Monday, May 30, 2022

सुधा सिन्हा 28.05.2022 बिकास पथ के कंटक

बिकास पथ के कंटक सामंजस्य तथा समीचीनता के अनुसार चलने वाले भारत में आकर ब्रितानी तिजारती राजकामियों की पतलूनें ढीली होने लगीं। बाह्य स्तर पर सीधा-सादा दिखाई देने वाला भारत ऐसा दुर्दमनीय होगा, यह बात उनकी कल्पना के परे थी। वेश-भूषा, रहन-सहन के प्रति लापरवाह भारतीय जनगण के आकलन में उनसे भारी भूल हो गयी। भारतीय मन में देश के प्रति जो सहज आस्था है, उसे देख कर वे भौंचक्के रह गये। जनगण की अभीप्सा जननायकों में सांद्र होकर ब्रितानियों के प्रति आक्रामक हो गयी थी। अपने को अजेय मानने वाले ब्रितानी भारत छोड़ने को मजबूर हुए। भारत में सदा केलिए राज करने की उनकी तमन्ना तो धूल में मिल ही गयी, संसार के अन्य भागों में भी उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उन्होंने भारत के कपूतों को टेक बना कर लगभग दो सौ वर्ष तक अपने को यहाँ टिकाया। और, यह दिखाने की कुचेष्टा की कि भारत दीन-हीन है। लेकिन मिथ्या का धंधा चल नहीं पाया। वर्तमान में भी कपूतों के कारण ही विकास पथ अवरुद्ध हो रहा है। ये सब उन्हीं के वंशज हैं जिन्होंने स्वदेश के विरुद्ध जाकर मुगल और ब्रितानी शत्रुओं का साथ दिया था; वे अपने कुल की परम्परा पर ही चल रहे हैं। जैसे उनके पूर्वज देश को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे, वैसे ही वे नहीं चाहते कि देश में सब का विकास हो। लेकिन उनकी बददुआओं को बहुसंख्यक जनगण का शुभ प्रयास निरस्त करता जाता है। तथास्तु। 28.05.2022

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