Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 17.04.2022 निर्भयता बनाम भय

निर्भयता बनाम भय सनातन भारतीय आध्यात्मिक मान्यता है कि मानव स्वभाव का नियंत्रण आत्मा के हाथ में है। बाह्य स्थितियां स्वभाव को प्रभावित करती हैं; परन्तु उनका असर सतह पर और सामयिक होता है। उसके स्वभाव में जो गुण निहित हैं, उनमें निर्भयता का स्थान उच्च दीर्घा में है। आज का बहुसंख्यक भारतीय जनगण उन श्रेष्ठों का वंशज है जिन्होने भारत को ''भारत'' (प्रकाशयुक्त) बनाया। गंगा को पृथ्वी पर उतारना या समुद्र पर पुल बाँधना या ऐसे असंख्य अपौरुषेय पराक्रमों की कथायें myth नहीं,सत्य हैं। उन सारी घटनाओं के पीछे कोई-न-कोई उदात्त उद्देश्य रहा है और रही है सबल निर्भयता। इस निर्भयता में आतंक जैसी नकारात्मकता का प्रवेश नहीं है। जिसे आजकल आतंकी और आतंकवादी कहा जा रहा है, उन्हीं के मानसिक पूर्वजों ने भारत के असंख्य देवमंदिर तोडे और अकूत ज्ञान-सम्पदा को विनष्ट कर दिया। परनतु उन अभागों को पता नहीं था कि भारत का ज्ञान-ऐश्वर्य केवल पोथियों तक सीमित नहीं था। उस समस्त ज्ञान सम्पदा को अपनी ''स्मृति'' में सुरक्षित रखने वाले भारत के गुरु समर्थ शिष्यों को ज्ञान का आगार बना कर इस परम्परा को बनाये रखने का उत्तरदायित्व सौंप देते थे। गुरु-शिष्य की पवित्र परम्परा से भारतीय समाज माँग रही है भारत माता 2 को अनेक लाभ हुए; यह अपने कर्म को उदात्त प्रयोजन से संयुक्त कर सदा केलिए भयमुक्त होकर जीना सीख गया। इस निर्भयता को कभी-कभी लापरवाही समझने की भूल की जाती है। इसी नासमझी के मारे मुसलमान और ईसाई दोनों समुदाय अपनी कालिख लगी कूची भारत पर फेरने में लगे रहे हैं। लेकिन बाह्य स्तर पर असावधान दीखते भारत की सतर्क आत्मा उन पतितों की कूची उन्हीं पर फिरा दिया करती है। तब भारत में रह रहे उपरोक्त दोनों समुदाय और उनके चमचे घिघिआ कर अपना भय जाहिर करने लगते हैं कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साजिश चल रही है !!! ले बलैया ! तो तुम इस देश को क्या समझ रहे हो? मक्का-मदीना या वैटिकन ? एक ओर भारत का बहुसंख्यक जनगण, संतुष्ट निर्भय जीवन जी रहा है तो दूसरी ओर यहाँ का अधिकांश मुसलमान और ईसाई हीन मानसिकता का शिकार हो कर सिर धुनता रहता है कि भारत में उनका ''राज'' क्यों नहीं है। कारण यह है कि इस्लाम और क्रिश्चनिटी राजपरक रेलिजन हैं; और हिन्दुत्व के अंतर्गत धर्म का राज नहीं, बल्कि राज का धर्म होता है। एक ही स्थिति में यहाँ, जब उचक्का दुराचारी बात-बेबात भयभीत होता रहता है, तब हीनता और दुराचरण को पास फटकने नहीं देने वाला बबहुसंख्यक जन निर्भय जीवन जीता है

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