Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 16.05.2022 सत्य का सबूत

सत्य का सबूत सत्य भले ही अपने-आप में अमूल्य है, परन्तु उसका होना ही पर्याप्त नहीं है; उसे मामूली साक्षों के सहारे अपने को प्रमाणित करना पड़ता है। हास्यास्पद दीखने वाली इस बात से पता चलता है कि क्रमविकास में मानव किस स्तर पर है। अधिकांश लोग, चूँकि स्थूल इन्द्रिय-ग्राह्य वस्तुओं पर ही विश्वास करते हैं, इसलिए सत्य को सिद्ध करने केलिए भौतिक साक्ष्य-प्रमाणों की आवश्यक्ता पड़ जाती है। सत्य में ऐसी सूक्ष्म शक्ति निहित है, जो स्थूल बातों तथा स्थितियों में प्रवेश कर उनके मूल्य की वृद्धि करती है। परन्तु जब प्रतिवादी, प्रदीप्त सत्य को भी कुतर्क से ढ़ँकना चाहता है, तब किसी सत्यवादी को उसकी लौ बनाये रखने हेतु अथक परिश्रम करना पड़ता है। * दरिंदे मुसलमानों ने भारत में हजारों दिव्य मंदिर भग्न कर अँखरे-रुखरे बेरौनक मस्जिद बनाये। लेकिन इसको लेकर सवाल उठाने पर, सबूत मांगे जाते हैं। इतना ही नहीं, हजारों वर्ष पहले बने विलक्षण मंदिरों के दर्शनीय अवशेषों को नकार कर, कुछ सौ साल की मस्जिद को अनन्तकालीन बताया जाता है। मंदिर तोड़ा जाना अनुचित था, इसे अनसुना कर, बेशर्मी के साथ किसी झूठे सौहार्द्य की बात उठा दी जाती है। सौहार्द्य? यानी हिन्दुओं से एकतरफा सहनशीलता की अपेक्षा ! ! भारत का बहुसंख्यक जनगण भारतीय संस्कृति तथा ''धर्म'' के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझता है। उसे विश्वास है कि यदि उसकी सक्रियता सत्य पर टिकी रही, तब परमप्रभु स्वयं साक्ष्य बन कर उपस्थित हो जायेंगे। तथास्तु । ॐ

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