Sunday, May 8, 2022

ॐ सुधा सिन्हा -- आखिरी सुख

आखिरी सुख संसार का हर आम-खास आदमी मरता ही है; जबाहरलाल नेहरू भी मर गये। जब उन्हें यमदूतों के साथ ऊबड-खाबड रास्तों से गुजडना पडा, तब गद्देदार कालीनों पर चलने की आदत वाले उनके पैर लडखडाने लगे। वे झुँझला उठे। युवा यमदूत कठिन मार्गों के आदी थे। वे अपनी चाल कम करने को भी तैयार नहीं थे। जबाहरलाल को बहुत जल्द गुस्सा आ जाता था; उन्होंने तडप कर कहा--'तुमलोग जानते नहीं, मैं कौन हूँ !' 'तुम 'हो' नहीं, 'थे'। और, कोई क्या था यह जानना हमारे लिए जरूरी नहीं है। चुपचाप चलो।' लेकिन जबाहरलाल चुप नहीं हुए; अपना परिचय देना जारी रखा और यमदूत को ऐसे सम्बोधित करते रहे जैसे वह विपक्षी पार्टी का कार्यकर्ता हो।वे दोनों यमलोक की कूट भाषा में बात करने लगे-- 'यह तो बडा बेढंगा है। कहो तो एक झाँपड देकर इसे चुप करा दूं !' 'नहीं, बेकार का हंगामा खडा होगा। इसकी बातों पर ध्यान मत दो; खुद ही बक-झक कर चुप हो जायेगा। और, अब तो हमलोग पहुँचने ही वाले हैं।'नरक के परिसर में घुसते ही जबाहरलाल चीख उठे-- कहानियां सच्ची-मुच्ची 2 'तुमलोग मुझे गलत जगह पर क्यों ले आये ?' यमदूत ने उँगली के इशारे से उन्हें चुप रहने का संकेत देते हुए उनका ध्यान सूचना पट्ट की ओर दिलाया जिस पर दुनिया की सभी भाषाओं में लिखा था SILENCE। जबाहरलाल सकपका तो गये लेकिन उनकी बेचैनी कम नहीं हुई। तमाम लोगों का आना जाना लगा था। वे चाह रहे थे कि कोई उन्हें पहचाने, लेकिन किसी ने उनकी ओर देखा तक नहीं। उन्हे यहाँ तक लाने वाले यमदूतों में एक उनकी रखवाली में खडा था, दूसरा सूचना देने अंदर गया था। जब वह लौटा तब गेट खुलने पर उन्हें जो दिखाई पडा उससे उनकी बाँछे खिल गयीं; अरसे बाद वे मुस्कराये। उनकी आँखें धोखा नहीं खा सकतीं-- उन्होने पसीने से तर मिसेज माउंटबैटन को देखा जो जूठे बरतनों की सफाई मे लगी थीं। 30.06.2020

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