Thursday, May 19, 2022

सुधा सिन्हा ज्ञान वापी 10.04.2021

ज्ञान वापी विश्वनाथ महादेव की काशी संसार के प्राचीनतम नगर के रूप में प्रतिष्ठा पाती है। ज्ञान महिमा की दृष्टि से इसका स्थान सर्वोच्च है। निश्चेतना के अंधकार को भेद कर सृष्टि में दिव्य चेतना की रश्मियां विकीर्ण करने में काशी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विकसित होते ज्ञान की उष्ण सक्रियता नहीं झेल पाने वाली निश्चेतना, जान बचाने केलिए छिपती रही। उसने नकारात्मक अपतत्त्वों में आश्रय ढ़ूंढ़ लिया और मौके की ताक में दुबकी थी। दोहजार इक्कीस वर्ष पहले, ईसा नामक दिव्य मसीहे को मार कर हत्यारों द्वारा ही रेलिजन का whole sale बाजार खोल लिया गया। उस दिवंगत युवा देवदूत की सूली पर लटकी हुई मूर्तियां थोक भाव से बेचने का धंधा चल निकला। अच्छी कमाई होने लगी। वह थी दिव्य चेतना के हनन की भयानक दुर्घटना। उस अमानुषिक, ह्रिंस, जघन्य कुकृत्य ने निश्चेतना में प्राण फूंक दिये। उसने हडबडी में लम्बा कुरता और छोटा पाजामा पहन लिया, सर पर सहस्र छेदों वाली टोपी डाट कर रेलिजन की दूसरी मंडी चालू कर दी। पन्द्रह सौ बरस से निश्चेतना ही विश्व स्तर पर पसर कर मानव क्रमविकास को धता बताने की कुचेष्टा में लगी है। किन्तु..... आकाश से पाताल तक व्याप्त सूक्ष्म चेतना ने अदृश्य रह कर भी जब निश्चेतना को निष्प्रयोजन बना कर रख दिया, तब वह आँखें मल-मल कर बिसूरने लगी। उसे शिव से पंगा लेने का परिणाम नजर आने लगा है। तथास्तु। उजाले बाँट दो 10.04.2021 सुधा

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