Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 25.05.2022 थूकने का उसूल

थूकने का उसूल किसी दढि़यल मुल्ले को कहते सुना कि खाने की चीजों को थूक से पाक (?) बनाना उसके मजहब का उसूल है। हो सकता है़, कुछ दिन बाद सुनने को मिले कि संसार की सारी अखाद्य वस्तुयें खाना मुसलमानों के रेलिजन का अनिवार्य नियम है। उन्हें पूरी आजादी है, जैसे चाहें रहें। लेकिन उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि हमारे रहन-सहन को अपनी निचाइयों तक घसीटने की कुचेष्टा करें। हमारे स्तर तक वे नहीं पहुँच सकते, यह उनकी समस्या है। हम तो अपनी ऊँचाई पर बने रहेंगें और अत्यन्त दृढता से निषेधों का पालन करते हुए अपनी सकारात्मक, जीवन्त पवित्रता बनाये रखेंगे। इसके‍ लिए आवश्यक्तानुसार एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच ली जायेगी जिसे कोई रावण लाँघ नहीं पायेगा। प्रीति-भोज के भोजनालय में मुसलमान रसोइया या हेल्पर हो, तो वह खाद्य सामग्रियों पर थूक डाल देगा। मुसलमान अपनी दूकान में सामान पर थूक डाल कर उसे पोंछता-चमकाता है।हलाल सर्टिफिकेट देने के पहले समानों पर थूका जाता है।मुसलमान से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह हिन्दू अपेक्षाओं के अनुसार चल कर अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा। अत: अपने-आप को उनकी हीनताओं के संक्रमण से बचाने हेतु स्वयं ही सावधानियां बरतनी हैं। भारतीय संस्कृति हमसे-आपसे अपेक्षा करती है कि आचर- विचार के स्तर को कभी नीचे न गिरने दें। तथास्तु। 25.05.2022

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