Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 09.02.2022 प्रकारान्तर

प्रकारान्तर सब समझ रहे हैं कि देश में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, आ चुका है और इसकी प्रक्रिया जारी रहने की सम्भावना है। इसका श्रेय देने के सवाल पर तर्क-वितर्क करने की आवश्यकता नहीं है; सारा श्रेय जनगण को जाता है। तब प्रतिप्रश्न उठता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जब मोहनदास करमचंद गाँधी के लाडले जबाहरमियां के कारण राष्ट्र रसातल में जा रहा था, तब जनगण कहाँ सोया पड़ा था। वस्तुत: जनगण कभी सोता नहीं है, अलसाता भी नहीं है। वह हतप्रभ जरूर होता है। उलझन में पड़ा हुआ जनगण जब अपने-आप में आया, तब तक आधी शताब्दी से अधिक का समय बीत गया। देश को छलने वाले नकली पंडित और मौके का फायदा उठाने वाले गाँधी element ने देश को मुसलमानों और अंग्रेजों से भी अधिक नुकसान पहुँचाने केलिए राष्टीय संस्कृति तथा हिन्दुत्व की हत्या केलिए औजार तैयार होते रहे। हत्यारा नम्बर वन था कांग्रेस और अनेक छुटभैये भी दल बाँधने लगे। कांग्रेस या कामनिस्ट अथवा लाल-हरी टोपीधारी कोई गिद्ध-पार्टी, सब की रीति-नीति एक ही रही है; सारे देश में हिन्दुत्व की शुभफसल में आग लगा कर, मुसलमानी बबूल की खेती करने की कुटिल मंशा के साथ सब राज करना चाहते थे। लेकिन भारत के जनगण ने इन सब के विद्वेषी इरादे पर पानी फेर दिया। सत्तारूढ़ कांग्रेस को धकेल कर धूल चटा दिया और अन्य बनैलों को चेतावनी देदी कि सिंह की खाल ओढ़ कर हुआँ-हुआँ करने वाले गीदड़ों का इससे भी बुरा हाल होगा।जनगण ने मन-मान-मर्यादा के अनुसार राजा चुन लिया। विरोधी खेमे की हरकतें कालीन की तरह बिछ गयीं। तथास्तु।

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