Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 15.05.2022 अननुज्ञापित

अननुज्ञापित सुना आपने ! कोई नासमझ मुसलमान बोल रहा था कि जिस तरह भारत में ''अंग्रेजों भारत छोडो'' का नारा लगाया गया था, वैसा नारा मुसलमान के विरोध में कभी नहीं लगा। दरअसल, भारत में मुसलमानों की नाजायज उपस्थिति और घुसपैठ के विरुद्ध मचे सामाजिक तथा राजनैतिक हहरोर को लेकर यह बात कही गयी है। कहने वाले को सच्चाई का पता नहीं है। सत्य तो यह है कि प्रथम मुसलमान आक्रान्ता के विरुद्ध भारत में जो प्रतिरोध हुआ, उसकी श्रृंखला आजतक जारी है। सन् 1947 में ब्रितानियों को भगा कर मिली आजादी के बाद सत्ता पर काबिज जबाहरमियां ने मुसलमानों का दिमाग आसमान पर चढ़ा दिया। पाकिस्तान बना कर भारत का भूगोल बिगाड़ा ही जा चुका था, जबाहरमियां और कामनिस्टों की मिली भगत से इतिहास तथा शिक्षण- सामग्रियों में भी भारत के सच्चे स्वरूप के बदले उसकी भग्न दागदार छबि दिखाई गयी। भारत के प्राचीन गुण-गौरव को आँखों से ओझल करने की साजिश की गयी। लेकिन बहुसंख्यक जनगण ने इस षड़यंत्र का भंडा फोड़ कर जबाहरमियां के दल को पदच्युत कर दिया और कामनिस्टों की बोलती बन्द करा दी। भारत में मुसलमान को कभी पसंद नहीं किया गया। यहाँ तो यह पशु से भी बद्तर समझा जाता है। इसका कारण है मुसलमान का हिंसक, अपवित्र आचरण। मुसलमान की हीनता जताने केलिए उसे म्लेच्छ और छुतहर कहा गया। और, केवल भारत ही नहीं, पूरा संसार मुसलमान को नापसंद करता है। इतना ही नहीं, मुसलमान आपस में भी एक-दूसरे को पसंद नहीं करता; जहाँ कोई गैर मुसलमान न हो, वहाँ खुद एक-दूसरे से लड़ मरता है। तथास्तु। ॐ

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