Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 19.07.2020 स्लोथ और मैस्टोडेन

स्लोथ और मैस्टोडेन स्लोथ और मैस्टोडेन सृष्टि के आदिकालीन पशु थे; बृहदाकार होने के साथ-साथ इनका स्वभाव अति-भक्षी और निष्क्रिय था। बिना उद्यम के खाने और प्रजनन करने वाले इन जानवरों की संरचना में ''दिमाग'' की नगण्यता थी। अत: प्रकृति ने इन आत्मकेन्द्रित पशुओं को पृथ्वी के अन्य जीव-जन्तुओं केलिए खतरा जान कर विलोपित कर दिया। *मुसलमानी ''खानगीकानून'' के नाम पर कैसी हरकते होती हैं, यह सब की समझ मे आ चुका है। मुसलमानों के गुरुघंटाल मौलवी-मुल्ला ने औरत को थप्पड-लात-जूते मार कर ''हलाला'' का आइटम बना रखा है। दाढी, स्कलकैप, लम्बा कुरता और उटुंग पाजामे के भीतर एक ऐसा हैवान है जो अनियंत्रित यौन के सिवा और कुछ नहीं जानता। दूसरों के परिश्रम पर नाहक डाका डालने वाला यह टिह्डी दल पूरे संसार में फसलें चाट रहा है। आज विश्व में मात्र दो दल हैं; एक-गैरमुसलमान, दूसरा मुसलमान। यह मुसलमान वही है जो कभी स्लोथ और मैस्टोडेन था। एक समय प्रकृति ने सृष्टि की रक्षा के लिए जिस तरह उन अकर्मण्य, सर्वभक्षी पशुओं का विलोपन किया, उसी तरह आज मुसलमान का विलोपन अवश्यमभावी है। सृष्टि के मूल में है सामंजस्य; इसे समझ कर अपनाने वाली सनातन संस्कृति ने, क्रमविकास में बाधा डालने वाली मुसलमानी मक्कारी को आईना दिखाकर, संदेश पहुँचा दिया है कि मुसलमान नामक दहशतगर्द समूह अपने को बदले अन्यथा उसकी जगह अजायवघर की आलमारी में ही होगी। 19.07.2020 ॐ सुधा, 9047021019

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