Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 17.05.2022 जैसे को तैसी तान : ओवैसी

जैसे को तैसी तान : ओवैसी समय अनुकूल है। कदम-कदम पर सारे राष्ट्रघाती मुँह की खा रहे हैं। एक है खानदानी राष्ट्रद्रोही ओवैसी; वह मुसलमानों को जितना ही देश के विरुद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है, उतना ही उसका वोट प्रतिशत घटता जा रहा है। जितना ही वह मुसलमानों को हिन्दू विद्वेषी बनाने में लगा है, मुसलमान उतना ही बढ़-चढ़ कर भारतीय जनता पार्टी का सदस्य बनता जाता है। यह अचानक नहीं हुआ है; लम्बे समय से, धीरे-धीरे मंथर गति से मुसलमानी सोच में परिवर्तन लक्षित हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमान भारत से प्रेम करने लगा है; वह अभी भी भारत को काफिरों का देश ही मानता है। लेकिन वह भारत में मिल रही जान-माल की सुरक्षा और सुख-सुविधा खोना नहीं चाहता; शासन से वैर साध कर अपने लिए गढ़ा खोदना नहीं चाहता, इसलिए ओवैसी के लाख भड़काने पर उसकी मुट्ठी में नहीं आता है। भारत का अधिकांश मुसलमान, अंदर से कट्टर इस्लामी रहते हुए भी, बाहर से सेकुलर दीखने की कोशिश करता है। ओवैसी उन्हें खुलकर भारत-विरोधी बनने को उकसाता है, लेकिन उसे निराशा हाथ लगती है। भारत के मुसलमान समझ चुके हैं कि अब यह जबाहरमियां का कार्य काल नहीं है जिसमें मुसलमान केलिए भारत को मुफ्त का माल बना दिया गया था। यह वह काल भी नहीं है, जिसमें रिमोटयंत्र बने मनमोहन ने संविधान की अवमानना करते हुए कहा था कि भारत के संसाधनों का पहला हकदार मुसलमान है। भारतीय मुसलमानों के अवगुणों को, उपरोक्त अवधियों की दोषपूर्ण रीति-नीति ने, रोग की तरह बढ़ने का मौका दे दिया। वे पूरी तरह उत्तरदायित्वहीन हो गये। उजाले बाँट दो मुसलमान को अपने दिमाग का उपयोग नहीं करने की रेलिजस मनाही है; परन्तु भारत का मुसलमान इस मेधावी वातावरण में रहने के कारण और हिन्दुओं के समकक्ष बनने की होड़ में दिमाग का गवाक्ष खोलने लगा था। जबाहरमियां और मनमोहन जैसे तथाकथित नेताओं ने मुसलमानों को मूर्ख, अयोग्य और निकम्मा बने रहने की छूट देकर, उस समुदाय में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन की सम्भावना पर रोक लगा दी । भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। अत: उनके जीवाश्म में हिन्दू की गुणवत्ता निहित है। परन्तु मुसलमान बनने पर, आवश्यक लक्षण के रूप में उन्हें मूर्खता अपनानी ही पड़ी; यदि कोई मुसलमान हिन्दू की तरह बुद्धिसम्पन्न बन जाये, तब मुसलमानों के बीच नक्कू बन जायेगा। मूर्ख बने रहने पर अयोग्य होना लाजमी है। और, अयोग्यता का सहोदर निकम्मापन तो पीछे लग ही जाता है। *भारत के बहुसंख्यक जनगण ने राजनैतिक स्थितियां बदल दीं। उसने ऐेसे व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व की बागडोर थमा दी जो ''सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास'' आधारित शासन पद्धत्ति को सम्भव बना सका। ओवैसी का भड़काऊ तंत्र-मंत्र धरा-का-धरा रह गया, क्योकि भारत का मुसलमान उस ''सब'' में बना रहा जो सबके साथ मिल कर प्रयास करते-करते विकसित होता है। तथास्तु। ॐ

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