Sunday, May 8, 2022

सुधा सिन्हा -- अज्ञानी विद्वेषी को उत्तर 14.10.2019

अज्ञानी विद्वेषी को उत्तर किसी व्यक्ति को उत्तर देने की कोई बाध्यता मेरे साथ नहीं है। यह भी नहीं कि मैं विद्वेषी का हृदय परिवर्तन करना चाहती हूँ। और, यह भी सम्भव नहीं है कि अज्ञानी मेरी सुन कर ज्ञानी बन जाये। मेरी प्रतिश्रुति अपनी मातृभूमि केलिए है। इसकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध खुले थोभरे, उठे पंजे और बढे खुर पर मुझे शल्य प्रहार करना है। * अति प्राचीन काल से ही भारत(भा=प्रकाश+रत=लीन) में शब्दों, विशेष कर संज्ञाओं द्वारा सूक्षता को अभिव्यक्त किया गया है; यहाँ नाम सार्थक होते हैं। पश्चिम ''लैंड'' से आया हुआ निरर्थक अंटी-बंटी तो ब्रायन के कबाड की तरह ही अंट-संट ''न्यू'' है ''जी''!! यह अर्थरहित ब्रायन नामक कौआ है कौन? उसका अपनाम, करोडों भाग्यशाली भारतीयों ने मेरी ही तरह नहीं सुना होगा। आपने अजामिल की कथा सुनी होगी; कहा जाता है कि वह कभी भगवान को याद नहीं करने वाला परले सिरे का पापी था। कथा में ''पापी'' शब्द का ही प्रयोग हुआ है। (ब्रायन ऐसा नाम दे सकता है जो सोशल मीडिया में चालू हो।) हाँ, तो कथा आगे बढती है: अजामिल के बेटे का नाम था नारायण;(यह भगवान विष्णु के सहस्र नामों में एक है)। माँग रही है भारतमाता 2 जैसे लोग मरते हैं, ठीक वैसे ही अजामिल मर रहा था; पुत्रप्रेमग्रस्त अजामिल ने बिछडते समय कातर स्वर में बेटे को पुकारा--नारायण नारायण ! कथा के अंत में कहा जाता है कि अजामिल ''तर'' गया। यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी है कि अजामिल ने भगवान विष्णु को कभी ब्रायनमार्का उत्कोच नहीं दिया था। मूर्ख ब्रायन को कोई समझदार ''तरने'' की आध्यात्मिक प्रक्रिया का रहस्य समझा दे तो सौ छेदों वाली डेंगी पर सवार यह अज्ञानी छिद्रान्वेषी भी ''तर'' जा सकता है। हालाँकि जो केवल मूर्ख है उसके उद्धार की सम्भावना रहती है, लेकिन जो मूर्ख अपने सिवा सबको मूर्ख समझता हो उसकी सफलता संदेहास्पद है। क्या ब्रायन नहीं जानता कि भारत में स्कूल खोलने के पीछे यूरोपियनों की असली मंशा क्या थी? वह चालाकी से ''ईसाई'' शब्द का प्रयोग नहीं करता है;1400 साल तो कहता है लेकिन 2019 नहीं कहता। यह जानी हुई बात है कि 1400 साल वालों ने 2019 वालों से ही सीखा कि किस तरह देवत्व को सूली पर चढा कर हत्यारों, बलात्कारियों, समलैंगिकों, जर-जमीन-जायदाद हडपने वालों की फौज खडी की जाती है। टुच्चे ब्रायन की बन्द समझ में यह बा‍त कैसे घुसेगी कि हिन्दू जहाँ जाता है वहाँ मंदिर क्यों बना देता है !! किसी माँग रही है भारतमाता 3 आध्यात्मिक-सांस्कृतिक रहस्य की बात बेहूदे ब्रायन के निम्नस्तरीय दिमाग पर उसी तरह बेअसर हो जायेगी जैसे चंडीपाठ सुनाने के बाद भी कुत्ते का कुत्तापन दूर नहीं होता। कहा गया है-- मूरख हृदय न चेत जौं गुरु मिलहिं विरंचि सम। फूलहिंफलहिं न बेंत जतपि सुधा बरसहिं जलद।। मध्ययुग का अवशेषजन्तु ब्रायन भारत को कम युद्ध करने केलिए निन्दनीय मानता है; इस कूडमगज को पता ही नहीं है कि संसार इक्कीसवीं सदी में जहाँ घिसटते-घिसटते पहुँचने की कोशिश में है, भारत के कदम उस मुकाम को कब के चूम चुके हैं। यह कोई संयोग की बात नहीं है कि United Nations के Peace Keeping Force में भारतीय पराक्रमी वीरों की उपस्थिति सबसे अधिक है। यह Force बर्बरों की तरह युद्ध करने केलिए नहीं, बल्कि युद्ध रोकने केलिए है। अवतारों ने चेतना के शीर्ष ''अयोध्या'' स्तर तक भारत को अति प्राचीन काल में ही पहुँचा दिया है। इस देवभूमि को यह भी पता है कि युद्ध को भी ''कर्मयोग'' मान कर उस ''जय'' तक पहुँचना ही है जिसमें स्वयं भगवान की विभूति है। प्राग्ऐतिहासिक काल के दानवों की अमानुषिकता के साथ 1400 और 2019 वालों के क्रूर पाशविक चरित्र माँग रही है भारतमाता 4 की तुलना की जा सकती है। लहलहाते संसार पर जब ये अशुभ टिड्डी दल टूट पडे, उसके पहले उन जगहों में कौन और क्या था इसका नामोनिशान नहीं बच पाया। शुद्ध-प्रबुद्ध भारत की ओर भी 1400 और 2019 वाले पागल भैंसे की तरह बढे, हानि भी पहुँचा दी। आपने देखा होगा कि मार कर भगाया गया आवारा कुत्ता जाते- जाते हग-मूत देता है। भारतीय संस्कृति के सामने थोथे पडे 1400 और 2019 वालों का चाल-चरित्र भी वही था। अब दोनो rejected अपआकांक्षी भारत के आईने में अपना ही चेहरा देख कर ताली पीटने लगते हैं--देखो, कितना कुरूप है भारत। वे अपनी बदसूरती नहीं पहचानते। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि भारत का ऐश्वर्य उन्हें नहीं दीखता, क्योंकि इसे चुराने या हडपने की उनकी चालों की पोल तो खुलती ही रही है। संसार का तात्विक सौंदर्य निगल कर 1400 और 2019 वालों ने अपनी बदसूरती की जडें जमायी हैं। सौम्यता के साथ मानवक्रमविकास विश्व भर में प्राकृतिक रूप से विकसित होता रहा था। ईशविरोधी 1400 और 2019 वाले खच्चरपतियों (खच्चर इनका एकमात्र यान था) की नकारात्मकता ने अपने क्षेत्रों में देवत्व उतरने की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर दिया। इतना ही नहीं, वे संसार भर में मानवता के बीच पनपने वाले माँग रही है भारतमाता 5 देवत्व को ढूंढ-ढूंढ कर रौंदने लगे। अपनी हिंस्रप्रवृत्ति के साथ सूली-तिकठी, चाकू-छुरा, गँडासा-हँसिया लेकर पाशविकता की गहन खेती करने लगे। इन्होंने अपनी ''सल्तनत'' और अपना ''राज'' कायम कर, संसार को मजबूर किया कि सब विध्वंशक नीति-उपाय-यंत्र-रसायन तैयार करने की होड में शामिल हो जायें। 1400 और 2019 के वर्चस्व ने संसार को विनाशक जिंसों की खतरनाक मंडी बना कर रख दिया; युद्धसामग्री ही नहीं अन्न तथा रोगहरऔषध तक को मानव विनाश का संसाधन बनाया गया। परन्तु भार‍त की अयोध्या शक्ति के सामने ''सल्तनत'' और ''राज'' की नहीं चल पायी। लतिआये गये वंश के पूत ब्रायन के ज्वरोन्माद का असली कारण है 1400 और 2019 वालों के प्रत्यक्ष-परोक्ष हर तरह की साजिशों को भारतीय संस्कृति द्वारा निरस्त कर दिया जाना। ''सल्तनत'' और ''राज'' का भ्रष्टाचार, दुराचार, व्यभिचार भारतीय संस्कृति को तो नहीं मिटा पाया परन्तु सतह पर गंदगी फैला गया। भारत अपना फर्श साफ करने में लगा है, विकृतियां सुधार रहा है;गंदगी दूर करने का उसका संकल्प सिद्धि की ओर बढ चुका है। 1400 और 2019 वालों के संसर्ग जन्य अभिशापों में एक है नशा करने की लत; माँग रही है भारतमाता 6 क्रमबद्ध सफाई अभियान में भारत इस कूडे को भी साफ कर देगा। ब्रायन को इस से जरूर असुविधा होगी क्योंकि उसके God Zone की स्थिति यह है--- New Zealand is very much a  drinking culture . There’s is a lot attached to the simple act of having a beer with a friend or workmate. Saying that, no judgement is passed on anyone who doesn’t drink, but the teetotaller traveller should understand that booze and Kiwis go together like fish ‘n’ chips. Even if you don’t drink, if you’re invited to a dinner party or barbecue, it’s good form to bring a bottle of wine or some beers to share. If someone “shouts” you a drink at a bar, then custom dictates that you get the next round in. दरअसल, जिसने भारत के जीवन को नहीं जिया है, नहीं बसा यह देश कि जिसकी प्राणवायु में..... उन अभागे जारज ब्रायनों की बेहूदी बातों का कोई मूल्य नहीं है। ॐ 14.10.2019 सुधा,9047021019

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