी कुशलता सिद्ध करने लगे।' 'सारी दुनिया विलक्षण भारतीय निपुणता का लोहा मानने लगी है।' 'भारत के लोगों में संकटों से जूझने की अद्भुत क्षमता है; कहा जाता है कि तुम अगर मुझ पर पत्थर फेंकोगे, तो उसी से बनती चली जायेंगी मुझे ऊपर तक पहुँचाने की सीढियां।..आरक्षण के कारण जब देश की प्रतिभा आहत हुई तब यही हुआ।' 'हाँ, दिमागदार उत्साही युवा वर्ग ने विदेशों का रुख किया। उनकी मानसिक क्षमता, लगन और कार्यनिष्ठा से स्वदेश वंचित रह गया; दूसरे देश लाभान्वित हुए। वे जहाँ कहीं गये, अपनी छाप छोडी। और यह कोई दो-चार वर्षों की बात नहीं थी; आधी शताब्दी से भी अधिक समय तक यही सिलसिला चलता रहा है।' 'इसका कारण केवल आरक्षण नहीं है; मुसलमानो और ब्रितानियों के कारण छिन्न-भिन्न हुए देश में अवसर की भी कमी हो गयी थी।' 'कमी थी, परन्तु जो अवसर उपलब्ध थे उनपर भी आरक्षण का डाका पड गया। देश अपना ऊर्जावान मानव संसाधन खोता चला गया। कार्य क्षेत्र मूर्खों के गढ बन गये। सरकारी कार्यालयों का वातावरण दोयम दर्जे का हो गया। तरह-तरह की हास्यास्पद बातें सामने आने लगीं।' 'देश में 'सरकारी' और 'गैर सरकारी' दो तरह के संस्थान थे। 'गैर सरकारी' पर तो आरक्षण की पाबंदी नहीं थी !' 'स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रारंभिक दिनों में 'गैर सरकारी' संस्थायें कम थीं। उनके कायदे पारदर्शी नहीं थे। सरकारी सेवाओं के नियम सुनिश्चित थे; इसमें प्रवेश पाना कठिन था, पर बने रहने की आश्वस्ति थी। हालाँकि इस आश्वस्ति ने सरकारी सेवकों को मनमौजी और ढीला-ढाला बना दिया था।' 'सरकारी संस्थाओं के ढीलेपन के दूसरे कारण भी हैं। सबसे पहला कारण है अधिकांश राजनेताओं का घटिया व्यवहार; गया-बीता विधायक या सांसद भी उत्तम-से-उत्तम सरकारी पदाधिकारी को अपना गुलाम समझता है। विशिष्ट योग्यता और कार्य क्षमता सम्पन्न सरकारी सेवक यदि राजनेताओं की खुशामद करने की कला नहीं जानता हो, तब उपेक्षा और अपमानजनक हानियों का शिकार बन जाता है। अपने क्षेत्रों में सस्ती लोकप्रियता पाने केलिए राजनेता नियमविरुद्ध काम कराने में लगा रहता है। ऐसे काम पदाधिकारियों पर दबाव डाल कर कराये जाते हैं। इससे भी खतरनाक स्थिति तब होती है जब सरकारी सेवक भ्रष्टाचार का यंत्र बन जाता है; भ्रष्ट राजनेता और बेईमान अफसर की साँठ-गाँठ हो जाती है। इससे सरकारी सेवक की एक नकारात्मक छवि बन गयी है। इसके अलावा राजनेताओं द्वारा अपनाये गये जातिवादी तौर-तरीके से भी सरकारी सेवकों का महकमा प्रदूषित हुआ है। और, इस सब के ऊपर आरक्षण के बल पर हुई अयोग्य भर्तियों ने तो कोढ में खाज की तरह सरकारी सेवा कैडर को मलिन और कुत्सित बना कर रख दिया।' 'गैर सरकारी संस्थानों में भी आरक्षण हो, इसकी माँग की जा रही है। हालाँकि इसका भारी विरोध भी हो रहा है।' 'गैर सरकारी संस्थानों की कार्य पद्धति सरकारी कार्यालयों से भिन्न है। वहाँ मुख्य फोकस 'उत्पाद' और 'लाभ' पर होता है। उनका व्यापार ऐसे लोगों से नहीं चल सकता जो काम करने नहीं, बल्कि दिन काटने आये हों। 'आरक्षण' की बैसाखी पर चलने वाले व्यक्ति का विशेषाधिकार होता है घटियापन। वह मान कर चलता है कि किसी भी गलती केलिए उसे नहीं टोका जा सकता। उसे सुधरने केलिए कहने पर भी हंगामा मच सकता है। इसलिए जो संस्थायें अपने दम पर चलती हैं, वे 'आरक्षण' की सुविधा पाने वाली 'महान हस्तियों' को कर्मचारी या पदाधिकारी बना कर संस्थान का भट्ठा बैठाने का खतरा मोल नहीं ले सकतीं।' 'सरकारी योजनाओं की सफलता केलिए भी तो सुयोग्य पदाधिकारियों की आवश्यकता है। सरकारी कार्यालयों को काने बैलों का कांजी हाउस बनाने से तो सरकार की ही छवि बिगडी है और देश पिछडता चला जा रहा है।' जानी हुई बात है कि राजकामियों का ध्यान देश की प्रगति की ओर नहीं होता; वे अपनी सारी शक्ति सत्ता हासिल करने और उसे बनाये रखने में ही लगा देते हैं। इसके लिए वे शॅार्टकट निकालने के बेहद ऊल-जुलूल उपाय ढूँढते रहते हैं। जो उनको एकमुश्त वोट दिला कर जिता दे, उसे अपने पक्ष में बनाये रखने में ही वे अपने कार्यकाल का अधिकांश भाग बरबाद कर देते है। अपने क्षेत्र के लोगों की जरूरतें पूरी करना उनका पहला कर्तव्य है; इस बात की वे जानबूझ कर अनदेखी करते हैं, अपने वोटजिताऊ समूह के तुष्टिकरण का नाटक करते हैं। हालाँकि यह अदूरदर्शिता उनके पतन का कारण बन जाती है।' 'आरक्षण के नाम पर चल रही योजनाओं से जिस लाभ की कल्पना की गयी थी, वह भी तो सिद्ध नहीं हो पाया !' 'जिस उद्देश्य से आरक्षण लागू किया गया था उसे पूरा करने केलिए आजादी के बाद बारह-पन्द्रह वर्षों का समय ही पर्याप्त था।' 'समय तो व्यर्थ गवाँया ही, आरक्षण को निरर्थक से घातक बना दिया गया।' 'समाज के जिस जन समूह को इससे सीधी हानि हो रही थी, उसने भी तो जम कर इसका विरोध नहीं किया?' 'इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि 'विरोध' एक 'full time job' है। यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसके पीछे अपनी जीविका, अपना परिवार और व्यक्तिगत सुख-सुविधा को भी दाँव पर लगाना पडता है। अगर हिट कर गया, तब तीर न तो तुक्का। इससे बचने केलिए लोगों ने दूसरे विकल्प ढूँढ लिये। कहीं-कहीं विरोध को 'out source' कर दिया गया। वह भी सफल नहीं हुआ। अधिकतर शासन-प्रशासन को कोस कर लोग चुप बैठ गये। दूसरा बडा कारण है 'धैर्य' की अतिशयता। इस दैवी गुण की कृपा भारतवर्ष पर कुछ अधिक ही है। यहाँ लोग परिस्थितियों को अपने-आप ढलने का मौका देते-देते इस आशा में स्वर्ग सिधार जाते हैं कि अगले जन्म में देखा जायेगा। अगला जन्म अवश्य सुखमय होता होगा क्योंकि विधि के विधान से लोगों को अपना पूर्व जन्म विस्मृत हो जाता है और वे किसी माता-पिता की गोद में बैठ कर धैर्यवान होने की शिक्षा लेते-लेते जीवन के सारे दुख झेलने को तैयार हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में धैर्य कब 'आलस्य' में बदल जाता है, इसका पता ही नहीं चलता। यह आलस्य मनुष्य को भीतर से लेकर बाहर तक बहुत कुरूप और स्थूल बना देता है। आरक्षण की समस्या भी जनगण के आलस्य का लाभ उठा कर फूलफल रही है। इसे हटाने की राजनैतिक इच्छा का अभाव, माफीआ का प्रभाव और जनगण का आलसी स्वभाव इसे जीवन दान दे‍ता जा रहा है।' 'इसे सही रास्ते पर लाने केलिए कोई उपाय तो होगा!' 'इससे मुक्त होना ही एकमात्र उपाय है। कोई शॅार्टकट नहीं है।' 'हटाने की बात करने पर हंगामा होगा !' 'अनन्तकाल तक आरक्षण लागू रहने की आशंका से हंगामा होने लगा है।' 'कोई आरक्षण नहीं लेना चाहे, तब?' 'तब भी यह बना रह सकता है। वह दिन दूर नहीं जब आरक्षण 'expired date' चीज बन जायेगा।' 'रद्दी सामानों के भी ग्राहक होते हैं। आरक्षण भी 'secondhand item ' की तरह चलता रहेगा।' 'हाँ, आरक्षण माफीआ अपनी दूकान बन्द नहीं करेगा। जब आरक्षण को लोग अपमानजनक मानने लगेंगे, तब वह जानवरों को आरक्षण दिलवाने केलिए हंगामा करेगा। सरकार को अस्थिर करने के इस उपाय को वह इतनी आसानी से हाथ से निकलने नहीं देगा।' 'कानून बनाना होगा।' 'हाँ, वही उपाय बचा है।' 'लेकिन अपने देश में कानून बनाना भी कोई हँसी-खेल नहीं है; हम देख रहे हैं कि काम बिगड जाने के बाद प्रस्तावित कानून लागू होता है। समय सीमा का खयाल नहीं रखने के कारण देश में समस्याओं का अम्बार लगता जा रहा है। कार्यालयों से लेकर न्यायालयों की यही स्थिति है।' 'आरक्षण के विरुद्ध कानून बनने की प्रक्रिया शुरू होते ही उसे नहीं बनने देने केलिए मुकदमे दायर हो जायेंगे। कुतर्को की फेहरिश्त के साथ कोई जेठमलानी, कोई कपिल सिब्ब्ल खडे हो जायेंगे। जनता के बीच गलत संदेश देने वाले समाचारों और विचाअखबार के विशेष अंक निकलने लगेंगे।' 'इन अपशक्तियों को नाकाम करने का उपाय ?' 'कठिन है। पर इन्हें नाकाम करना ही होगा।' 'कैसे?' 'आज आरक्षण जिस झूठ के झूले पर पेंग मार रहा है, उसकी रस्सी काट देनी होगी।' 'आसान नहीं है। इस झूठ पर पलने वाले उस हर बात का विरोध करते हैं जिसमें इसे हटाये जाने के संकेत होते हैं।' 'यह एक सीमा तक ही चल सकता है; आरक्षण का ज्वार-भाटा सिर के ऊपर से गुजर रहा है।' 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अगडों का दल माना जाता है। इसीलिए बीजेपी पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप मढा जा रहा है। हालाँकि यह आरोप बनावटी है; बीजेपी ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे आरक्षण में कोई कटौती हो।' 'अंतत: यह बात बीजेपी के खिलाफ ही जायेगी। भले ही इसने आरक्षण को अपना बोट बैंक बनाने की साजिश नहीं की हो, परन्तु अयोग्यों ने तो इसे भी डरा ही रखा है।' 'जब किसी देश में अयोग्यों की चलती-बनती है तब उसका पतन होने लगता है।' 'क्या भारत का पतन हो रहा है?' 'नहीं, पतन तो नहीं है, परन्तु जितनी प्रगति होनी चाहिए, नहीं हो रही है। इस बात का भी खतरा है कि सही दिशा में प्रगति नहीं होने पर दिशान्तर होने लगेगा जो देश को भारी नुकसान पहुँचा सकता है।' 'हम फिर उस मूल प्रश्न पर आते हैं कि यदि संविधान के आकलन के अनुसार दलित-वंचित ने अपने को उत्तिष्ठ नहीं किया, तब क्या वे समान अधिकार का लाभ उठा पायेंगे?' 'अधिकार पाने केलिए योग्य होना आवश्यक है।' 'फिर वही बात सामने आती है कि सामाजिक प्रथायें दलितों-वंचितों को योग्य बनने में बाधक बनती हैं।' 'यह बाधा तो महिलाओं के प्रसंग में भी है।' 'हाँ। दलित-वंचित या महिला, सबके लिए समेकित रूप से अवसर के द्वार खुले होने चाहिए। उनके सामने योग्यता का मानक हो जिसके अनुसार अपने को गढने की स्वतंत्रता उन्हें मिले। वे किसी योग्य को रौंदे बिना आगे बढें।' 'अयोग्यता को विशेषाधिकार मानना आरक्षण की सबसे बडी खोट है। इससे अयोग्य बनने की होड लग गयी है।' 'सामान्य वर्ग के अयोग्यों को दलित-वंचित होने का फर्जी प्रमाण पत्र दिलवाने वाले माफीआ दलाल सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचारी धंधा चला रहे हैं।' 'योग्यता परिश्रम से विकसित होती है; दलित-वंचित होने का फर्जी प्रमाणपत्र तो घर बैठे मिल जाता है।' 'यह तो मानना ही होगा कि रातों-रात योग्य नहीं बना जा सकता।' 'दलित-वंचित बना जा सकता है?' 'फर्जी दलित-वंचित बनाने वाला माफीआ भगवान भरोसे नहीं बैठता। उसका विश्वास किसी जप-तप पर भी नहीं है जिससे अगले जन्म में दलित-वंचित कुल में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हो। इसके अलावा खुदरा से अधिक लाभ थोक व्यापार में होता है, इसलिए समूहों को दलित-वंचित बनाने की मुहिम चल निकली है; दलित-वंचित बनना अब व्यक्तिगत बात नहीं रही। राजकामियों का यह हथकंडा आरक्षण नामक पातक की पूर्णाहुति है।' 'आरक्षण इतनी आसानी से जाने वाला नहीं है।' 'किसने कहा कि यह आसनी से जायेगा?' 'पूर्णाहुति तो समापन पर ही दी जाती है।' 'अपतत्वों से मुक्ति पाने केलिए भी यज्ञ आयोजित होते हैं। नकारात्मकताओं से निकलने में समय लगता है। अथक प्रयास की आवश्यकता होती है।' 'वही प्रयास जो देश से पोलियो या यक्ष्मा को निर्मूल करने में लगा है, वैसा ही संकल्प लेना होगा।' 'आरक्षण को लेकर मनोभाव बदलने की जरूरत है।' आरक्षण को लेकर मनोभाव बदलने की जरूरत है।' 'यह 'हक' या 'क्षतिपूर्ति' नहीं बल्कि 'भीख' है; यह बात बतानी होगी।' 'भीख माँगना अपमानजनक है, फिर भी भिखमंगे हैं; अकर्मण्य को सम्मान नहीं, मुफ्त का माल चाहिए।' 'सारे दलित-वंचित अकर्मण्य नहीं हैं।' 'सबसे ज्वलंत उदाहरण हैं स्वनामधन्य भीमराव अंवेदकर। उनकी स्वयंसिद्ध बहुमुखी योग्यता किसी आरक्षण पर निर्भर नहीं थी !' 'सब में वैसी प्रतिभा नहीं होती है।' 'हाँ। तीन तत्त्वों के समाहार से व्यक्ति प्रतिभावान बनता है: प्रेरणा ग्रहण करने की जन्मजात क्षमता, सोद्देश्य परिश्रम तथा लक्ष्य तक पहुँचने का संकल्प। इसके लिए न तो तथाकथित उच्चवर्ग का होना जरूरी है, न आरक्षण की आवश्यकता है।' 'जो जन्मजात क्षमता सम्पन्न नहीं है उसे तो आरक्षण चाहिए?' 'ऐसे लोग तो गैरदलितों में भी होंगे; तो उन्हें भी आरक्षण देने का प्रावधान हो।' 'तब तो IQ जाँच के आधार पर सामान्य से नीचे के स्तर वालों को आरक्षण मिले।' 'क्या देश की नियति इस बात को सहन करेगी कि जन्मजात मूढ और स्वभाव से कामचोर अनिश्चयी को तमाम उच्च पदों पर बैठा दिया जाये ?' 'हाँ, निष्कर्ष में यही सिद्ध-सत्य है कि देश का विकास गंभीर युक्तियों से होगा; आरक्षण के चोंचलों से नहीं।' * आरक्षण भारतीय स्वभाव के प्रतिकूल है। भौतिक-आधिभौतिक रूप से आरक्षण अहितकर है। यह वोट की राजनीति का बेशर्म आइटम बन गया है। अख्यात राजकामी इसे जपकर कुख्यात बने हैं। क्रीमी-लेयर का मायाजाल आरक्षण की देन है। इसके पक्षधर खोटी मंशा वाले राज-पिशाच हैं। इसके विरोधी दलित-विद्वेषी मान लिये जाते है। आरक्षण से दलित-वंचित उत्तिष्ठ नहीं होते। यह दलित-वंचित बने रहने की छद्म गारंटी देता है। इसके इर्द-गिर्द भ्रष्टाचार का रोगाणु सक्रिय है। व्यक्ति में विकास की नैसर्गिक क्षमता होती है। आरक्षण विकास की उस गति को कुंठित करता है। आरक्षण स्वाभिमान को चोट पहुँचाता है। आरक्षण से समाजिक भेद नहीं मिट पाया। आरक्षण माफीआ चिंतित दीख रहा है; क्योंकि सर्वहित में आरक्षण निरस्त होना ही है। इति आरक्षण प्रसंग