Sunday, May 8, 2022

ॐ सुधा सिन्हा -- विद्वेष का कारिन्दा 11.06.2020

विद्वेष का विश्वव्यापी महामारी के कारण भले ही वाणिज्य-व्यापार में मंदी आ गयी हो, परन्तु विद्वेष के बाजार की गर्मी नहीं कमी है। विद्वेष का अधम कारोबारीराजनीति और अर्थभीति से लेकर भौगोलिक रेखाओं को भी अपना raw material बना रहा है। विद्वेष की मंडी में विद्वेषनिपुण कारिन्दे अपने को बुद्धिजीवी बता कर अच्छी कीमत पर उठने के जुगाड मे लगे रहते हैं। बेहिचक झूठ बोलने वाले विद्वेषपटुओं को टुटपुँजिआ पार्टियां अपना प्रवक्ता तथा संवाददाता बनाती हैं। राजनैतिक पार्टियां किसी-न-किसी सिद्धान्त पर चलती हैं। उनमें पक्ष-विपक्ष कर होना स्वाभाविक है। परन्तु विद्वेष के सिद्धान्त पर चलने वाला पक्षहीन साम्यवाद स्वभाव-चरित्र- विचार-आचार में केवल विपक्षी बना रहता है। वर्तमान समय में इसका अपना घर है चीन का कुटिल शासनतंत्र। यदि शरीर में कोई विकार उत्पन्न हो जाये तब रोगाणुओं को सेंधमारी का मौका मिल जाता है।राजनीति के क्षेत्र में साम्यवाद ऐसा ही रोगाणु है जो घुसपैठ के फिराक में लगा रहता है। मुसलमान-ईसाई हस्तक्षेप से मुरझा रहे भारत के राष्टभक्त जनगण ने जान पर खेल कर मातृभूमि केलिए आजादी हासिल की। उस मुहूर्त में आवश्यकता थी एक राष्ट्रप्रेमी नेता की। परन्तु दुर्भाग्य से जनमत के विरुद्ध प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में युरोपियन स्वभाव और मुसलमानी संस्कार वाले जबाहरलाल को लाद दिया गया; तब साम्यवादी वाइरस के लायक पंकिल जमीन तैयार होने लगी। जबाहरलाल व्यक्ति से परिवार बन कर भारत की छाती पर मूंग दलने लगे। नेतृत्व की इस दुर्घटना के कारण भारत की स्वतंत्रता के प्रारंभिक पैंसठ वर्ष तो बरबाद हुए ही, उजाले बाँट दो 2 जनगण को जिन आनुसंगिक हानियों का सामना करना पडा वह अब तक पीछा नहीं छोड रही हैं। हिन्दुत्व की अवहेलना से देश हतप्रभ हो गया। मुसलमानतुष्टिकरण और ईसाई रेलिजन फैलाने की छूट ने देश की डेमोग्राफी बिगाड कर रख दी। कांग्रेस पार्टी ब्रितानियों की सत्ता बचाने केलिए बनायी गयी थी। आजाद भारत में इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी थी। परन्तु भारतीय स्वतंत्रता को निरर्थक बनाने की कुटिल मंशा से इस पार्टी ने अपने को विद्वेष के कारिन्दे तैयार करने का कारखाना बना लिया। दिखाने केलिए कांग्रेस और साम्यवादी पार्टियां भले ही भिन्न हों, परन्तु भारत को पतन के गर्त में गिराने की कुचेष्टा के पीछे दोनों की मिलीभगत रही।‍ अधिक- से-अधिक विद्वेषी तैयार करने के उद्देश्य से कांग्रेस ने साम्यवादियों को इस धंधे का मुख्य भाग outsource कर दिया। विद्वेषगुरु साम्यवादी के भारतीय संस्करण ने पूरी सक्रियता से माओवादी आतंकी, नक्सलवादी हत्यारे, पाखंडी अर्बन नक्सलाइट, नक्काल इतिहासकार, जेएनयू जैसे माँद और खच्चरों के टुकडे-इुकडे गैंग तैयार कर दिये। इस गैंग में शामिल होने की एक ही शर्त थी-- जो घर जारै आपनो चले हमारे साथ । * मारने वाले से बचाने वाले का हाथ मजबूत होता है। और, बचाने वाली शक्ति को पता है कि वह मानवता के बीज का संरक्षण कर रही है। वह शक्ति विद्वेष के कारिन्दों के पीछे पड कर अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं करती; उन्हें आत्महत्या कर लेने की सुविधा देकर छोड देती है। ॐ11.06.2020 सुधा 9047021019

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