Sunday, May 8, 2022

ॐ सुधा सिन्हा --कथा -- बीच का रास्ता 25 जून 2020

बीच का रास्ता सडक पक्की है। उसके दोनों ओर दो गाँव हैं। पहले, बहुत पहले यह एक ही जनपद था जिसमें एक ही मूल-गोत्र के लोग बसते थे। और यह सडक ? यहतो एक पगडंडी थी; बरसात में डूब-डाब कर खो जाया करती थी और लोगों की चहलकदमी से फिर उभर आती थी। इसकी खोयी खुशहाल एकता का इतिहास पुराना है। उसके बाद की बातें बेहद मटमैली हैं; याद करने लायक बिल्कुल ही नहीं। यदि सोच में उभर आयें, तो क्लेष होता है। जिन जख्मों पर पपडियां पड गयी हैं, उन्हें नाहक रिसने और टीसते रखने केलिए कुरेदने से फायदा ? उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाली इस सडक के पूरब है हिन्दुओं का गाँव और पश्चिम तरफ है मुसलमानी बस्ती। इन दोनों भागों के बाशिन्दों के दादा-परदादा के दादा के दादा एक ही थे। इस सत्य को जान-बूझ कर टाल दिया जाता है। बल्कि दोनों समूह ऐसा बनावटी व्यवहार करते हैं जैसे एक ओर के लोग आसमान से टपक पडे और दूसरी ओर वाले धरती फोड कर प्रकट हो गये। यहाँ की दिल दहला देने वाली खामोश कहानियां बहुत कुछ कहती हैं...जिनके मुँह में जोर-जबरदस्ती औरंगजेब के गुर्गो ने गोमांस ठूंस दिया, वे मुसलमान बनने को मजबूर हुए या उसके बहुत पहले अकबर के समय में ही ओहदा पाने का लालच देकर अनेक युवको को ले गये और मामूली खादिम बना कर कलमा पढा दिया। एक ही माँ का जाया कहानियां सच्ची-मुच्ची 2 एक भाई हिन्दू रहा तो दूसरा भ्रष्टता ओढ कर रोता-गाता दूसरी ओर चला गया। अनेक दर्दनाक दैत्य कथायें यहाँ की हवा को भारी बनाये रहती हैं। दुर्घटना चाहे कैसी भी रही हो, यह सच है कि सडक के दोनों ओर की जिन्दगी दो किस्म की है। हिन्दुओं के गाँव में सुहाना सिंदूरी रंग है, तो मुसलमानों की बस्ती को स्याह मनहूसियत ने अपनी गिरफ्त में जकड रखा है। ऐसा नहीं कि सडक ने बीच में आकर यह विभेद उपजाया हो; यह तो अभी हाल ही में पक्की हुई है, हिन्दू मुसलमान के बीच का फासला तो हजार बरस से पथराया हुआ है। जैसे ही कोई हिन्दू मुसलमान बना दिया जाता है, उसी क्षण उसकी भौतिक सत्ता में तात्विक हीनता घर कर लेती है; मानव विकास की प्रक्रिया उल्टी दिशा में मुड कर पतन की ओर बढ जाती है। फिर भी, यह बख्ती सतही अंतर रक्त तक नहीं पहुँचा है। * हिन्दुओं के गाँव में अधिकांश मकान पक्के हैं जिनमें आधे से अधिक दुतल्ले होंगे। इधर के लोग हर साल दीवाली कें पहले अपने घरों की रँगाई-पुताई कराते हैं। श्रावन में हनुमानजी की नयी ध्वजा लगती है और कार्तिक मास में तुलसीजी का नवीकरण होता है। गोवर्धन पूजा में मवेशियों के गले की पुरानी रस्सी हटाकर नयी डाली जाती है, उनके लिए नये खूंटे गाडे जाते हैं और चरबाहों को नयी धोतियां मिलती हैं। देवोत्थान एकादशी के पहले ठाकुरबाडी को चकाचक कर दिया जाता है; ऊपर लगा पीतल का कलश सोने-सा चमकने लगता है। यहाँ हर संध्या आरती के कहानियां सच्ची-मुच्ची 3 समय घडी-घंटा ध्वनि जब गाँव में इस कोने से उस कोने तक गनगना उठती है, तब जो जहाँ होता है, वहीं हाथ जोड कर माथे से लगाता है, अपने को उस समवेत प्रार्थना में सम्मिलित अनुभव करता है। तीज में स्त्रियों की सजधज देखते ही बनती है और उसके दूसरे दिन गणेश चतुर्थी शिक्षकों का जलसा बन कर बच्चों को हर्षाने लगती है। सदा पुनर्नवित होने वाले अश्वत्थ वृक्ष को घेर कर बनाया गया चबूतरा गाँव के अदृश्य रक्षक ब्रह्मबाबा का निवास स्थान है। अक्षय तृतीया को यह पवित्र चबूतरा चंदन-रोली से सजाया-सँवारा जाता है। महाशिवरात्रि के बाद से ही ''फगुआ'' का रंग चढने लगता है। होलिकादहन और उसके दूसरे दिन का रंगोत्सव सारे गाँव को उमंग के रंग में भिँगो देता है। विश्वकर्मा पूजा कर्मियों का त्योहार माना जाता है। इसके लिए कर्मी दलों के बीच चंदा मांगने की होड लग जाती है। लोग औकात भर दिल खोल कर देते भी हैं, क्योंकि सब चाहते हैं कि पूजा धूम-धाम से सम्पन्न हो। सारे गाँव को अनन्त चतुर्दशी की प्रतीक्षा रहती है जब पुरोहित साल भर पुरानी डोर खोल कर नयी बाँधेंगे। श्रीराम नवमी और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अष्टयाम कीर्तनों के मौके पर तो ठाकुरबाडी परिसर में तिल धरने की जगह नहीं होती। और, शरद नवरात्र में ''मैया'' के मंदिर की शोभा देखने केलिए गाँव भर के लोग खिंचे चले आते हैं। इस अवसर पर मंदिर के आसपास की सडकों के दोनों किनारे एक पखवारे केलिए टाट-टप्पर डाल कर दूकानें खडी कर ली जाती हैं। यहीं लोग दीपावली कहानियां सच्ची-मुच्ची 4 केलिए सजावट के सामानों की खरीदारी करते हैं। वार्षिक सफाई का काम तो दस दिन पहले ही शुरु हो जाता है। कहीं महालक्ष्मी तो कहीं महाकाली पूजन के साथ दीपमालिका से जगमगाता गाँव स्वयं अपनी शोभा पर इतरा उठता है। दीवाली के पहले घर-द्वार, बरतन-भाँडे साफ करते समय नजर ''छठ'' व्रत पर रहती है। यह व्रतों का राजा है; कोई भूल-चूक नहीं हो इसकी सावधानी बनी रहती है। कार्तिक-स्नान के समापन और संक्रान्ति के तिल-गुड को लेकर उत्साह की उष्णता के पीछे रहती है ऋतु परिवर्तन की कारीगरी। ''जूड-शीतल'' गर्मी के स्वागत की तैयारी कराता है। बहनें रक्षाबंधन और भ्रातृद्वितिया की प्रतीक्षा करती है; यद्यपि उनके मन में अपने भाइयों केलिए सदा ही शुभकामनायें बनी रहती हैं, पर त्योहारों की बात ही कुछ और है। वे चाहे ससुराल में हों या मायके में, समवेत स्वर में ''जीअहुँ हो मोर भइआ, जिउ भइआ लाख बरीसे'' गाकर आनन्द मग्न हो उठती हैं। इन व्रत-त्योहारों और उत्सवों के पीछे छिपे वास्तविक तत्त्व ने इस गाँव को दी है एक अक्षुण्ण जीवन्तता। पनपने और विकसित होने की स्वस्थ-सबल प्रवृत्ति के साथ यहाँ के बच्चे पढ-लिख कर कमाऊ पूत बनना चाहते हैं। उनकी सौम्य अभिलाषा का साथ देती है ''ॐ नम: सिद्धं'' की सूक्ष्म शक्ति; तभी तो वे अल्प साधनों के बावजूद नगरों में जाकर, सुयोग्य और उपयोगी बन पाते हैं। असुविधाओं से यहाँ के बालक और युवा नहीं घबडाते। इनके आदर्श अर्जुन हैं; इन्होंने सही लक्ष्य पर अपनी दृष्टि टिकाये रखने कहानियां सच्ची-मुच्ची 5 का अभ्यास कर लिया है। ये अल्प सफल हों या अति सफल, इनके कारण गाँव की हैसियत बढी है। अब इस गाँव के लोग बीमार पडने पर बडे अस्पतालों में इलाज कराने की हैसियत रखते हैं। यहाँ शुभविवाह का आयोजन हर्ष-उल्लास से होता है। साफ नजर आता है कि तरक्की मुस्करा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।*सडक के पश्चिम वाली बस्ती में एक ही मकान पक्का है-- मस्जिद का। बाकी घर कच्चे और बेमरम्मत हैं। अब तो दोनों ओर की जनसंख्या लगभग एक जैसी ही होगी, लेकिन शुरू से ऐसा नहीं था। जो लोग मुसलमान बना दिये गये थे, उनकी तदाद हिन्दुओं से काफी कम थी। जब एक आदमी चार-चार औरतों से बच्चे पैदा कराने लगा तब बात-की- बात में उनकी तादाद बढ गयी। उनके लिए अनिवार्य बनायी गयीं कुप्रवृत्तियों की सूची में सबसे पहले नम्बर पर है हिन्दू को अपना शत्रु मानना और उसे नुकसान पहुँचाने में लगे रहना। मजहब के नाम पर अखाद्य भक्षण के साथ अनेक अशौच आदतें डाली गयीं, फलत: उनके बीच भयंकर बीमारियाँ पैदा होने लगीं। चचेरे-फुफेरे-ममेरे भाई- बहनों के बीच की गयी शादियों ने रही-सही कसर पूरी कर दी; औलादों में विकलांगता आने लगी, शरीर से लेकर आचार-विचार में भी। कमियों और सीमाओं से निकलने के बदले उन्होने विषकीडा की तरह अपने चारों ओर मलिनता का खोल बना लिया। अशिक्षा, जडता, रोग और भोग से आक्रान्त, उस मुसलमानी बस्ती में हर सही बात मजहब के खिलाफ मानी जाती है। * कहानियां सच्ची-मुच्ची 6 उस अंधेरी बस्ती में कल रात टॅार्च ने खलबली मचा दी। 'क्या हुआ ?''पुलिस के लोग आये थे।' 'पुलिस ? क्यों ?' 'कासिम को हथकडी पिन्हा कर ले गये हैं।' 'कासिम तो कुछ दिनों से दिखायी नहीं दे रहा था !' 'हाँ, उसका बाप कहता है कि कहीं काम पर लगा था; पैसे भी भेजता था। इधर उनलोगों की हालत सुधर गयी थी। सुना कि परसों रात अचानक आ गया।' 'तो, पुलिस क्यों ले गयी?''वह पाकिस्तान में आतंकी बनने की ट्रेनिंग ले रहा था।' 'ऐं ?''आतंकियों का सरगना बन कर लौटा है। उसके जिम्मे काम है भारत के युवाओं को आतंकवादी दल का मेम्बर बनाना, उनके लिए ट्रेनिंग कैम्प लगाना और खास- खास जगहों में हमले कराना।''वह पकडा कैसे गया ?' 'सरकार की तीसरी आँख से नहीं बच पाया। देश के दूसरे हिस्सों में भी ऐसे छोकडे पकडे गये हैं।' 'अच्छा, तो इसी को लेकर कांग्रेस और काम्युनिस्ट रुदाली बने हुए हैं। उनका कहना है कि बीजेपी मासूम मुसलमानों को अकारण परेशान कर रही है।' 'कासिम की माँ को भी बेटा मासूम ही लग रहा है।'* 'बच्चे को क्यों जाने दिया था पाकिस्तान ?' कासिम की माँ अपने शौहर को कोसती हुई सिर पीट कर रो रही है। 'मेरे रोकने से रुकता ?' बाप अपना बचाव करता है। 'क्यों नहीं रुकता ? रोका कब ? पूछा तक नहीं कि क्यों जा रहा है।' कहानियां सच्ची-मुच्ची 7 'एक वही तो नहीं है कि नजर गडा कर बैठा रहता।'सही कहा उसने। चार मौजूदा बीबियों से चौबीस और तीन तलीक दी हुई की छह औलादी पलटन में किस-किस पर नजर रखी जाये ?'कम-से-कम यह पूछते कि पाकिस्तान क्यों जा रहे हो?' 'खुद ही बोला था कि यहाँ रह कर क्या करूँगा।' 'वहाँ जाकर क्या बन गया ... जान पर बन आयी !' 'बहुत लडके पकडे गये है.. सब मुसलमान।' 'मेरा मतलब सिर्फ अपने बेटे से है।''सब छूट जायेंगे.. यह भी छूट जायेगा।''जो पैरवी करेगा वह अपने बच्चों को छुडा लेगा। इस तरह हाथ-पर-हाथ धर कर बैठने वाले का बच्चा छूटेगा ?''पैरवी करने की मेरी औकात नहीं है।' बीबी के मन में बडी तल्ख बातें उठ रही थीं, लेकिन उसने अपने को रोक लिया और बेचैनी से बोली--'एम एल ए से मिलते।' उसी इलाके का एक आदमी कांग्रेस पार्टी का विधायक था।'पता करता हूँ; वह यहाँ कम ही रहता है।'कासिम का बाप एम एल ए से मिल कर आया तो बहुत झुँझलाया हुआ था। 'क्या हुआ ?' बीबी ने पूछा तो और बौखला गया।'होना क्या है ? सब-के-सब बेशरम हैं, झूठ बोल कर बेवकूफ बनाना चाहते हैं।''आखिर कहा क्या ?''कहेगा क्या ? पैसे मांगता है। कहता है कि बेटे को छुडाना है तो गाँठ ढीली कर ! जैसे यहाँ कोई कारूँ का खजाना गडा है ! दो जून की रोटी का जुगाड किस मुश्किल से हो पाता है यह तो किसी को बता नहीं सकता। रिश्वत देने केलिए क्या डाका कहानियां सच्ची-मुच्ची 8 डालूँ ? और, पैसे लेकर भी वह कुछ कर सकेगा क्या ? आज तो कांग्रेस का राज-पाट भी खतम हो चुका है; जब यहाँ से वहाँ तक कांग्रेसी फैले हुए थे तब भी कसाब को बचा पाये ? सारी उछल-कूद धरी रह गयी और वह फाँसी पर लटका ही दिया गया।' कासिम की माँ पुक्का फाड कर रोने लगी। अब तक जो नहीं जानते थे उन्हें भी पता हो गया कि मामला देशद्रोह का है। ऐसे में कोई पूछ-ताछ भी नहीं करता। सन्नाटे में रोने की आवाज अधिक डरावनी लगती है। * 'उनके रोने से कुछ होने वाला नहीं है; उन्हें शिक्षित होने की जरूरत है ताकि दहशतगर्द पैदा न करें।' 'कौन देगा उन्हें ऐसी शिक्षा ?' 'वक्त।'*मौसम बदल गया है। सडक मे पूरव एक अभूतपूर्व उष्णता से अनुप्राणित वातावरण जनगण के मन में बदलाव ला रहा है। उनमें आक्रोश है । एक संकल्प भी है। विपरीत स्थिति को मातृभूमि के अनुकूल करने में सहयोग देने का अनकहा दृढ निश्चय आबालवृद्ध नर-नारी के व्यक्तित्व में उजास भर रहा है। सूचनायें मिल रही हैं; कासिम से मिले सूत्र पर अनेक आतंकी पकडे गये। उनके पास से अकूत विस्फोटक और असले बरामद हुए। देशहित में कार्यरत शीर्षस्थ व्यक्तियों की हत्या करने का नक्शाबन्द प्रोग्राम भी मिला। उत्खनन का यह सिलसिला अभी चल ही रहा है। राष्ट्रविरोधी बदबोली वालों के हलक सूख रहे हैं। कुचालियों के पैर के कहानियां सच्ची-मुच्ची 9 नीचे की जमीन खिसक रही है। खामख्याली में गर्क लोगों का हकीकत से सामना होने लगा है। * दो भिन्न मनोभावों के बीच से गुजरती यह सडक शर्म से पानी-पानी हो रही है। उसे पता है कि अब लडाई आरपार की है; इसमें बीच का कोई रास्ता नहीं है। तथास्तु सुधा9047021019

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