Thursday, May 19, 2022

सुधा सिन्हा विकास की ओर 10.12.2020

विकास की ओर बहुत बड़े अंतराल के बाद भारत विकास की ओर अग्रसर हुआ है। इसमें समाहित है समष्टिगत विशिष्टता। सबको साथ लेकर विकसित होने की आकांक्षा ने इसे लोकप्रिय बनाया है। हजार वर्षों की अवधि में भारत ने अनेक विपदायें झेलीं। मुसलमानों के शैतानी आक्रमण से शुरू होकर ब्रितानी छल-छंद और उसी के उच्छिष्ट कांग्रेसीराज एवं कामनिस्टों की कमीनगी के कारण भारत की अकूत हानि हुई। घोर विपरीत स्थितियाँ भारतीय संस्कृति को चारों ओर से घेर कर कुचल डालने में लगी थीं। इसके अटल आध्यात्मिक पीठाधारतथा जनगण की सहज सम्पन्न सुचिता ने इसे उन खतरों से बाहर निकाला। संसार की सबसे प्रचीन इस संस्कृति ने स्वयं को जीवित रखने के साथ यह संकेत भी दिया कि अपशक्तियों के आक्रमण तथा दुष्प्रभाव से बचने केलिए कौन से तत्त्व अनिवार्य हैं। सबसे पहली चीज है आत्मगौरव की व्यापक अनुभूति। भारत में राष्ट्रीय गरिमा के प्रति श्रद्धाभाव की जागृति अचानक नहीं हुई है। यह किसी राजनैतिक ताल-मेल की उपज भी नहीं है। यह है राष्ट्र के अंतर में गहनता से छिप कर लहलहाती वह्नि का यज्ञाग्नि के रूप में प्रकट होना। राष्ट्रप्रेम एक स्वत:स्फूर्त सद्भाव है जो व्यक्ति के मन में जब संचारित होता है तब वह मातृभूमि को ''स्वर्गादपि गरीयसी'' मानता है। सदावत्सला मातृभूमि से प्रेम करने वाला जनगण उसे सुरक्षित देखना चाहता है; वह ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे राष्ट्र की सुरक्षा को आँच आये। राष्ट्रप्रेमी अपनी योग्यता तथा सम्पन्नता को अपने देश से जोड़ कर देखता है। व्यक्तिगत रूप से उजाले बाँट दो 2 सौष्ठवयुक्त बनाने वाला उसका उद्यम उसके देश को भी ऐश्वर्ययुक्त बनाये, यह मूक मनोभाव सभी देशप्रेमियो में बना रहता है। राष्ट्रभक्त अपने राष्ट्र का अपमान सहन नहीं कर सकता। वह अपराधी को समुचित उत्तर अथवा दंड़ देता है। इसके लिए कोई उस पर असानशीलता का लांछल लगाये, तो लगाये वह परवाह नहीं करता। भारत का बहुसंख्यक जनगण राष्ट्रवादी है। और, भारतीय राष्ट्रवाद कोई राजनैतिक सोच नहीं है; यह है राष्ट्रसंरक्षण का महायज्ञ जिसका प्रतिभागी होने में हर भारतीय गौरव का अनुभव करता है। भारत के कोने-कतरों में छिपे साँप और कूड़े-करकट में कुलबुलाते कीड़ेइस यज्ञ के ताप से बिलबिला उठे हैं। ये अपनी पहचान नहीं बना पाये हैं। इन सब में एक common factor है--विद्वेष। इनके विद्वेष का विष केवल सत्ता के‍ विरुद्ध नहीं है; यह राष्ट्र की अस्मिता को विषाक्त कर रहा है। इन विषैले जन्तुओं का कारगर इलाज है इन्हें चुन-चुन marginalize करते-करते विलोपन की इनकी नियति तक पहुँचा देना। विकास की दिशा में अग्रसर राष्ट्र का पथ निष्कंटक करने हेतु यह अनिवार्य है। तथास्तु। ॐ 10.12.2020 सुधा 9047021019

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