Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 11.02.2022 असलियत

असलियत बुर्केवालियों को सिगरेट फूंकते मैने देखा। सम्भव है, आप ने भी देखा होगा। उन्हीं के बीच की एक, मुर्गी की तरह गले में लोच दे-दे कर, हिजड़ा नाच दिखा रही थी। उस नौटंकी में बुर्का-सह-हिजाब के पक्ष की पटकथा थी। नाम नहीं बताने का वादा लेकर, एक बुर्केवाली ने ही बुर्के के फायदे गिनाये। सबसे चलता-फिरता लाभ होता है, दुकानों से मनपसंद चीज चुरा कर बुर्के के अन्दरखाने पाकेट के हवाले कर देना। कई दूकानों को मैं जानती हूँ (नाम नहीं बता पाने के अनेक कारण है), जहाँ बुर्केवाली के आते ही 'हाइ एलर्ट' घोषित हो जाता है। जो दूकानदार बुर्केवाली को सामान्य मनुष्य समझने की भूल कर बैठते हैं, उन्हें भारी खामियाजा उठाना पड़ता है। इन दिनों बुर्के डिजाइनर होते हैं। उनके नीचे फटी-चिटी लुगड़ी भी चल जाती है। मुसलमान होने की पहचान बनाये रखने केलिए नहाने-धोने से परहेज किया जाता है; देह और उसमें पहने गये गंदे कपड़ों से उठती सड़ायँध को बुर्के पर डाला गया सस्ता सेंट यथासम्भव अन्दर-ही-अन्दर घुमड़ाये रखता है।बुर्का केवल गंदगी और दुर्गंध ही नहीं, अनेक प्रकार के पापों की परदादारी करने का साधन है। अत: किसी स्कूल या कॅालेज का ड्रेस कोड मान कर मुसलमान औरत अपने सारे पोल खोल देने का खतरा मोल नहीं ले सकती। भीतरी-बाहरी सारी मुसलमानी गंदगियों को छिपाने के साधन बुर्का को केवल मुसलमान औरत ही नहीं, मर्द भी बनाये रखने में जीजान से लगे रहते हैं। इस उद्गार को देखें -- ''कल जो नजर आयीं बेपर्दह चंद बीबियां, पूछा जो उनसे आपका पर्दा वो क्या हुआ? कहने लगीं कि अक्ल पे मर्दों मे पड़ गया।''

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