Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 16.11.2021 विकास की पटकथ

विकास की पटकथा क्रमविकास में मानव विभिन्न स्तरों तथा स्थितियों से गुजरता रहा है। एक 'देहप्रधान' स्तर था। उसमें चेतना मुख्यत: बाह्य पदार्थो के साथ ही संलिप्त रहा करती थी। अपनी प्रारंभिक अवस्था में मस्तिष्क भी तटस्थ था; उसमें भले-बुरे के बीच विभेद करने की क्षमता धीरे-धीरे विकसित हुई। मन-मस्तिष्क अनुमन्ता बन पाया इसके पहले, इन्द्रियों की उत्तेजना के संदेश पर ही शारीरिक क्रियायें होती थीं।सारे संसार में मानव अपने-अपने ढंग से विकसित हुआ। इस सूक्ष्म विकास की गति और गुणवत्ता में भारत अग्रगण्य रहा। भारतीय ऋषि-मुनियों को सृष्टि में दिव्यता का अनुभव हुआ था। उन्होंने तपस्या के द्वारा नश्वरता में निहित अमरता का सूत्र उपलब्ध किया, उसे मानवोपयोगी बनाया। उनका उद्देश्य मानव जीवन को ''आत्माप्रधान'' बनाना था। यह एक स्वचालित क्रिया थी; इसे त्वरित करने हेतु 'योग' पथ का अनुसंधान अनुकूल सिद्ध हुआ। सनातन काल से ही भारतीय आध्यात्मिकता मानव को उच्च स्तरों तक पहुँचने केलिए सक्षम बनाने लगी।‍ निर्देश देने तथा उदाहरण प्रस्तुत करने हेतु मानव शरीरधारी दिव्यता का अवतरण होने लगा। क्रूर पशुता, तामसिक जडता, जटिल मूढ्ता, यौन उच्छृंखलता को मानव तिलांजलि देने लगा। मानव चेतना से निष्कासित हीनतायें संसार के उन भागों में जड़ जमाने लगीं जहाँ विकासहीन जड़ता और खौफनाक मूढ़ता का बोलबाला था। यहाँ तक कि वहाँ अवतार को ही सूली पर चढा दिया गया। इतना ही नहीं, उस जघन्य कुकृत्य को opportunity उजाले बाँट दो 2 की तरह भुनाया और दिव्यता के विरुद्ध सूली को औजार बना लिया। इसके देखा-देखी, एक दूसरा दस्यु दल भी संसार की विकासशील संस्कृतियों को मिटाने का अपना बूचड़खाना खोल कर बैठ गया। भारत में भी पतित मंशा लेकर दोनों दरिंदे बार-बारी से घुस आये। विकास पथ पर अग्रसर भारत, उन दोनों की क्रूर कुटिल हरकतों से हतवाक हो गया। अपने को सँभालने में देश को समय लगा, परन्तु मुक्त होने का जो प्रयास प्रारंभ हुआ, उसका सिलसिला आज भी बन्द नहीं हुआ है। क्योंकि छल और पाशविकता के बल पर कुछ काल केलिए भारत की सत्ता हथिआने वाले उन परदेशी दरिंदों की नाजायज औलादें भारत में मौजूद हैं; इस देवभूमि का ''बने रहना'' इन जारजों को नहीं देखा जाता। भारत केलिए मुसलमानी आक्रान्ता और ब्रितानी तिजारती जितना अबांछनीय था, उन दोनों केलिए भारत उ‍तना ही कठिन शिकार बना रहा। संसार भर में फैलने वाला अभिशप्त ब्रितानी ''राजकामी'' भारत से निष्कासित किया गया। दरिंदा मुसलमान जो भरी-पूरी उन्नत संस्कृतियों को साल-दो-साल में ही चाट कर विलोपित कर देता था, हजार साल से भारत में विनाश का नंगा नाच करते हुए भी सिर धुन रहा है। वह अपने पूर्वज आक्रान्ता के कुनामिक मस्जिद के मलवे पर बैठ कर टेसुये बहाने के बहाने तलाश रहा है। आस्था के केन्द्रों को धरती खोद कर निकालना हो या भटकों की घरवापसी हो, भारत में चलने वाले सारे पवित्रीकरण अभियान मानव क्रमविकास के ही आयाम है। ॐ16.11.2021 सुधा 9047021019

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