Thursday, May 19, 2022
सुधा सिन्हा बजनियां 21.08.2020
बजनियां
बाजा-गाजा हमारे गाँव में आयोजित पूजा-पाठ का एक अनिवार्य अंग-सा बन गया था। पूजा से विरक्त वादकों का एक दल
अपने मोबाइल वाद्ययंत्र के साथ समय पर हाजिर हो जाता था। तरह-तरह के तराने वातावरण में तैरने लगते थे।
पूजा का प्रसाद सब को दिया जाता था। बजनियां को केवल पैसे मिलते थे। मैने बाबा (पितामह) से इसका कारण जानना
चाहा। उन्होंने बताया कि वे लोग पूजा का प्रसाद नहीं खाते। क्यों? क्योंकि मुसलमान हैं।--बाबा समझ गये कि मेरी शंका
दूर नहीं हुई। उन्होंने आगे कहा कि हम उन्हें प्रसाद देंगें भी नहीं; क्योकि वे जिसे अपना पूर्वज मानते हैं उसने हमारे मंदिर
तोडे। मंदिर तोडे ??--पचास के पेठे में पितामह और छह-सात वर्षीया पौत्री के बीच एक स्फुल्लिंग कौंध गया; वह था उस
आक्रोष का संक्रमण जो अपनी संस्कृति बचाये रखने का संकल्प बन कर हिन्दू मनस में पीढी-दर-पीढी दृढ़तर हुआ
है।मैने पूछा- मंदिर फेर कहिआ बनतई? (मंदिर फिर कब बनेगा ?) बाबा ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर, बाल मन को सहारा दिया,
कहा- जहिआ तु सयान हो जयब (जब तुम सयानी हो जाओगी।) सारे पितामह उसी सयाने की प्रतीक्षा करते रहे हैं जो इस
पुनर्प्रतिष्ठा को सम्भव बना दे। यह सयाना जो उम्र के वर्षों का मोहताज नहीं है, जिसके मन-प्राण कीतंत्री पर निरंतर
शास्त्रीय देश-राग बजता रहता है, संस्कृतिसंरक्षण-यज्ञ का पुरोहित भी है और परम-प्रसाद ग्रहण करने वाला आनन्दमग्न
बजनियां भी।
ॐ21.08.2020 सुधा 9047021019
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