Thursday, May 19, 2022

सुधा सिन्हा 21.04.2021 अवश्यम्भावी

अवश्यम्भावी सबसे आवश्यक है तुष्टिकरण एवं प्रलोभन के प्रदूषण से मुक्त अनुकूल वातावरण। ''घर-वापसी'' हेतु उत्कंठित व्यक्ति या समूह, अनेक प्रकार की विपरीततायें झेल चुका होता है। यदि इस दैव नियोजित अवसर पर भी उनका निरादर किया जाये तो ''घर-वापसी'' के साधु अभियान की गति भंग हो सकती है। आशाओं से भरे, घर-वापस आये व्यक्ति या समूह को अगर ''घर'' के द्वार बन्द मिलें तब सब से अधिक हतोत्साहित होंगे वे लोग जो, सब की नजर बचा कर ''वापस'' आने केलिए अपने सामान समेट, कतार में लग चुके हैं। इसे सहज व्यवहार की आधारभूमि पर सम्भूत होना है। शुद्धिकरण का औपचारिक यज्ञ पूरा होने के पश्चात ''वापस'' आये व्यक्ति या समूह के प्रति सारी शंकायें निर्मूल हो जानी चाहिए। परन्तु इस मनोभाव केलिए दोनों पक्षों की चित्तवृत्ति में समानता अपेक्षित है। घर-वापस आने वाले को पूर्व प्रकरण के कारण हीन न समझा जाये, इसी तरह यह भी जरूरी है कि ''वापस'' आने वाला विशेषाधिकार या लल्लो-चप्पो का दावा न करे। इतना ही नहीं, उसे अपनी पुरानी आदतें भी बदलनी होंगीं; यथा, हिन्दुत्व के मान्य पवित्र आचार-विचार के अनुसार अपने को ढालना होगा। इसके लिए उसे संवेदनशीलता के साथ सुझाव और समय दिया जायेगा।सनातनता से वियुक्त हुए लोगों की निष्कंटक ''घर-वापसी'' एक ऐतिहासिक सामाजिक सत्य बनने वाला है। तथास्तु। सुधा

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