Sunday, May 8, 2022
सुधा सिन्हा -- संस्कार और संस्कृति 07.08.2017
07.08.2017
संस्कार और संस्कृति
संस्कृति समाज को सूक्ष्म
पीठाश्रय प्रदान करती है। सौभाग्य से भारत को
ऐसी संस्कृति का सम्बल प्राप्त है जिसकी
निर्विवाद दीर्घ प्राचीनता में अक्षुण्ण जीवन्तता है।
क्षिति-जल-पावक-गगन-समीर को अपनी मुट्ठी में
लेकर चलने वाली इस सुभग संस्कृति में संस्कारों
की श्रृंखला है। माता के गर्भ में उपस्थित होने से
लेकर देहत्याग के बाद भी संस्कारों का स्पर्श हमें
भारतीयता प्रदान करता रहता है; ऐसी सनातन
भारतीयता जिसमें निहित निरन्तरता हमें
जन्मजन्मान्तर तक विकसित होने का सुअवसर
देती रहती है।
ख्रिस्तानी-मुसलमानी-अनजानी-पहचानी अपशक्तियों
ने इस संस्कृति से टकराने की भूल की; कुछ
अज्ञानवश तो कुछ विद्वेशवश ! कुछ के अज्ञान
दूर हुए तो कुछ के सिर फूटे। परन्तु स्वभाव से
निरहंकारी इस संस्कृति ने न तो अपने गुरुत्व का
और न अपनी शक्ति का ढिंढोरा पीटा। पूर्ण से
निकल कर अक्षर पूर्णता में निवास करने वाली
माँग रही है भारतमाता
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इस संस्कृति ने मूढ अवहेलनाओं की चिन्ता नहीं
की; इसी ने संसार को बताया है कि अंतत: सत्य
की ही विजय होती है।
भारतीय संस्कृति की प्रकृति में ऐसी स्वचालित
आत्मसंशोधकता निहित है जिसकी छुअन विचलन
से उबारती है। इसकी सजग स्फूर्त चलिष्णुता सभी
सकारात्मक तत्वों को अपने में समेट लेती है।
*
जो किसी विवशता या भूल के कारण इससे कट
गये, या जिनका जन्म ही अन्य सांस्कृतिक क्षेत्र
में हुआ--उन्हें भी यह संस्कृति मातृसुलभ तत्परता
से अपने कोमल क्रोड में स्थान देती है। भारत में
पवित्र संस्कार-सृजन की परम्परा है;इसे बनाये
रखने की आवश्यकता है।
ॐ
सुधा(जन्मतिथि-21.11.1933)
सम्पर्क 9047021019
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