Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 22.03.2022 ज्ञान से कर्म तक

ज्ञान से कर्म तक बहुत-सी बातें जानने के बावजूद, उन्हें कर्म तक ले आने में हम लापरवाही बरतते हैं। कभी-कभी जानकारी एक निष्क्रिय संतोष दे देती है। अज्ञान से निकल कर हम सुरक्षित अनुभव करने लगते हैं। ज्ञान हमें कवच की तरह प्रतीत होता है। हमारे सामने जब कोई विपरीत परिस्थिति हो, तब इस कवच को हम अपनी बैठक की दीवाल पर प्रदर्शन केलिए छोड़ देंगे या शरीर पर धारण कर विद्वेषी-विपक्षी का सामना करेंगे ? *भारत युगों से ज्ञान और कर्म के बीच संतुलन बैठा कर अपनी संस्कृति को समृद्ध करता आया है। इसने सारे संसार को अपना कुटुम्ब माना। लेकिन इस उदात्त हिन्दू अभिवृत्ति तक दरिंदे मुसलमान या छली ईसाई की पहुँच नहीं थी; उन लुटेरों और ठगों ने इसे अपना शिकार बनाया; इसका भौतिक ऐश्वर्य लूटा, इसकी ज्ञान-सम्पदा को आग के हवाले कर दिया, जनगण की हत्या की और अनेक क्रूर दुष्कमों से मर्मान्तक कष्ट पहुँचाया।*कलियुग बीत चुका है। एकाग्रचित्त अर्जुन के इस देश को 'गीता' के अमिट संदेशों का स्मरण है। यह भ्रमित होने वाला नहीं है। इसके प्रबुद्ध जनगण का ही प्रताप है कि मुसलमानों की नवाबी धरी रह गयी। इसी सशक्त जनगण ने ब्रितानियों को लात मार कर बाहर कर दिया। अब, उन अभागों का बुरा हाल होने वाला है जो इस देवभूमि को मुसलमानी मंडी बनाने की मंशा पाले बैठे थे। वस्तुत: यह है ज्ञान से कर्म के योग का शुभमुहूर्त। तथास्तु।

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