Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 11.04.2022 अनायास

अनायास? किन पुण्यों के सुफल से हमें भारत में हिन्दू होकर जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, यह तो ज्ञात नहीं है, परन्तु ऐसा विश्वास है कि सकारात्मक जन्म-जन्मान्तर ने इस स्तर पर पहुँचने का हमारा मार्ग प्रशस्त किया है; यह आकस्मिक नहीं है, इसमें कोई संदेह नहीं है। एक जीवन को, जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त, परीक्षाओं की श्रृंखला बाँधे रखती है। पिछले परिणामों से बेहतर करने का मौका हमें मिलता है। कभी हम उसका लाभ उठाते हैं, कभी अपनी कमियों या परिस्थितियों के शिकार होकर चूक जाते हैं। अपने-आप से लेकर स्थिति तथा परिवेश तक को नियंत्रित करने का कौशल भी कुछ हद तक हममें निहित रहता है; इस जन्म में हम जो नया सीखते हैं, उसका सूक्ष्मांश जीवात्मा के भंडार में जमा होता रहता है। हिन्दू सहिष्णु है, गुरुजनों के प्रति श्रद्धाशील है, अहिंसक है -- यह सब उसके अनेक जन्मों की कमाई है। अपने इस ऐश्वर्य को वह जितनी कुशलता से काम में लायेगा, उसी अनुपात में उसकी समृद्धि होती जायेगी। कोई हिन्दू-विद्वेषी यदि इन सकारात्मकताओं को नकारात्मक नकाब से ढ़ँकने की कोशिश करे तो हम हिन्दुओं को विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे ही दुर्व्यवहारों केलिए हिन्दी का यह मुहाबरा है-- ''हाथी चले बजार, कुत्ता भुके हजार।'' लेकिन हिन्दू को आत्मश्लाघा भी नहीं पालनी है। सदा याद रहे कि हिन्दुत्व का अवदान अनायास नहीं है। ऋषि-मुनियों के तप और सामान्य जन के धैर्य तथा श्रम का सौम्य प्रतिफल है यह। इस उपहार के साथ हमें उत्तरदायित्व भी मिला है। तथास्तु।

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