Thursday, May 19, 2022
सुधा सिन्हा जड़ पिंड 25.12.2020
जड़ पिंड
श्रीराम अपनी भार्या सीता तथा अनुज लक्ष्मण सहित सानन्द
वनवास में थे कि एक स्वर्णमृग ने आकर शान्ति भंग कर दी।
माता सीता ने स्वर्णमृगचर्म पाने की इच्छा व्यक्त की तो
श्रीराम के अचूक वाण से वह पशु मारा गया। वह मायामृग
मारीच नामक दानव था। परम प्रभु द्वारा मारे जाने के कारण
उसकी आत्मा मुक्त हुई परन्तु दिव्य वाण के तीव्र वेग से
उसका स्थूल तन सुदूर दक्षिण समुद्र में जा गिरा और एक
द्वीप के रूप में परिणत हो गया। मारीच अपनी सम्पूर्ण मुक्ति
चाहता था। इसके लिए जब उसकी देहविहीन आत्मा ने प्रभु से
प्रार्थना की तब उसे ब्रह्मा के पास जाने का निदेश प्राप्त हुआ
क्योंकि वही प्रारब्ध के नियामक हैं। ब्रह्माजी ने मारीच की
जड़देह की मुक्ति को असम्भव बताया;मारीच ने कारण
जानना चाहा।
तुम्हारी देह शापित है।
किसके शाप से ?सीता माता के अभिशाप से। उनका
आशीर्वाद और शाप दोनों ही अमोघ हैं। जिस दैहिक छल से
तुमने उनके पवित्र परिवेश को प्रदूषित किया, तुम्हारा तन उसी
छल का महापिंड बन गया। कलियुग में वह छल-छद्म-क्षुद्रता-
अर्थदूषण-ईर्ष्या-पिशुनता का केन्द्र बन जायेगा। वह अपना
छिछलापन छिपा कर लोगों को लुभाता और ठगता रहेगा।
द्वापर के प्रवेश के किंचित काल बाद उसके पाप का घड़ा
फूटेगा और उसकी स्थिति कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।
पूर्णमुक्ति का दिवास्वप्न मत देखो, देहासक्त मारीच ! तुम्हारी
नियति है विलोपन। तथास्तु।
25.12.2020 सुधा 9047021019
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