Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा जय श्रीराम

जय श्रीराम किसी अहमक ने कहा है कि 'No one can force me to say JAY SHREE RAM'; वह मूर्ख पहले अपने अन्दर झाँक कर देखे कि क्या उसमें 'JAY SHREE RAM' उच्चारने की योग्यता है भी या नहीं। जिसकी जिह्वा यह पवित्र नाम लेने में समर्थ है, वह किसी के रोके नहीं रुक सकता। और, किसी घिनौने मुँह की औकात नहीं है कि इसका उच्चारण कर पाये। फिर, इसमें force की जगह कहाँ रह जाती है? हो सकता है, बेहूदा बकवादी अपनी नाकामी पर परदा डालने केलिए, force के आगे नहीं झुकने का मिथ्या ढ़कोसला गढ़ रहा हो !!! 'श्रीराम' में, शब्द के परे, एक ऐसी कालातीत विशेषता है जो व्यक्ति को, वातावरण को अपनी पहुँच से बहुत आगे ले जाती है। लेकिन इसमें कोई प्रतियोगिता नहीं है। या किसी छल-कपट की भी गुंजाइश नहीं है। बल्कि खुली छूट है; 'राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट' !!!लूट कर ले तो आये, लेकिन इस दुर्लभ पदार्थ को सँभाल कर रखें, ऐसी जगह कौन सी है? जगह तो है, लेकिन उसमें कबाड़ भरा है; पहले उसे साफ तो कर ले ! और, यह भी जान लें कि यह ध्वनि अपना आकार बढ़ाती ही जाती है---- राम के नाम हृदय में धरो, न मिटे न गले नहीं होत पुराना। बढ़े दिन-दिन, घटे न कभी, नहीं आगि लगे, नहीं चोर चुराना। तथास्तु। ॐ

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