Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 20.4.2022 अपेक्षायें

अपेक्षायें संसार भर में छाये भारत-विद्वेषी गैंग के एक बेचारे को लम्बी उसाँस भर कर कहते सुना-- लगता है कोरोना के उपचार की दवा भी भारत ही बना लेगा । इस आह भरे कथन में भारत को श्रेय मिल जाने की आशंका से होने वाली ईर्ष्या भरी थी; दवा बन जायेगी, इस सम्भावना की खुशी नहीं दीखी। ऐसे हीन मनोभावों के काले वादल को चीरते हुए भारत सदा ही वैश्विक अपेक्षाओं पर खरा उतरा है। चूँकि भारत मानव संसाधन की विलक्षण क्षमताओं से सम्पन्न है इसलिए यह सम्भव हो पाता है । और, भारत की यह सम्पन्नता नयी नहीं है; युगों से आर्ष भारतीय अन्वेषक-वैज्ञानिक विश्व स्तर पर अन्वेषण तथा अद्भुत प्रस्तुतियों में अग्रणी रहे हैं।विकास पथ पर कदम रखने वाला अधिकांश नया-नबेला देश या तो भारत की प्राचीन महानता को जानता ही नहीं या जान कर भी उसे नकारता है। उसे यह स्वीकारने में तकलीफ होती है कि अनेक समस्याओं से जूझता भारत वैश्विक क्लेष दूर करने में सबसे आगे निकल जायेगा। उसे यह पता नहीं है कि भारत समस्या को कठिनाई नहीं बल्कि विकसित होने का अवसर मानता रहा है। और, इसी स्वभाव ने भारत को इतना समर्थ बनाया है। भारत केलिए पिछला हजार बरस अभिषप्त और विपत्तिकारक था; उस कालखण्ड में इसके धन-मान की भीषण हानि हुई। बर्बर मुसलमान आक्रान्ताओं और छली ब्रितानियों ने इसकी सम्पदा लूटने में क्रूरता और कुटिलता की सारी हदें पार कर दीं। दोनो भारत को ''हथिआने'' आये थे। लेकिन खोखली नवाबी और राजशाही दिखाने से अधिक कुछ नहीं कर पाये। दरअसल, क्रमविकास की दृष्टि से मनुष्य और पशु के बीच जो अंतर है, वही फर्क था भारतीय जनगण तथा मुसलमान-ईसाई घुसपैठियों उजाले बाँट दो में; और, यही था उनके ''फेल'' कर जाने का मुख्य कारण। लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से उनकी कुटिल चालें अब भी जारी हैं। कांग्रेस, कामनिस्ट, सत्ताकामी छोटे-छोटे दल भारत से भारतीयता मिटाने की कोशिश में खुद घिस-पिट रहे हैं। दुनिया भर में ''भारत विद्वेषी-हिन्दू विद्वेषी'' छुटभैयों ने अपनी दूकाने खोल रखी हैं; बिसाती तरह-तरह के gift लेकर बैठा है, फिर भी ग्राहक नदारद !! इस परिदृश्य के विपरीत, बन्धुत्व अभ्यासी भारत के युवा, देवदूत की तरह सारे संसार में Internet सम्हाल रहे हैं। उनके माध्यम से वैश्विक अंतरिक्ष पर भारतीय क्षमता, योग्यता तथा कार्यकुशलता अपनी छाप छोड़ रही है। भारतीय वैज्ञानिक केवल एक विषय के ज्ञाता भर नहीं हैं-- वे हैं संसार की प्राचीनतम सुगठित संस्कृति के ऊर्जावान राजदूत। *विद्वेषियों की जन्मजात अपदार्थता जन्य व्यथा को बूझते हुए, क्षमाशील भारत उन्हे माफी दे देगा। लेकिन, उन्हें ऐसी सलाह कभी नहीं देगा कि वे अपने इस मानसिक कष्ट से उबरने केलिए भारतीय स्वभाव के गुण ग्रहण करने का प्रयास करें। तथास्तु।

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