Saturday, May 21, 2022

सुधा सिन्हा 14.02.2022 रिश्ता

रिश्ता क्यों और किसके कहने से, यह 'हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई' की अनर्गल आवाज लगायी जाती थी ? मुसलमान ने हिन्दू को, भाई समझने की बात तो दूर, सदा अपना शत्रु समझा। जब मुसलमान दरिंदें हिन्दू को कमजोर समझने के भ्रम में थे, तब इसे नाचीज मान कर इससे नफरत करते रहे; जब हिन्दू की दाहक शक्ति से मौलानाओं की दाढ़ी झुलसने लगी, तब वे घबड़ा कर इसे और अपने को भी कोसने लगे। प्रारंभ में मुसलमान केलिए हिन्दू की सौम्यता अजनवी चीज थी, बाद में तटस्थ हिन्दू तेज ने मतिहीन मुसलमान को कहीं का नहीं रहने दिया। उसके लिए एक ओर खाई तो दूसरी तरफ खंदक का खतरा था। अगर वह हिन्दू से भिड़ने की भूल करे, तो मिट्टी में मिल जाये और हथियार डाल दे तब जगहँसाई होनी ही है। संसार के और भागों में जैसा किया था, उसी तरह भारत में भी आकर मुसलमान दरिंदों ने विनाश की बेहूदी हरकतें कीं। मंदिर तोड़े, हत्यायें कीं और हाशिये के कुछ लोगों को मुसलमान भी बना लिया। परन्तु भारत के बहुसंख्यक हिन्दू केलिए मुसलमान हीन, म्लेच्छ और अस्पृस्य ही बना रहा। ऐसे में यह 'भाई' का रिश्ता पूरी तरह नकली और जाली है। निस्सन्देह,यह जालसाजी मुसलमान को फायदा पहुँचाने केलिए की गयी,लेकिन आज का हिन्दू इन सारे चक्रचाल में नहीं फँसने वाला है। उसकी श्रेयस्कर प्रगति की निरंतरता अक्षुण्ण है। तथास्तु। ॐ

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