Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 14.07.2019 राम अनुरागी

राम अनुरागी श्रीराम के दंडकारण्य आगमन का मुख्य उद्देश्य था दानवों का विनाश। आर्यावर्त के वनप्रान्तर में तथा उसके आसपास दानवों ने डेरा डाल रखा था। उनके मुख्य शिकार तो थे संत-मुनि परन्तु वनवासी जनगण के जीवन को भी उन्होंने दूभर बना दिया था। अशान्ति, आतंक और आक्रमण द्वारा दानवराज का विस्तार उनका अनकहा उद्देश्य था। दानवों के अधीन रहने वाले, न चाहते हुए भी, आनवी गतिविधियों में शामिल होने को विवश थे।राम का अभियान प्रारंभ होते ही खलबली मच गयी। दानव और उसके समर्थक बिलबिला उठे। दानवविरोधी दम साध कर बदलाव की प्रतीक्षा करने लगे। राम के वनवास से साधुओं में पुनर्वास का विश्वास उत्पन्न हुआ। सामान्य जन में आस जगी कि अब जबरन दानव बनाये जाने की त्रासदी पर रोक लगेगी। मानव केलिए जो आश्वासन था, वही दानवराज केलिए भय का कारण बन गया। शास्त्रोक्ति है कि एक ही भग्वद्कृपा तथा क्रिया से भक्तों के भय और दानवों की देह का नाश होता है।मानव क्रमविकास के उदीयमान सूर्य पर ग्रहण लगाने वाले रावण ने श्रीलंका को अपनी राजधानी बना कर उसे अपने अतिचार का केन्द्र बना लिया था। उसने मातासीता का अपहरण कर राम के अभियान को व्यर्थ करने की कुचेष्टा की। परन्तु हुआ इसके विपरीत; इस दुर्घटना से राम की युद्धनीति-रीति लक्ष्यकेन्द्रित तथा तीक्ष्ण हो गयी। उन्हें कम-से-कम समय में अपना अभियान पूरा कर लौटना भी था। रावण अपनी सीमा के बाहर तो आतंक फैला ही रहा था, अपने राज्य के साधुस्वभाव लोगों को भी चुन-चुन कर कुचल रहा था। उसके द्वारा सताये गये धर्मप्रवण वीरों की संख्या बढती जा रही थी। रावण क्रूरता को वीरता का पर्यायवाची मानता था। बल के अलावा छल करने में भी उसे हिचक नहीं होती थी। श्रीलंका का वीरयोद्धा समूह अन्याय और बदचलनी का सहअपराधी नहीं बनना चाहता था। शासक-प्रशासक के दुष्कृत्यों से बेहाल शक्तियां अपने को समेट कर रावण के विरुद्ध खडी होने लगी थीं। ''दानव'' का ठप्पा बलात डाल देने के बावजूद जो चूडान्त दानव नहीं बने थे, वे भी उस अपवित्र शिकंजे से निकल कर मानव कुल में आने के प्रयास करनें लगे। जब रावण की अनुचित आज्ञाओं का उल्लंघन करने के कारण उनके प्राणों पर बन आयी, तब वे लंका से पलायन करने लगे। जलधि पार करना कठिन था। फिर भी वे जान बचाने केलिए समुद्र तैर कर या अनगढ नौकाओं के सहारे निकल भागे और आसपास के द्वीपों में शरण लेने लगे। पलायन का यह सिलसिला सामूहिक बन गया, तब निर्जन द्वीप समूह ऐश्वर्यशाली द्वीपमाला में परिणत हो गये। मातासीता के संधान में लगे प्रभु राम श्रीलंका पर चढाई करने जा रहे हैं यह बात आग की तरह फैल चुकी थी। द्वीपमाला में शरण लेने वाले इन पलायित धीर-वीरों ने मन-ही-मन अपनी जन्मभूमि से क्षमा याचना करते हुए राम का साथ देने का निर्णय कर लिया। वस्तुत: दानवराज से मुक्ति पाने केलिए वे जिस नायक की तलाश में थे, वह उन्हें मिल गया। जो रावण उन्हें दुर्बल-हीन-भगोडा बता कर अट्टहास किया करता था, वे उसी के मरण को सुनिश्चित करने वाले यूथ में सम्मिलित हो गये। * दानव-दलन का अभियान प्रत्येक युग में चलता है; आज भी जारी है। और, राम अनुरागी की शुभनियति उसे अपने नायक तक अवश्य पहुँचा देती है। ॐ14.07.2019 सुधा 9047021019

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