Sunday, May 22, 2022

सुधा सिन्हा 04.05.2022 हिन्दू और भारत

हिन्दू और भारत (यहाँ 'हिन्दू' में जैन-बौद्ध-सिख भी शामिल हैं) किसी स्थान में रहने से अधिक महत्वपूर्ण है वहाँ का होना। हिन्दू कहीं का हो, उसकी जड़ें हिन्दुस्तान में ही होती हैं। हिन्दू केलिए भारत का जितना महत्व है, उससे अधिक महत्व भारत केलिए हिन्दू का है; क्योंकि हिन्दू ही भारत को भारत बनाये रख सकता है। हिन्दुस्तान में रहने वाला गैरहिन्दू अगर हिन्दू विद्वेषी है, तो वह हिन्दुस्तानी नहीं माना जा सकता। वह एक ऐसा बेईमान किरायेदार है जो किराया अदा नहीं करता, अपने भद्दे-गलत रहन-सहन से मकान को क्षति पहुँचा रहा है, जिसके कारण भवन की प्रतिष्ठा घूमिल हो रही है, वह इसके आदि वासिन्दों से ईर्ष्या करता है-- उनका अस्तित्व मिटाना चाहता है। किसी कारण से धर्मच्युत होकर जो अब गैरहिन्दू बन चुका है, उससे हिन्दुत्व के प्रति किसी सम्मान की अपेक्षा करना बेकार है। वह चोट खाये विषधर की तरह खतरनाक बन गया है। उसकी आक्रामकता निराधार होने पर भी भारत तथा हिन्दुत्व केलिए अत्यन्त हानिकारक है।'भाईचारा' का एकतरफा प्रस्ताव निरर्थक सिद्द हो रहा है। तुष्ट‍ि करण का प्रयास राजनैतिक प्रपंच बन कर रह जाता है। इन दोनो की कोई सामाजिक सार्थकता नहीं है। बहुसंख्यक भारतीय जनगण को बहुत सतर्कता से भारत एवं हिदुत्व की सुरक्षा इसके सम्मान के प्रतिरक्षण तथा विकास के प्रबन्धन पर ध्यान देना है। याद रहे, भारत का गैरहिन्दू ऐसा बेगैरत जीव है जिसे अपना नहीं बनाया जा सकता। तथास्तु।

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